बार-बार आंखों को मसलने से हो सकता है किरेटोकोनस, जानिए क्या है उपचार

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-डॉ. सुरेश पाण्डेय, कोटा-

किरेटोकोनस (Keratoconus) से पीड़ित व्यक्तियों में चश्में का तिरछा नम्बर धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है एवं रोगियों को चश्मा लगाने के बाद भी स्पष्ट नहीं दिखाई देता है। नेशनल किरेटोकोनस फाउण्डेशन (National Keratoconus Foundation) द्वारा हर वर्ष 10 नवम्बर को विश्व किरेटोकोनस दिवस मनाया जाता है।

इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य किरेटोकोनस नामक नेत्र बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। विश्व के अनेकों सेलेब्रेटी किरेटोकोनस नामक रोग से पीड़ित है एवं जागरूकता बढ़ाने के लिए नेशनल किरेटोकोनस फाउण्डेशन के साथ मिलकर कार्य कर रहे है। इनमें से प्रमुख है अमेरिकन टी.वी. न्यूज एंकर फिल सेनसेज, अमेरिकन एक्टर मेंडी पेटिनकिन, ऑस्टेªलियन आर्टिस्ट मेथ्यू कॉर्लवेल, अमेरिकन ओलम्पिक गोेल्ड मेडलिस्ट, स्टीवन हॉलकाम्ब, ब्रिटिश गोल्ड मेडलिस्ट तैराक स्टेफनी स्टेकलर आदि।

किरेटोकोनस क्या है: किरेटोकोनस आँख की पारदर्शी पुतली (कॉर्निया) में होने वाली विशेष प्रकार की बीमारी है, जिसमें कॉर्निया का आकार में उभार (कॉनिकल शेप) आ जाता है।  कॉर्निया में आये उभार के कारण इन रोगियों को अस्पष्ट दिखाई देता है एवं चश्में का तिरछा नम्बर बार-बार बढ़ जाता है।  

किरेटोकोनस किन व्यक्तियों में होता है: किरेटोकोनस रोग 2000 में से 1 व्यक्ति को हो सकता है। इस रोग का ठोस कारण अज्ञात है। सामान्यतः 14 वर्ष की आयु से लेकर 30 वर्ष की आयु वाले व्यक्तियों को हो सकता है। नेत्र एलर्जी से पीड़ित आँखों को मसलने वाले व्यक्ति, डाउन सिन्ड्रोम से पीड़ित व्यक्ति एवं वंशानुगत किरेटोकोनस से पीड़ित व्यक्तियों की संतानों को यह रोग हो सकता है। किरेटोकोनस लगभग 90 प्रतिशत व्यक्तियों की दोनों आँखों को प्रभावित करता है एवं यह पुरूष एव महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करता है।  

किरेटोकोनस के लक्षण: किरेटोकोनस से पीड़ित व्यक्तियों को अस्पष्ट दिखाई देता है। किरेटोकोनस से पीड़ित व्यक्तियों में चश्में का तिरछा नम्बर धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है एवं रोगियों को चश्मा लगाने के बाद भी स्पष्ट नहीं दिखाई देता है, जिसके कारण किरेटोकोनस से पीड़ित व्यक्ति को पढ़ने-लिखने, रोजमर्रा का कार्य करने एवं वाहन चलाने में बहुत परेशानी होने लगती है। इन रोगियों की प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है एवं पढ़ने-लिखने हेतु आँखों पर बहुत जोर डालना पड़ता है। कभी-कभी किरेटोकोनस से पीड़ित व्यक्तियों को तिरछा एवं दो या अधिक प्रतिबिम्ब भी दिखाई दे सकते है।

कोचिंग विद्यार्थी भी पीड़ित – बढ़ते प्रदूषण एवं आई एलर्जी, बार-बार आंखें मसलने (आई रबिंग) आदि कारणों से शिक्षा नगरी कोटा में अनेकों विद्यार्थी किरेटोकोनस नामक रोग से पीड़ित होते जा रहे है। इन विद्यार्थियों को कक्षा में स्पष्ट नहीं दिखने के कारण अध्ययन मे परेशानी हो सकती है। साथ ही ऐसे विद्यार्थियों आंख चश्में का तिरछा नम्बर बढ़ने से सिरदर्द आंखों में दर्द,  धुंधला दिखाई देना आदि लक्षण होने लगते है। उचित निदान व उपचार के अभाव में इन विद्यार्थियों का नीट अथवा आईआईटी परीक्षा का परर्फोमेन्स भी प्रभावित हो सकता है।

किरेटोकोनस का निदान: किरेटोकोनस से पीड़ित व्यक्तियों का निदान (डायग्नोसिस ) करने हेतु कॉर्नियल टोपोग्राफी नामक विशेष जाँच की जाती है। टोपोग्राफी नामक जाँच से किरेटोकोनस का निदान करना आसानी से सम्भव हो पाता है। किरेटोकोनस से पीड़ित व्यक्तियों में किसी भी उपचार द्वारा बीमारी की सम्पूर्ण रोकथाम कर 100 प्रतिशत दृष्टि लौटाना पाना सम्भव नहीं है।  

किरेटोकोनस का उपचार:  किरेटोकोनस से पीड़ित व्यक्तियों में किसी भी उपचार द्वारा बीमारी की सम्पूर्ण रोकथाम कर 100 प्रतिशत दृष्टि लौटाना पाना सम्भव नहीं है। इन रोगियों का रोज़-के कॉन्टेक्ट लैंस, कॉर्नियल कॉलिज़न क्रॉस लिकिंग विद राइबोफ्लेविन (सी-3 आर), इम्पलान्टेबल टोरिक कॉन्टेक्ट लैंस (आई.सी.एल.), इन्ट्रास्ट्रोमल कॉर्नियल रिंग सेग्मेन्ट (केरा रिंग्स) अथवा टोरिक इन्ट्राऑकुलर लैंस प्रत्यारोपण, कॉर्निया प्रत्यारोपण नामक नवीनतम तकनीकों द्वारा उपचार किया जाता है। किरोटोकोनस बीमारी के लिए कॉंटेक्ट लैंस एवं कार्नियल रिंग (इंटेक्स) जैसे विभिन्न विकल्प उपलब्ध हैं, परन्तु वे बीमारी के मुख्य कारण (कॉर्निया का कमजोर होना) का उपचार नहीं करते।

सी-3 आर तकनीक : किरेटोकोनस से पीड़ित रोगियों हेतु कॉर्नियल कॉलिज़न क्रॉस लिकिंग विद राइबोफ्लेविन (सी-3 आर) नामक तकनीक का प्रयोग विश्वभर के नेत्र विशेषज्ञों द्वारा किया जाने लगा है। सी.थ्री.आर. पद्धति का मुख्य उद्देश्य कॉर्निया के कॉलिजन नेटवर्क को मजबूती प्रदान करना है। कॉर्निया मुख्यतः बहुत सारे लंबे तार जैसे कॉलेजन से बना हुआ होता है। ये क्रिस-क्रॉस तरीके से बुने हुए कॉलेजन तंतु कॉर्निया को मजबूती प्रदान करते है। (राइबोफ्लेविन एवं अल्ट्रावायलेट । किरणें) पद्धति विभिन्न रसायनिक पदार्थो (विटामिन बी-2) का उपयोग करके इन कॉलेजन के तंतुओं के जाल को मजबूती बढ़ाने हेतु किया जाता है।

शल्य क्रिया का उद्देश्य: कॉर्नियल कॉलिज़न क्रॉस लिकिंग विद राइबोफ्लेविन नामक शल्य क्रिया का उद्देश्य किरेटोकोनस बीमारी को आगे बढ़ने से कम करना अथवा रोकना है। साधारणतः एक आँख (ज्यादा प्रभावित) का ही उपचार एक समय पर किया जाता है। इस ऑपरेशन/प्रक्रिया में इंजेक्शन द्वारा कोई एनस्थीसिया नहीं दिया जाता, सिर्फ सुन्न करने वाले वाली आई-ड्राप्स ही पर्याप्त है। सी-3 आर तकनीक में रोगी के कॉर्निया के मध्य भाग की ऊपरी परत (एपीथिल्यिम) को हटाकर राइबोफ्लेविन डाई की ड्राप्स डाली जाती है एवं विशेष अल्ट्रा वायलेट किरणों द्वारा सिकाई की जाती है।

सॉफ्ट कॉन्टेक्ट लैंस का प्रयोग: सिकाई करते समय आईसो टोनिक अथवा हायपो टोनिक, रायबोफ्लेविन ड्राप्स का प्रयोग किया जाता है। सी-3 आर तकनीक का उपयोग किरेटोकोनस से पीड़ित रोगियों में चश्में के तिरछे नम्बर बढ़ने की सम्भावना को कम करते हुए कॉर्निया को मजबूती प्रदान करता है। सी-3 आर उपचार के बाद कॉर्निया के कॉलिजन फाइबर्स मजबूती लगभग 300 प्रतिशत बढ़ जाती है, जिसके कारण किरेटोकोनस के बढ़ने की सम्भावना नगण्य हो जाती है। इन रोगियों में सी-3 आर ऑपरेशन के बाद कुछ दिनों तक सॉफ्ट कॉन्टेक्ट लैंस का प्रयोग करना आवश्यक होता है। सी-3 आर ऑपरेशन के बाद कुछ दिनों तक धुंधला दिखाई दे सकता है।

सावधानियां: किरेटोकोनस से पीड़ित रोगियो में नेत्र एलर्जी होने की सम्भावना अधिक होती है। इन रोगियों को यथा सम्भव आँखों को रगड़ने (मसलने) से बचना चाहिए। साथ ही साथ स्टेराईड आई ड्राप्स का लम्बे समय तक प्रयोग चिकित्सक की देखरेख के बिना नहीं करना चाहिए। किरेटोकोनस से पीड़ित रोगियों को रात को सोते समय ध्यान रखना चाहिए कि तकिये के द्वारा आंख पर विशेष दबाव नहीं पडें।