ग्लूकोमा का अब शुरुआती चरण में लग जाएगा पता

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लन्दन। वैज्ञानिकों ने पहली बार एक ऐसी जांच विधि विकसित की है जिससे ग्लूकोमा का बिल्कुल शुरुआती चरण में ही पता लगाया जा सकेगा। ग्लूकोमा आंखों की रोशनी जाने की बीमारी है। यह अंधेपन का सबसे बड़ा वैश्विक कारण है। 

ग्लूकोमा के मरीजों की आंखों की रेटिना में कोशिकाओं की मौत होने लगती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, कोशिकाओं की मौत की इस परिघटना को एपोप्टोसिस कहते हैं। इसी वजह से इन मरीजों की आंखों की रोशनी चली जाती है। उन्होंने कहा, अगर रेटिना में कोशिकाओं की मौत का समय रहते पता चल जाए तो उनको बचाने के उपचार किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि नई तकनीक से आंखों की जांच कर रेटिना की कोशिकाओं की मौत की आशंका का पहले ही पता लगाया जा सकता है। इससे तरह आंखों की रोशनी को जाने से रोका जा सकता है। 

शुरुआती हाल पर नजर : 
यह जांच ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और वेस्टर्न आई हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं ने विकसित की है। उन्होंने बताया कि ग्लूकोमा का शुरुआती दौर में पता लगाना कठिन है, क्योंकि जरूरी नहीं कि इसके लक्षण शुरुआती दौर में अपने-आप स्पष्ट हों। शोधकर्ता फ्रांसेस्का कोर्डेरो ने कहा, हालांकि ग्लूकोमा का पता लगाने के तरीके पहले के मुकाबले उन्नत हुए हैं।

लेकिन मौजूदा तरीकों से ज्यादातर मरीजों में जब तक ग्लूकोमा का पता लगता है तब तक उनकी आंखों की एक तिहाई रोशनी जा चुकी होती है। उन्होंने कहा, हमारी नई जांच तकनीक की मदद से डॉक्टर मरीज की आंखों के पिछले हिस्से में किसी एक तंत्रिका कोशिका की मौत को भी देख पाएंगे। 

चमकीले संकेतक से सुराग :
शोधकर्ताओं ने कहा, इस जांच तकनीक में खास तौर विकसित एक चमकीले संकेतक का उपयोग किया गया है। जब मरीज की आंख में इंजेक्शन के जरिये ये संकेतक पहुंचाए जाते हैं तब वे कोशिकाओं की प्रोटीन से चिपक जाते हैं। इसके बाद जब आंखों की जांच की जाती है तब कमजोर कोशिकाएं सफेद चमकीले धब्बों के रूप में नजर आती हैं। इस नई तकनीक को डिटेक्शन ऑफ एपोप्टोसिंग रेटिनल सेल्स (डार्क या डीएआरसी) नाम दिया गया है। इस जांच में उन्हीं उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है जो आंखों की सामान्य जांच में इस्तेमाल किए जाते हैं।   
दस वर्ष पहले पता लगेगा :
शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि इस नई जांच से ग्लूकोमा का पता इसके लक्षणों के प्रकट होने के काफी समय पहले ही लगाया जा सकेगा।  इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि आंखों की रोशनी जाने से रोकी जा सकेगी। ग्लूकोमा में धीरे धीरे आंखों की रोशनी जाती है। ऐसे में जितना जल्दी इसका पता लगाया जा सकेगा, आंखों की रोशनी उतनी ज्यादा बचाई जा सकेगी।

 शोधकर्ता फिलिप ब्लूम ने कहा, शुरुआती दौर में उपचार करने से बीमारी को काबू करने में काफी अधिक सफलता मिलने की संभावना रहती है। नई जांच तकनीक से मरीजों में ग्लूकोमा का पता इसके लक्षण स्पष्ट होने से करीब 10 साल पहले लगा सकते हैं। यह अध्ययन ‘ब्रेन’ जर्नल में छपा है। इसमें इस तकनीक के शुरुआती चिकित्सकीय परीक्षणों को सुरक्षित और उत्साहजनक बताया गया है।