डायबिटिज रोगियों में अंधता का खतरा 25 गुना अधिक

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बदलती जीवन शैली से भारत में मधुमेह रोगी विश्व भर में चीन के बाद सबसे अधिक

डॉ सुरेश पाण्डेय
कोटा।
world diabetes day 2021: बदलती जीवन शैली से भारत में मधुमेह रोगी तेज़ी से बढ़ ते जा रहें हैं। विश्व भर में चीन के बाद भारत में मधुमेह रोगी सबसे अधिक हैं। विश्व मधुमेह दिवस 2021 की थीम है एक्सेस टू डायबिटीज केयर (access to diabetes care)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ वार्गेनाइजेशन) द्वारा 14 नवम्बर को विश्व मधुमेह दिवस (वर्ल्ड डायबिटीक डे) मनाया जाता है।

विश्वभर में 415 मिलियन (41.5 करोड़) रोगी डाइबिटिज से पीड़ित हैं, जिनकी संख्या सन् 2045 में बढ़कर 630 मिलियन (63 करोड़) हो जायेगी। इंटरनेशनल डायबिटीक फेडरेशन के अनुसार भारत में वर्तमान में लगभग 73 मिलियन (7.3 करोड़) व्यक्ति डाइबिटिज से पीडित हैं। यह संख्या सन् 2040 तक बढकर 123 मिलियन (12.3 करोड़) हो जायेगी।

लगभग 10 लाख भारतीय रोगियों की प्रतिवर्ष डायबिटिज के कारण मृत्यु हो जाती है। डायबिटिक से पीडित रोगियों के कुल ईलाज का बोझ लगभग 11 लाख करोड़ रुपये है। टाईप 2 डाइबिटीज एवम् ऑबेसिटी को विशेषज्ञों ने डाईबेसिटी नाम दिया है एवम् इन दोनों बीमारियों को मानव इतिहास का सबसे बडा एपिडेमिक बताया गया है।

डायबिटीज के दुष्प्रभाव
अनियंत्रित डायबिटीज (मधुमेह) का आँखों, ह्रदय, किडनी, पैरों पर दुष्प्रभाव हो सकता है। डायबिटिज रोगियों में अंधता का खतरा 25 गुना अधिक होता है। डायबिटीज (मधुमेह) आंखों की समस्याओं का खतरा बढ़ा सकती है। शरीर में इंसुलिन ठीक प्रकार से न बनने अथवा इंसुलिन का उपयोग उचित प्रकार से ना होने के कारण रोगी का ब्लड शुगर (ग्लूकोज) लेवल अधिक हो सकता है। बहुत ज्यादा ब्लड शुगर बढ़ने से आंखों में पर्दे (रेटिना) की सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं (ब्लड वेसेल्स) को नुकसान पहुंचता है। पर्दे में सूजन होने से दिखाई देना कम हो सकता है अथवा आंखों के जेली नुमा विट्रियस नामक पदार्थ में रक्त स्राव होने से रोगी को दिखाई देना बन्द हो सकता है। अतः मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को नियमित रूप से वर्ष में दो बार दवा डालकर अपनी आंखों एवं पर्दे (रेटिना) की विस्तृत जांच करवाना जरूरी है।

डायबिटीज से आंखों में नुकसान के लक्षण
डायबिटीज (मधुमेह) से पीड़ित रोगी को केटरेक्ट (मोतियाबिन्द), कालापानी (ग्लूकोमा) एवं पर्दे की समस्याऐं (डायबिटिक रेटिनोपैथी) आदि हो सकते हैं, जिन्हें डायबिटिक आई डिजीज कहा जाता है। डायबिटिज विभिन्न प्रकार से रोगी की आंखों का नुकसान पहुंचा सकती है। जब रोगी की ब्लड शुगर अधिक हो तो धुंधलापन दिखाई दे सकता है अथवा दृष्टि संबंधी अन्य समस्याऐं पैदा हो सकती है। लेकिन, यदि रोगी को किसी प्रकार का कोई लक्षण दिखाई न दे, तो भी आंखों को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए, मधुमेह रोगी लक्षणों पर दिखाई देने का इंतजार न करें, आंखों एवं पर्दे की विस्तृत जांच नियमित रूप से करायें।

ग्लूकोमा तथा डायबिटीज़
हालांकि, 40 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक व्यक्ति को ग्लूकोमा का खतरा अधिक रहता है, लेकिन मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को इसकी 40 प्रतिशत अधिक संभावना रहती है। मधुमेह से पीड़ित रोगियों को ग्लूकोमा होने की अधिक संभावना है। ग्लूकोमा की स्थिति में रोशनी के आस-पास चमकीला घेरा अथवा रंगीन चक्र बनता है, लेकिन आमतौर इसके लक्षण दिखाई नहीं देते हैं इसीलिए ग्लूकोमा को साइलेंट थीफ़ ऑफ़ साईट कहतें हैं। इसका उपचार न कराने से आंख में प्रेशर अधिक बनता है, जिससे आंखों की दृष्टि तंत्रिका (आप्टिक नर्व) क्षतिग्रस्त होने लगती है। लम्बे समय अनियंत्रित ग्लूकोमा होने के परिणाम स्वरूप आंखों की रोशनी समाप्त होने से नेत्रहीनता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ग्लूकोमा के उपचार में आई ड्रोप डालकर आंख के प्रेशर को कम किया जाता है अथवा लेजर या फिर परम्परागत ग्लूकोमा सर्जरी की जाती है।

मोतियाबिन्द तथा मधुमेह –
मधुमेह से पीड़ित रोगियों को मोतियाबिन्द होने की 60 प्रतिशत अधिक संभावना है। स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को युवा अवस्था में मोतियाबिन्द होने का खतरा चार गुना अधिक होता है। ब्लड शुगर को ठीक प्रकार से नियंत्रित न रखने पर मोतियाबिन्द की स्थिति बढ़ सकती है। यह रोशनी में बाधा डालती है और दृष्टि में धुंधलापन पैदा करती है। मोतियाबिन्द सर्जरी में आंख के कुदरती लैंस को हटाकर कृत्रिम लैंस लगाया जाता है, जिससे दृष्टि में सुधार होता है। कई बार मोतियाबिन्द सर्जरी के बाद डायबिटिक रैटिनोपैथी की स्थिति खराब हो सकती है जिसका समय समय पर जांच एवं उपचार आवश्यक है।

डायबिटिक रैटिनोपैथी:
डायबिटिज से पीड़ित व्यक्ति की आंखों के पर्दे में सूजन होना, खून की वाहिकाओं के बढ़ने से खून उतरना आदि लक्षण हो सकते है। इस स्थिति को डायबिटिक रैटिनोपैथी कहते है। हो सकता है कि पहले रोगी को किसी प्रकार के लक्षण नहीं दिखाई दे, लेकिन समय गुजरने के साथ आंख के पर्दे के ब्लड वैसेल्स कमजोर होकर ब्लड वेसेल्स की दीवारों को नुकसान पहुंचा सकते है। इससे फ्ल्यूड लीक हो सकता है जिसे मेकुलर ईडीमा कहते हैं । मधुमेह बढ़ने की स्थिति में क्षतिग्रस्त ब्लड वेसेल्स समुचे रेटिना को प्रभावित कर सकते है। इससे गंभीर रूप से दृष्टि कम हो सकती है अथवा उपचार के अभाव में नेत्र हीनता की स्थिति भी पैदा हो सकती है।

डायबिटिक रैटिनोपैथी उपचार –
आंखों के पर्दे की सघन जांच जैसे फण्डस एग्जामिनेशन एवं आप्टिकल कोहरेन्स टोमोग्राफी (ओ.सी.टी.) से पर्दे पर होने वाले सूजन का पता लगाया जा सकता है। आंख के पर्दे की ब्लड वेसेल्स में लीकेज का पता लगाने के लिए एक विशेष प्रकार के एंजियोग्राम में डाई का उपयोग किया जा सकता है। डायबिटिक रैटिनापैथी की प्रारम्भिक अवस्था का उपचार आमतौर पर एन्टी-वेजएफ इंजेक्शन अथवा फोटो कोगुलेशन नामक लेजर पद्धति से किया जाता है। लेजर ब्लड वेसेल्स को सील करके लीकेज अथवा इसके बढ़ने की रोकथाम करता है।

यह प्रोसिजर खोई दृष्टि को वापस नहीं ला पाता तथापि, परदे की सर्जरी, लेज़र, एंटी वेज़ एफ इंजेक्शन के द्वारा करके डायबिटिज के रेटीना पर होने वाले दुष्प्रभाव को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। डायबिटिक रेटिनोपैथी की अग्रिम अवस्था में यदि रेटिना अपने स्थान से हट जाता है अथवा अधिक मात्रा में रक्त आंख में जमा हो जाता है तो विट्रेकटोमी नामक आपरेशन की आवश्यकता पड़ सकती है। इस सर्जिकल उपचार में आंख के भीतर से स्कैर, टिश्यु, ब्लड तथा धुंधले फ्ल्यूड को साफ किया जाता है। विट्रेकटोमी नामक सर्जरी रोगी आंख की दृष्टि सुधार सकती है। लेकिन दृष्टि बनाए रखने के लिए मधुमेह को नियंत्रित रखना अति आवश्यक है।

डायबिटिक रैटिनोपैथी की रोकथाम-
मधुमेह रोगी ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर तथा काॅलेस्ट्राॅल को नियंत्रित कर नेत्र संबंधी समस्याओं की रोकथाम कर सकते है। व्यापक अध्ययन से पता चला है कि मधुमेह अर्थात् डायबिटिज से पीड़ित व्यक्ति जो अपने रोग नियंत्रित रखने का प्रयास करते है उनमें डायबिटिक रैटिनापैथी की दर 1/4 रहती है। रेटिनापैथी के लक्षणों का शीघ्र पता लगाने के लिए हर वर्ष में दो बार पुतली फैलाने की दवा डालकर विस्तृत नेत्र परीक्षण (रेटिना की जांच) करना भी महत्वपूर्ण होता है। याद रखें डायबिटिज से खोई भी रोशनी लौटाना मुश्किल होता है। इसलिए समय-समय पर जांच एवं उपचार के माध्यम से रोका जा सकता है।

डाइबिटीज को रोकने हेतु नियमित रूप से एक्सरसाईज करें, मोटापे को नियंत्रित रखें, खूब पानी पिएं, लो कार्ब, हाई फाइबर, चने, जो, गेहूं युक्त डायट का सेवन करें, विटामिन डी युक्त पदार्थों का सेवन करें, स्मोकिंग, अल्कोहल से परहेज़ करें। चालीस वर्ष के बाद हर साल में दो बार ब्लड शुगर की जांच नियमित रूप से करवाएं।