क्या आर्टिफिशल इंटेलिजेंस से खत्म हो रहीं नौकरियां?

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नई दिल्ली। दुनियाभर की कंपनियां आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) को अधिक से अधिक अपनाने पर जोर दे रही हैं। हालांकि, इसबात पर बहस भी चल रही है कि एआई के आने से लोगों के जॉब परिदृश्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। विशेषज्ञ इससे इनकार करते हैं और उनका कहना है कि इससे लोगों के रोजगार पर असर नहीं पड़ेगा, हां उनके रोल जरूर बदल जाएंगे। एक अध्ययन में भी कुछ ऐसी ही बात सामने आई है।

पांच साल पहले तुलसी मलाठी को अपने स्वास्थ्य और दो बच्चों के पालन-पोषण के लिए टीचर की नौकरी छोड़नी पड़ी थी। लेकिन आज की तारीख में 29 साल की मलाठी डेटा लेबलिंग के जरिये हर महीने घर से ही 15,000 रुपये की कमाई कर ले रही हैं। हालांकि, यह रकम बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन उन्हें टीचर की नौकरी में जितनी रकम मिलती थी, उससे यह ज्यादा है और उनके बच्चों की स्कूल फीस और उनके व्यक्तिगत खर्चे के लिए पर्याप्त है।

यू-ट्यूब विडियो से मिला मौका
साल 2017 में एक यू-ट्यूब विडियो के जरिये उन्हें डेटा लेबलिंग का काम करने का मौका मिला था। उनका काम विडियो स्कैन करना और सेल्फ-ड्राइविंग कार्स के रास्ते में आने वाली वस्तुओं को लेबल करना है। उनका आउटपुट इस तरह की कारों को सड़क पर उतारने के लिए आर्टिफिशल इंटेलिजेंस अल्गोरिद्म्स को प्रशिक्षित करना है। माठी की स्थिति पहले से बेहतर हो गई है। वह कहती हैं, ‘मैं घर से ही काम कर सकती हैं और अब मुझे काम और परिवार में से किसी एक को नहीं चुनना पड़ेगा।’

अमेरिका, यूरोप की कंपनियां दे रहीं काम
माठी उन लोगों में से एक हैं, जो अमेरिका और यूरोप को अपने मशीन लर्निंग मॉडल्स को परफेक्ट बनाने में मदद कर रही हैं। उदाहरण के लिए अगर आप चाह रहे हैं कि ड्राइवरलेस कार स्टॉप साइन की सही-सही पहचान कर ले तो आपको हजारों की तादाद में स्टॉप साइन के रूप में तस्वीरों को उसके अल्गोरिदम में फीड करने की जरूरत है। गुड़गांव की कंपनी एआई टच की शर्मिला गुप्ता का कहना है कि डेटा लेबलिंग किसी नवजात बच्चे को ट्रेन करने जैसा है।

बिग डेटा का एआई बिजनस
डेटा लेबलर की शुरुआती सैलरी 15-30 हजार रुपये महीना है। साल 2018 में डेटा लेबलिंग का बाजार 15 करोड़ डॉलर का था। रिसर्च कंपनी कॉग्निलाइटिका ने अनुमान जताया है कि 2023 के अंत तक यह बाजार एक अरब डॉलर का हो जाएगा।

नई तरह की नौकरियों का सृजन
हैदराबाद की जिस कंपनी के लिए मलाठी काम करती हैं, उसका नाम प्लेमेंट है और इसके लिए कुल 25,000 लोग काम कर रहे हैं। ये सभी 18-30 साल आयुवर्ग के हैं और भारत के सुदूरवर्ती इलाकों से काम कर रहे हैं। इस कंपनी के फाउंडर सिद्धार्त माल का दावा है कि जिसके पास भी एक लैपटॉप है और उसे बेसिक इंग्लिश आती है, वह काम शुरू कर सकता है। उन्होंने कहा, ‘हर कोई इस बात की चर्चा कर रहा है कि एआई से लोगों की नौकरियां जा रही हैं, लेकिन एक अलग तरह की नौकरियों का सृजन भी तो हो रहा है।’