कहो तो कह दूं: ट्रेचिंग ग्राउण्ड कहीं भी नहीं चाहिए!

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नांता की समस्याओं को उम्मेदगंज शिफ्ट नहीं किया जाए

कोटा नगर निगम ट्रेेचिंग ग्राउण्ड को उम्मेदगंज में शिफ्ट करना चाहती है ये खबर यूं भी समझी जा सकती है कि नांता की समस्या को उम्मेदगंज में स्थानांतरित किया जा रहा है।
सुनने,पढ़ने में लेख का यह शीर्षक भलें ही अचम्भा लगे पर यदि हमारी नगरीय निकायें वास्तव में स्वच्छता मिशन पर वैज्ञानिक सोच के साथ ईमानदारी से काम करें तो आज बदली परिस्थिति में ट्रेचिंग ग्राउण्ड का निस्तारण होना चाहिए। न कि इधर से उधर स्थानांतरित करना।

ये कोई समाधान नहीं है इससे तो जो समस्या नांता में पैदा हुई है, वही उम्मेदगंज में पैदा होगी। आज के वैज्ञानिक युग में हमारे पास बड़ी-बड़ी तकनीक, और संसाधन होने के बाद भी नए ट्रेचिंग ग्राउण्ड खोजने पड़े तो समूची इंजीनियरिंग व प्रशासनिक सोच पर लानत है।

खैर ! ट्रेचिंग ग्राउण्ड हर शहर व गांव के लिए समस्या बन गए है। दिल्ली में तो कुतुब मीनार से भी ऊंचे पहाड़ बन गया है। कोटा की बात करें तो चम्बल के किनारे नांता में भूगर्भ, जलवायु मण्डल प्रदूषित हो गया। नांता गांव ही खतरे में आ गया। बाॅयलोजिकल पार्क पर भी खतरे मण्डराने लगे हैं। सांस लेना भी दूभर हो गया है।

कचरे की समस्या का सीधा समाधान है कि कचरा बनाने की सोच पर प्रहार किया जाए। जिसके लिए हमारे यहां सिर्फ दिखावा हो रहा है। वास्तविक काम न के बराबर है। सफाई के नाम पर सिर्फ कचरे का परिवहन हो रहा है, जो हमारे घर से चौराहे पर और चौराहे से ट्रेचिंग ग्राउण्ड पर ले जाने की बेकार की कवायद की जा रही है। शहर में अनेक स्थानों पर अघाषित ट्रेचिंग ग्राउण्ड बना दिए गए हैं।

तलवंडी का परशुराम सर्किल हो या खड़े गणेश जी मार्ग या फिर चम्बल की नहरें सब में कचरा बहाया जा रहा है या जला कर वायुमण्डल को प्रदूषित किया जा रहा है। तमाम प्रतिबंधों के बावजूद भी नगर निकायों द्वारा पाॅलीथीन, प्लास्टिक को कचरा बनने से नहीं रोका जा रहा प्रतिबंध मजाक बन गया है।

न्यायालयों, एनजीटी की तमाम चेतावनियों और स्वच्छता रैंक में लगातार पिछड़ने पर भी हमारे शासनाधीशों की नींद नहीं टूट रही। पर्यटन विकास के सपने दिखाए जाते हैं और नदियों को गंदे नालो में परिवर्तित कर दिया है। सभी पूजनीय नदियों को मेला ढोने वाली रेलगाड़ी बना दिया गया।

इंदौर, उज्जैन, अम्बिकापुर के उदाहरणों से भी कोई सीख नहीं ली जाती। वैज्ञानिक समाधान एसएलआरए (ठोस, तरल,संसाधन प्रबंध) को गंदी राजनीति की भेंट चढ़ा कर वैज्ञानिक उपायों को ठण्डे बस्ते में डाला जा रहा है तो कोई तो जवाबदेही तय हो।

विधायक कल्पना देवी की आपत्तियां उचित ही है। लेकिन समाधान के लिए भी प्रयास होने चाहिए जो कि ,कचरा कमी करना-पुर्नउपयोग- पुर्नचक्रण – (रिड्यूज रियूज, रिसाईकल) के मंत्र में है। इसी का तंत्र सरकार को विकसित करना है। यह कोई मिसाइल तकनीक नहीं है कि कोई सरकार न कर सके।

  • बृजेश विजयवर्गीय
  • स्वतंत्र पत्रकार एवं अध्यक्ष कोटा एनवायरमेंटल सेनीटेशन सोसायटी चम्बल संसद, जल बिरादरी, इंटेक,बाघ- चीता मित्र)