बैकफुट पर आई राजे सरकार ने विधायकों के लिए ‘लाभ का पद’ बचाया

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जयपुर। लोकसेवकों को संरक्षण की आड़ में सरकार जनता की आवाज को दबाने में तो फिलहाल कामयाब नहीं पाई लेकिन विधायकों के लिए ‘लाभ का पद’ बचा लिया है।

सरकार ने विधानसभा में राजस्थान विधानसभा सदस्य (निरर्हता-निवारण) विधेयक 2017 पारित करा दिया। इसके तहत अब संसदीय सचिव, बोर्ड निगम, समिति या प्राधिकरण के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या निदेशक के पद पर बैठा कोई भी विधायक लाभ के पद के आधार पर अयोग्य नहीं होगा।

दिल्ली में संसदीय सचिव बनाए गए 21 विधायकों की सदस्यता पर तलवार लटकती देख सरकार ने उक्त विधेयक पारित कराया है। इन पदों पर रह सकेंगे विधायक, नहीं कहलाएंगे लाभ के पद-

  • राज्य मंत्री/उप मंत्री
  • सरकारी मुख्य सचेतक/उपमुख्य सचेतक
  • संसदीय सचिव/अवर संसदीय सचिव
  • नेता प्रतिपक्ष
  • लोक महत्व की समिति, प्राधिकरण के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सदस्य
  • सहायक वायु सेना/एयर डिफेंस रिजर्व अफसरों के पद
  • कानूनी निकाय के अध्यक्ष, निदेशक, सदस्य
  • ऐसे बीमाकर्ता, जिसके नियन्त्रणाधीन कारोबार का प्रबंधन जीवन बीमा अधिनियम के तहत हो
  • सरकार की ओर से नियुक्त प्लीडर/विशेष सरकारी सरकारी प्लीडर/अधिवक्ता
  • किसी पैनल के वकील का पद, जो शुल्क-वेतन लेता हो तो वह नहीं हकदार
  • (समिति का अर्थ सरकार की ओर से गठित कोई भी समिति, आयोग, परिषद, बोर्ड या निकाय, चाहे कानूनी हो या न हो)

तिवाड़ी बोले, हमारी मुख्यमंत्री में कौन से तारे लगे हैं
विधेयक पर बहस करते हुए भाजपा विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने कहा, विधेयक के रूप में यह चोर दरवाजे से संविधान का गला घोटकर मंत्री पद देने वाला रास्ता है। जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और आसाम के मुख्यमंत्री संसदीय सचिव नियुक्त नहीं कर सकते तो हमारे मुख्यमंत्री में कौन से तारे लगे हुए हैं?
 
उïन्होंने सरकार को बताया कि गत 26 जुलाई को ही सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बैंच ने निर्णय दिया है कि मुख्यमंत्री को विधायकों में से संसदीय सचिव, अवर संसदीय सचिव या बोर्ड-निगम का अध्यक्ष बनाने का अधिकार नहीं है। यह असंवैधानिक है।
 
देश के 8 हाईकोर्ट भी इस तरह का निर्णय दे चुके हैं। पंजाब में 2016 में 18 संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द की जा चुकी है। अटलबिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते संविधान संशोधन कर मंत्री पद की संख्या 15 फीसदी तय की गई थी। अब सरकार संविधान का गला घोटकर चोर गली से विधायकों को मंïत्री बनाने का रास्ता बना रही है।
 
भिंडा बोले, हारे हुए नेताओं की शरणस्थली है बोर्ड-निगम
विराटनगर से भाजपा के ही विधायक फूलचंद भिंडा ने कहा, मैंने कॉलेज में पढ़ा था कि हारे हुए नेताओं की शरणस्थली बोर्ड-निगम की चेयरमैनशिप कहलाती है।

आज जिस सदन का सदस्य हूं, वहां नैतिकता की कसौटी कसी जानी चाहिए। नैतिकता तो यह है कि विधेयक पर पुर्नविचार होना चाहिए, लेकिन पार्टी अनुशासन में रहने के चलते इसके जनमत का प्रस्ताव वापस लिया है।

राठौड़ का जवाब : यह विधेयक केवल घोषित करता है
विधेयक पर बहस के जवाब में संसदीय कार्यमंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने कहा, यह विधेयक संसदीय सचिव पद पर विधायकों की नियुक्ति के लिए नहीं है।

यह केवल घोषित करता है कि कोई विधानसभा सदस्य संसदीय सचिव नियुक्त हो जाता है तो वह लाभ के पद के आधार पर अयोग्य नहीं होगा। इसका संविधान के 91 वें संशोधन से लेना-देना नहीं है। सरकार की मंशा पुराने दो विधेयकों को एक करने की थी, जो किया है।