नई दिल्ली। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला का कहना है कि नया संसद भवन वक्त की जरूरत है। इस पर अनावश्यक विवाद खड़ा किया जा रहा है। जब यह फैसला हुआ था, तब किसी ने आपत्ति दर्ज नहीं की थी और अब जब इसका 15 से 20 फीसदी निर्माण कार्य हो चुका है तो उस पर आपत्ति की जा रही है और ऐसा स्थापित करने की कोशिश हो रही है कि इस पर जो खर्च हो रहा, उसकी वजह से देश के बाकी काम रुक गए हैं, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। ओम बिरला के बतौर स्पीकर शनिवार को दो साल पूरे हो रहे हैं। उन्होंने स्पीकर के रूप में अपने अनुभव साझा किए।
सवाल : बतौर स्पीकर आपका दो साल का अनुभव कैसा रहा?
जवाब : अनुभव काफी अच्छा और सहयोगात्मक रहा। इस दौरान सदन की उत्पादकता बढ़ने के साथ-साथ सदस्यों की भागीदारी भी बढ़ी। पहले सत्र में ही मैंने अधिकतम सदस्यों को बोलने का मौका दिया। मौजूदा लोकसभा में अब तक की सबसे ज्याद संख्या में चुनकर महिलाएं पहुंची थीं। सरकार की तरफ से सकारात्मक पक्ष य रहा कि पहले जहां उसकी तरफ से 50 से 60 फ़ीसदी सवालों के जवाब आता था, अब वह बढ़कर कर 90 – 95 फ़ीसदी हो चुका है। इसमें सभी का सहयोग रहा।
सवाल : इन दो सालों में आपको क्या बेहतर लगा ?
जवाब : हमारे पुराने माननीय अध्यक्षों ने जो मानदंड स्थापित किए, उनके चलते आज सदन की अपनी गरिमा है। हम चाहते हैं कि इनमें और बदलाव हो, ताकि देश की जनता का संसद के प्रति विश्वास बढ़े। सदन का माहौल ऐसा होना चाहिए कि जहां लोगों को लगे कि हमारी समस्याएं वहां पहुंचती हैं और उनका निराकरण होता है। सदन में जन-अपेक्षाओं की जितनी ज्यादा भागीदारी होगी, उतना ही लोगों का भरोसा बढ़ेगा। इसीलिए हमारी कोशिश होती है कि सदन बार-बार बाधित न हो।
सवाल : सदन की कार्यवाही में सक्रियता के लिए क्या कोई कदम ?
जवाब : मैंने शुरू से ही सभी सदस्यों से आग्रह किया कि वह सदन में अपनी बात रखें। पहले सत्र से ही मैंने लोगों को ज्यादा से ज्यादा बोलने का मौका दिया। कई सदस्यों को अभ्यास नहीं था, बोलने में संकोच होता था तो मैंने उनसे कहा आप बोलिए। नतीजा हुआ कि आज हमारे माननीय सदस्य खुलकर अपनी बात रख रहे हैं।
सवाल : सदन के भीतर सदस्यों के बीच टकराव की वजह ?
जवाब : मुझे लगता है कि कुछ संवाद और बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि संवादहीनता न रहे। मेरी कोशिश रहती है कि संसद के भीतर और बाहर दोनों ही जगह चर्चा और संवाद बना रहे, ताकि किसी मुद्दे पर आपसी सहमति बन कर ठीक से चर्चा हो सके। इस कोशिश का नतीजा भी दिख रहा है।
सवाल : सेंट्रल विस्टा को लेकर काफी विवाद चल रहा है, नया संसद भवन भी जिसका हिस्सा है। क्या आपको लगता है कि नई संसद की अभी इतनी जरूरत है?
जवाब : नए संसद भवन की चर्चा बहुत दिनों से चल रही है। फिलहाल मौजूदा भवन दुनिया की सबसे बेहतरीन इमारत है, जो हमारे लोकतंत्र व संविधान की आस्था का केंद्र है। यहीं हमने आजादी देखी, यहीं संविधान बना। जब मौजूदा संसद भवन बना था तो न सिर्फ सदस्यों की संख्या कम थी, बल्कि उनकी जरूरतें भी कम थीं। बदलती जरूरतों के मुताबिक सदन के मूल ढांचे में तो बदलाव नहीं हुआ, लेकिन आंतरिक रूप से समय-समय पर काफी बदलाव हुआ है।