दूसरों से ईर्ष्या छीन लेती है खुद की खुशियां: आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा। महावीर नगर विस्तार योजना स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी संघ के पावन वर्षायोग के अवसर पर माताजी ने प्रवचन करते हुए कहा कि कभी-कभी इच्छाओं को कम भी करें। इच्छाएं कम करने से दिन में चैन मिल जाएगा और रात को नींद आ जाएगी। भगवान महावीर ने कभी पैसा कमाने की मनाही नहीं की, बल्कि जरूरत से ज्यादा रखने की मनाही की है।

उन्होंने कहा कि ठीक है इच्छाएं छूट नहीं सकती, इच्छाएं तो रहेंगी और इन्हें छोड़ने के लिए आपसे कहा भी नहीं जा रहा। श्रावक लोग 12 व्रत ग्रहण करते है। क्योंकि हमारी इच्छाएं सीमित हो जाएं। सरकार भी 60 वर्ष की आयु में रिटायर कर देती है। क्योंकि वो भी हमें संदेश देते है कि आप अब धर्म ध्यान में अपने मन को लगा लो। दुकान फैक्टरी घर का मोह-ममता घटा लो।

माताजी ने कहा कि गलत कार्यो से कमाई न करे। ये नहीं कि जहां से भी आए जैसे भी आए पैसा आना चाहिए। इच्छा, लोभ, लालच, उनका कोई अंत नहीं है। आज हर आदमी दूसरे जैसा होना चाहता है, पर आप अपने आप में राजी चाहिए। सुखी रहना है तो अपनी नजर किसी हवेली पर नहीं, बल्कि गरीब की झोंपड़ी पर रखिए। झोंपड़ी वाला अपनी नजर फुटपाथ पर रखे और फुटपाथ वाला अंधे-लगड़े पर।

उन्होंने कहा कि अपने से छोटे पर नजर रखोगे तो बडे सुख की घड़ियां कितनी जल्दी बीत जाती है, जबकि दुख की रातें काटे नहीं कटती। उन्होंने कहा कि ईर्ष्या से प्रसन्नता में घुण लगता है। सभी ईर्ष्या के नुकसान जानते है, परंतु फिर भी लोग करते है। ईर्ष्या एक ऐसा गड्ढा, जिसमें आज सभी गिरते जा रहे हैं। झगडे के पीछे सामने वाला कारण हो सकता है, पर ईर्ष्या में तो सामने वाला कुछ नहीं कहता। दूसरे को बढ़ते देख ईर्ष्या पैदा होती है। ईर्ष्या बिना धुएं की आग है जो अंदर ही अंदर जलती रहती है।

उन्होंने कहा कि संसार में हमने न तो स्वयं को समझा है, न ही शत्रु को। किसी के प्रति अरुचि का भाव हो तो मनुष्य के मन में बैर भाव उत्पन हो सकता है। आप किसी का अच्छा नहीं देख सकते या किसी का नुकसान होने पर आनंदित हो रहे हैं तो ये वैर भाव ही है। वैर भाव के अनेक प्रकार हैं। वैर भाव आपके कॉन्शियस माइंड के ऊपर आ जाता है तो आप बेचैन होते हैं।