दो टैक्स स्लैब्स में सिमट जाएगा जीएसटी, राज्य सरकारों का दबाव

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नई दिल्ली। केंद्र और राज्य सरकारें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में बदलावों को लेकर चर्चा करती रही हैं, खासकर टॉप ब्रैकिट के टैक्स की। लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि अगस्त में अनुमान से ज्यादा टैक्स जमा होने की वजह से ही आखिरकार इस दिशा में आगे बढ़ने की हिम्मत मिली और टॉप टैक्स स्लैब के 175 से ज्यादा आइटम्स सस्ते कर दिए गए।

ज्यादा टैक्स कलेक्शन से मिला रेट कट का हौसला
लेनदेन न्यूज़ को बताया कि राज्यों की नजर जुलाई महीने के 17,000 करोड़ रुपये के टैक्स घाटे पर थी। हालांकि अगस्त तक यह घाटा 7000 करोड़ रुपये तक आ गिरा और ऑटोमोबिल्स, एअरेटिड ड्रिंक्स तथा तंबाकू पर लगाए गए सेस से करीब 8,000 करोड़ रुपये जमा हो गए तो मंत्रियों को सांस लेने की थोड़ी जगह मिली और रेट कट के लिए आगे बढ़ने का हौसला।

दो टैक्स स्लैब्स में सिमट जाएगा जीएसटी?
लेनदेन न्यूज़ ने जिन मंत्रियों से बात की उन्होंने कहा कि अगले दौर के बदलाव के बारे में यह कहना जल्दबाजी होगी कि रूपरेखा पूरी तरह स्पष्ट है। अगले कुछ महीनों में जब जीएसटी काउंसिल की मीटिंग होगी तो टॉप ब्रैकिट में बाकी बचे 50 आइटम्स को भी 28% के टैक्स स्लैब से निकाल लिया जाएगा।

बड़ी बात यह है कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली शुक्रवार को इस मुद्दे पर बात करने से बचते दिखे, लेकिन अधिकतर राज्यों की चाहत है कि जीएसटी के स्लैब्स जल्द-से-जल्द घटकर तीन रह जाएं।

सूत्रों ने कहा कि गुवाहाटी में जीएसटी काउंसिल मीटिंग के दौरान कुछ राज्यों ने जीएसटी को धीरे-धीरे मात्र दो स्लैब्स तक समेटने पर जोर दिया क्योंकि वे इसे नई टैक्स व्यवस्था को सही से लागू करने का साफ-सुथरा और आसान तरीका मानते हैं।

12% और 18% का स्टैंडर्ड
जब जीएसटी की कल्पना की गई तो योजना एक या ज्यादा-से-ज्यादा दो टैक्स रेट की थी, लेकिन राजनीतिक कारणों से सरकार को चार टैक्स स्लैब्स तय करने पड़े। इसकी विपक्ष और एक्सपर्ट्स ने खूब आलोचना की।

सूत्रों ने यह कहते हुए दो दरों वाले जीएसटी सिस्टम को लेकर कोई अनुमान जताने से इनकार कर दिया कि यह प्रस्ताव अब भी ‘चर्चा के दौर में’ है और ऐसा करने में अभी वक्त लगेगा।

तत्काल तो यही है कि जीएसटी रेट स्ट्रक्चर में अगले दौर के बदलाव के तहत 18% वाले आइटम्स की लिस्ट छोटी की जाएगी और धीरे-धीरे 12% और 18% के दो स्टैंडर्ड रेट्स तक जीएसटी को सीमित कर दिया जाएगा।

केंद्र का डर
दरअसल, टैक्स स्लैब्स में कटौती को लेकर केंद्र सरकार में डर का भाव है कि इससे रेवेन्यू घट जाएगा। यही कारण है कि 28% प्रतिशत वाली लिस्ट को छोटा करने का फैसला लेने में गुवाहाटी मीटिंग तक का वक्त लग गया।

केंद्र सरकार ने टॉप ब्रैकिटवाले अधिकतर आइटम्स को सस्ता करने का फैसला तभी लिया जब बीजेपी का दबाव पड़ा और अगस्त में अनुमान से ज्यादा रेवेन्यू हासिल हो गया।

बीजेपी और चुनाव का दबाव
बीजेपी के नेतृत्व वाले राज्यों के वित्त मंत्रियों ने माना कि ऊंची टैक्स दर से जीएसटी की छवि खराब हुई और लोगों के मन में इस नई व्यवस्था के प्रति गलत धारणा बनने लगी कि इससे सामान महंगे हो गए हैं।

मंत्री ने कहा, ‘ऊपर से ऐसा लगा कि टैक्स रेट बहुत ज्यादा है जबकि हकीकत में पहले कुछ प्रॉडक्ट्स पर वैट और सर्विस टैक्स जोड़कर ज्यादा टैक्स वसूला जा रहा था।’

विपक्ष गुजरात चुनाव में जीएसटी पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा था। ऐसे में केंद्र सरकार ने रेट कट का फैसला ले लिया जबकि इससे टैक्स कलेक्शन में 20,000 करोड़ रुपये की कमी आने का अनुमान है।