आकाशीय रंगमंच पर दिखा ब्लू मून, सुपर मून और चंद्रग्रहण

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कई वर्षों बाद आकाश में दिखा चमत्कारिक नजारा, अगला पूर्ण चंद्रग्रहण 2037 में होगा 

अरविंद, कोटा। आकाशीय रंगमंच पर चंद्रमा का अनोखा नजारा राज्य के विभिन्न शहरों में लोगों ने बहुत उत्सुकता से देखा। देश के उत्तरी आसमान में बुधवार शाम 5ः58 बजे से रात 8ः41 बजे तक पूर्ण एवं आंशिक चंद्रग्रहण की दुर्लभ खगोलीय घटना हुई।

वर्षों बाद आकाश में एक माह में दो बार पूर्णिमा के चांद देखने को मिले। इस घटना के समय धीरे-धीरे चंद्रमा पर पृथ्ची की छाया तिरछी (कर्व) होकर बढती गई, इस बदलती रगबिरंगी छाया को कई जगह टेलीस्कोप से निरंतर देखा गया।
नागरिकों एवं बच्चों ने टेलीस्कोप के जरिए चंद्रमा पर पृथ्वी की बदलती छाया को देखा।

वरिष्ठ विज्ञान लेखक देवेंद्र मेवाड़ी ने बताया कि पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए संयोग से नीला चंद्रमा 1 एवं 31 जनवरी को माह में 2 बार देखने को मिला। सुपर मून यानी बड़ा चांद अपने सामान्य आकार से 13-14 प्रतिशत बड़ा दिखाई दिया। चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाता है, जिससे कभी वह 4 लाख किमी दूर हो जाता है,तो कभी 3.56 लाख किमी नजदीक आ जाता है।

जब पृथ्वी के पास आए तो ‘सुपर मून’ कहलाता है। ब्लू मून, सुपर मून के साथ रेड मून यानी चंद्रग्रहण का संयोग कई वर्षों बाद देखने को मिलता है। सूत्रों के अनुसार, बुधवार को आंशिक चंद्रग्रहण शाम 5ः01 बजे गोवाहाटी मे, 5ः28 बजे पटना में दिखाई दिया।

उसके बाद 6ः22 बजे नईदिल्ली में रेड मून पूर्ण चंद्रग्रहण शुरू हुआ जो मुंबई सहित कई शहरों में 6ः29 बजे तक देखा गया। रात्रि 7ः38 बजे चंद्रग्रहण आंशिक ग्रहण में परिवर्तित हो गया। रात 8ः41 बजे के बाद चंद्रमा अपने मूल स्वरूप में चमकता हुआ दिखा।

प्राचीन परम्पराओं के अनुसार, कई मंदिरों में पूर्ण चंद्रग्रहण के कारण आरती का समय बदला गया। ग्रहण का सूतक मानकर कई लोगों ने नए कार्य शुरू नहीं किए। ग्रहण के पश्चात लोगों ने स्नान कर जगह-जगह पूजा-पाठ किए और दान-पुण्य किया।

ऐसे होता है चंद्रग्रहण
एजुसेट, नई दिल्ली के प्रोजेक्ट अधिकारी नवनीत गुप्ता ने बताया कि चंद्रग्रहण चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ने के कारण दिखाई देता है। चन्द्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा से 50 झुकी हुई है। सूर्य के चारों ओर घूमते हुए कभी-कभी सूर्य, पृथ्वी व चंद्रमा एक सीधे में आ जाते हैं। चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है।

चंद्रमा पर सूर्य को जो प्रकाश पडता है, वह पलटकर हमें चमकीले चांद के रूप में दिखता है। लेकिन जब सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है तो उसकी छाया सीधे चंद्रमा पर पड़ती है, ऐसे समय वह तांबई, सिंदूरी या भूरे रंग का दिखाई देता है।

उन्होंने बताया कि पूर्णिमा पर जब सूर्य व चंद्रमा के बीच पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है तो चंद्रमा का कुछ भाग धूमिल होकर चाप के आकार में कटा हुआ रहता है और पृथ्वी से नहीं दिखाई देता। इसे खंड या आंशिक चंद्रग्रहण कहते हैं। जब पृथ्वी की छाया समूचे भाग पर पड़ती है तो चंद्रमा अंधकारमय हो जाता है, जिसे पूर्ण ग्रहण ( टोटल इक्लिप्स) कहते है। चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण की अपेक्षा कम होता है लेकिन निर्दिष्ट क्षेत्र में यह सूर्यग्रहण की अपेक्षा अधिक बार दिखाई पड़ता है।