भारतीय किसान संघ का तीन दिवसीय प्रांतीय प्रशिक्षण वर्ग शुरु
कोटा। भारतीय किसान संघ चित्तौड़ प्रांत के जिला स्तरीय कार्यकर्ताओं का तीन दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग शुक्रवार से श्रीरामशांताय जैविक कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र कैथून रोड़ जाखोड़ा पर प्रारम्भ हुआ।
उद्घाटन अखिल भारतीय बीज प्रमुख कृष्णमुरारी तथा अखिल भारतीय जैविक प्रमुख पद्मश्री हुकुमचंद पाटीदार के द्वारा किया गया। प्रशिक्षण वर्ग में पशुपालन, गौ सेवा, जैविक कृषि तथा बीज आयाम से संबंधित प्रान्त के सभी 16 जिलों के प्रमुख कार्यकर्ता उपस्थित हैं।
इस दौरान कृष्णमुरारी ने संबोधित करते हुए कहा कि देश की जनसंख्या में 70 फीसदी किसान हैं, जो अधिकतर सरकार की योजनाओं पर ही निर्भर रहते हैं। जब तक किसान स्वयं को उद्यमी बनाने पर ध्यान नहीं देगा, तब तक किसान की आय नहीं बढ़ पाएगी।
किसानों के उत्पाद को कंपनियां उत्पाद की गुणवक्ता, आकार, श्रेणी आदि के अनुसार प्रसंस्करण कर मोटा मुनाफा कमा रही हैं। हमारे ही 20 रुपए किलो के गेँहू को दलिया बनाकर बाजार के माध्यम से 60-80 रुपए किलो का विपणन कर बिक्री कर देती हैं। आज किसानों को अपनी आय बढ़ाने के लिए इस प्रकार के प्रयोग करने पड़ेंगे।
पद्मश्री हुकुम पाटीदार ने कहा कि भारतीय किसान संघ प्रारंभ से ही जहर मुक्त खेती और नशा मुक्त मानव की बात करता रहा है। गौ आधारित जैविक खेती से भी बड़ी संख्या में किसान लाभ ले रहे हैं। हमें कृषि को लाभकारी और स्वास्थ्यकारी बनाने के लिए फिर से जैविक खेती की ओर लौटना ही होगा। कृषि वैज्ञानिक पवन कुमार टांक ने कहा कि गौ आधारित जैविक कृषि से ही किसान खुशहाल होगा।
प्रदेश जैविक प्रमुख प्रह्लाद नागर ने कहा कि आज हम जिस तरह से उपज को रासायनिक खाद और दवाइयों से जहर युक्त बना रहे हैं। उससे छुटकारा पाने के लिए गौ आधारित खेती को पुनर्स्थापित किया जाना आवश्यक है।
संगठन मंत्री परमानन्द ने कहा कि किसान हित में लड़ने वाले संगठन लगातार किसानों की समस्या निवारण के लिये लड़ रहे हैं। सरकार किसी की भी हो सामंजस्य से किसानों की समस्याओं का समाधान निकाल भी रहे हैं। लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य किसान का हक है, वह उसे मिलना ही चाहिए।
प्रान्त बीज प्रमुख डॉ. राजेन्द्र बाबू दुबे ने कहा कि आज बीज व बाजार किसानों की प्रमुख समस्या है, मंडी के अंदर हो या बाहर किसान के साथ हो रहा शोषण बंद होना चाहिए। पारंपरिक बीज के साथ कोई छेड़खानी न हो। इसके पर्याप्त उत्पादन व उचित मूल्य में उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। श्रीअन्न के विपणन के लिए व्यापक नीति बनाई जानी चाहिए।
प्रान्त जैविक प्रमुख बाबू सिंह रावत ने कहा कि पचास साल पहले जैविक कृषि के जिस माॅडल को सरकारों के द्वारा कचरे के ढेर में फैंक दिया गया था, आज वहीं सर्वमान्य हो गया है। आज कोरोना के कारण भी विश्व फिर से भारतीय मूल तत्वों की ओर लौटने पर विवश हुआ है।
प्रचार प्रमुख आशीष मेहता ने बताया कि शनिवार को पौधे की किस्म, कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, जीन बैंक, जैव विविधता और जलवायु का बीज पर प्रभाव, परंपरागत बीजों के लाभ, उत्पादन, संरक्षण, संग्रहण की विधि, फलदार पौधों का प्रवर्धन, परंपरागत बीजों में जैविक विधि से कीट नियंत्रण, बीजों पर परंपरागत और वैज्ञानिक चिंतन, बीज बैंक, स्वावलंबी किसान, उन्नत बीज, गौ आधारित कृषि, पशुपालन से आत्मनिर्भरता और जैविक कृषि: आज की आवश्यकता समेत विभिन्न विषयों पर विस्तार से चर्चा होगी।