किशोरावस्था में होने वाले बदलाव बन सकते हैं मानसिक विकार के कारण: डॉ. अग्रवाल

1391

कोटा। होप सोसायटी के चैयरमेन डाॅ. एमएल अग्रवाल ने कहा कि किशोरावस्था और वयस्कता का शुरुआती साल जीवन का वह समय होता है, जब कई बदलाव होते हैं। स्कूल बदलना, घर छोड़ना तथा कॉलेज, विश्वविद्यालय या नई नौकरी शुरू करना भी मानसिक विकार के कारण कारण हो सकते हैं। कई लोगों के लिए ये रोमांचक समय होता हैं तथा कुछ मामलों में यह तनाव और शंका का समय हो सकता है।

वे गुरुवार को होप सोसायटी व अग्रवाल न्यूरो साइकेट्रिक सेन्टर की ओर से विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर नालंदा अकेडमी में आयोजित परिचर्चा में बोल रहे थे। उन्होंने बताया कि कई लाभों के साथ ऑनलाइन प्रौद्योगिकियों का बढ़ता उपयोग इस आयु वर्ग के लोगों के लिए अतिरिक्त दबाव भी लाया है, हालांकि यदि इसे पहचाना और प्रबंधित नहीं किया जाता है तो यह तनाव मानसिक रोग उत्पन्न कर सकता है।

सभी मानसिक रोगों में से आधे 14 साल की उम्र तक शुरू होते है लेकिन अधिकांश मामले रोग की जानकारी और उपचार के बिना रह जाते है। किशोरों में मानसिक रोग के लिए अवसाद (डिप्रेशन) तीसरा प्रमुख कारण है। आत्महत्या 15 से 29 साल के लोगों के बीच मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है।

उन्होंने बताया कि किशोरों में अल्कोहल और मादक पदार्थों का हानिकारक उपयोग कई देशों में एक प्रमुख समस्या है। यह असुरक्षित यौन संबंध या खतरनाक ड्राइविंग जैसा जोखिमपूर्ण व्यवहार उत्पन्न करता है। आहार विकार भी चिंता का विषय हैं।

उन्होंने बताया कि विश्व में चार व्यक्तियों में से एक व्यक्ति जीवन के किसी न किसी मोड़ पर मानसिक विकार से प्रभावित होता है। यदि अलग-अलग आयु वर्ग को ध्यान में रखकर इस बीमारी के बारे में बात करें तो इसका प्रतिशत अलग-अलग निकलेगा। फिलहाल 10 से 19 साल की उम्र के व्यक्तियों की इस रोग में भागीदारी 16 फीसदी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार 450 मिलियन लोग वैश्विक स्तर पर मानसिक विकार से पीड़ित हैं। विश्व मानसिक स्वास्थ्य संघ (वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ) ने विश्व के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को यथार्थवादी बनाने के लिए वर्ष 1992 में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की स्थापना की थी। मानसिक विकार विश्व में रुग्ण-स्वास्थ्य और विकलांगता उत्पन्न करने वाला प्रमुख कारण हैं।

भारत में लगभग 356 मिलियन लोग दस से 24 वर्ष की आयु के बीच हैं। भारत लगभग तीस प्रतिशत युवा जनसंख्या के साथ युवाओं का देश है। किशोरों और वयस्कों के बीच मानसिक परेशानी की रोकथाम और प्रबंधन की शुरुआत जागरूकता बढ़ाकर और मानसिक रोग के प्रारंभिक चेतावनी संकेतों और लक्षणों को समझकर कम उम्र से की जानी चाहिए। इस अवसर पर डाॅ. अग्रवाल ने छात्र छात्राओं के साथ ही स्कूल फेकल्टी के प्रश्नों के जवाब भी दिए

डाॅ. अविनाश बंसल ने कहा कि विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल 10 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसका एक दूसरा बड़ा कारण ये भी होता है कि विश्व में हर तबके के लोगों को इस बीमारी के बारे में भी पता चले और वो उस लिहाज से उसके बचाव के लिए पहले से तैयार रहें।

शशांक विजयवर्गीय ने कहा कि बच्चों के माता-पिता और शिक्षक घर एवं स्कूल में रोजमर्रा की चुनौतियों का मुकाबला करने में सहयोग के लिए बच्चों और किशोरों के जीवन कौशल निर्माण करने में मदद कर सकते हैं। सामाजिक कौशल, समस्या सुलझाने का कौशल और आत्मविश्वास बढ़ाना महत्वपूर्ण है। मनोवैज्ञानिक सहयोग स्कूलों और अन्य सामुदायिक स्तरों पर प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा प्रदान किया जा सकता है। इस अवसर पर नसरीन जहां, सुधीन्द्र गौड, राजेन्द्र कौर, शालिनी अग्रवाल, डीसी जैन समेत कईं लोग मौजूद रहे।