नए कृषि कानून से चावल निर्यात में 30 लाख टन बढ़ोतरी संभव

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नई दिल्ली। कांट्रैक्ट खेती से शुरू होने चावल के निर्यात में कम से कम 20-30 लाख टन का इजाफा हो सकता है। भारतीय उत्पाद की अपनी छवि बनेगी और किसानों को फायदा होगा।

राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष बी.वी. कृष्णा राव ने बताया कि कांट्रैक्ट खेती से शुरू होने से निर्यातक किसी भी राज्य के ग्रामीण इलाके में जाकर सीधे तौर पर किसानों से खरीद-फरोख्त कर सकेंगे। वे ग्रामीण इलाके में चावल की यूनिट लगाने में भी निवेश कर सकते हैं। इससे किसानों को आर्थिक फायदा होगा और देश का निर्यात बढ़ेगा।

कृषि निर्यातकों के मुताबिक कीटनाशक व अन्य रसायन के इस्तेमाल की वजह से अमेरिका व यूरोप के कई देश भारत के कई कृषि उत्पादों की खरीदारी नहीं करते हैं। कांट्रैक्ट खेती आरंभ होने से किसान इस बात को जान पाएंगे कि उन्हें अपने उत्पादों में किस स्तर पर कीटनाशक व केमिकल का इस्तेमाल करना है।

कृषि कानून से जुड़ी कांट्रैक्ट खेती का विरोध तो किया जा रहा है, लेकिन गुजरात के मेहसाणा इलाके के आलू किसान इस कांट्रैक्ट खेती की बदौलत अंतरराष्ट्रीय स्तर के उत्पादक बन गए। नतीजा यह हुआ कि आज देश के कुल आलू उत्पादन में 10 फीसद से भी कम हिस्सेदारी के बावजूद देश के कुल आलू निर्यात में गुजरात की हिस्सेदारी 27 फीसद है।

केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्था के मुताबिक इसकी मुख्य वजह है कि गुजरात के किसान आलू की उन वेरायटी की खेती करते हैं जिन्हें प्रोस्सेड की जा सकती है। अमेरिका व यूरोप में 65-70 फीसद आलू प्रोसेस्ड किए जाते हैं। मेहसाणा के आलू किसानों के मुताबिक उन्हें प्रोसेस्ड वेरायटी वाले आलू उगाने की जानकारी फ्रेंच फ्राइज बनाने वाली कंपनी से आलू की खेती के करार के बाद मिली।

उसका नतीजा यह हुआ कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुजरात के आलू की मांग लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2007 के आसपास इस कंपनी ने गुजरात के मेहसाणा इलाके में आलू की खेती के लिए किसानों से करार किया।

कृषि निर्यात के प्रोत्साहन के लिए काम करने वाली ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (टीपीसीआइ) के चेयरमैन मोहित सिंगला के मुताबिक अभी अंतराष्ट्रीय बाजार में कृषि उत्पाद के लिए भारत को सप्लायर के रूप में नहीं देखा जाता है। इसकी मुख्य वजह है कि एक साथ भारी मात्रा में उत्पाद की उपलब्धता नहीं होती है।

किसान के पास माल होता है, लेकिन निर्यातक को यह पता नहीं होता है कि किन-किन किसानों के पास कितना माल है। दूसरी बात है कि अंतरराष्ट्रीय खरीदार भारतीय उपज की गुणवत्ता को लेकर आश्वस्त नहीं हो पाते हैं। नए कृषि कानून के तहत कांट्रैक्ट पर खेती शुरू होने से इन दोनों ही समस्याओं का समाधान निकल जाएगा। भारत के उत्पाद की अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रांडिंग होगी। निर्यात मांग निकलने से किसानों की आय की गारंटी होगी और किसानों को अपनी उपज की कीमत के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा।