बैंकों के मर्जर प्लान पर मोदी कटघरे में

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आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने पीएम मोदी से किये सवाल, कहा  सरकार को साफ करना चाहिए कि इससे क्या मकसद हल होगा

नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने मोदी सरकार की पब्लिक सेक्टर बैंकों के मर्जर (विलय) की नीति पर सवाल उठाए हैं। राजन ने मर्जर प्लान को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि सरकार को साफ करना चाहिए कि इससे क्या मकसद हल होगा।

राजन ने कहा, ‘बैंक मर्जर एक जटिल प्रक्रिया है। एकीकरण के लिए बैंकों के सीईओ और मैनेजरों को काफी वक्त और मेहनत की जरूरत है। इसके लिए आपको आईटी और मानव संसाधन (एचआर) जैसे सिस्टम का विलय करना होगा, जिसके लिए काफी काम करना होगा।’

आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि बैंक पहले से ही कमजोर हैं, जिससे विलय के बाद उनकी परेशानियां और बढ़ जाएंगी। राजन ने साक्षात्कार के दौरान कहा, ‘आपको यह बताना पड़ेगा कि ये काम कितना आसान है, यह क्यों मददगार होगा और कहीं ऐसा न हो कि ध्यान भटकाने के बाद समूची बैंकिंग व्यवस्था कमजोर हो जाए।’

दरअसल मोदी सरकार पीएसयू (पब्लिक सेक्टर यूनिट) बैंकों की संख्या 21 से घटाकर 15 करते हुए उनके एकीकरण की योजना बना रही है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि विलय का मकसद बैंकों को मजबूत बनाना है।

वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान 9 बैंकों को 18,066 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। वहीं बैंकिंग ऑपरेशन का विस्तार करने की वजह से 6 बैंक मुश्किल का सामना कर रहे हैं।

पीएसयू के दो बैंकों की हालत भी खराब है। बेकार परिसंपत्ति (जंक ऐसेट्स) की वजह से उन्हें प्रतिबंध झेलने पड़ सकते हैं। पीएनबी का बैड लोन उसके कुल कर्ज का 7.8 फीसदी है, जबकि केनरा बैंक का नेट बैड लोन मार्च 2017 तक 6.3 फीसदी है।

बैंकों ने भी अपनी परेशानियों के बारे में सरकार को जानकारी दी थी। ईटी ने पहले ही खबर प्रकाशित की थी कि पीएनबी, केनरा बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे बैंक विलय से पहले छोटे बैंकों के लिए कई शर्तें रख सकते हैं।

एक अहम शर्त यह भी है कि संबंधित बैंक मुनाफे में चल रहा होना चाहिए। छोटे बैंकों के पास अच्छी पूंजी होने के बावजूद अधिग्रहण करने वाले बैंकों ने सरकार से और पूंजी की मांग की है।

बातचीत में रघुराम राजन ने विलय को लेकर सरकार की प्रभावी भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सवाल किया, ‘क्या इन सभी प्लान का निर्णय नॉर्थ ब्लॉक की तरफ से किया जा रहा है?

अगर सभी कदमों का फैसला नॉर्थ ब्लॉक कर रहा है, तो ऐसा लगता है कि हम अभी हकीकत में ज्ञान संगम की तरफ नहीं बढ़ सके हैं, जो बदलाव के लिए जरूरी है। अगर नॉर्थ ब्लॉक ही फैसला ले रहा है, तो अब तक व्यवस्था में क्या बदला है?’

बैंकों का मानना है कि विलय का फैसला सरकार के बजाए उनके बोर्ड को करना चाहिए। अगस्त के आखिरी हफ्ते में सरकार ने कहा था कि बैंकों के बोर्ड को मर्जर की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए, जबकि मंत्रियों का समूह बनाकर एकीकरण प्लान को मंजूरी मिलने से पहले पूरी जांच-परख होनी चाहिए।

रघुराम राजन ने केंद्र सरकार के बैंकों के मर्जर प्लान पर सवाल उठाते हुए सोमवार को कहा था कि बैंकों का विलय तब होना चाहिए जब उनका स्वास्थ्य अच्छा हो, न कि जब उनका स्वास्थ्य खराब हो।

इससे पहले रघुराम राजन नोटबंदी को लेकर भी सरकार को कठघरे में खड़ा कर चुके हैं। राजन ने कहा था कि उन्होंने सरकार को नोटबंदी से दीर्घावधि के फायदों पर निकट भविष्य के नुकसान के हावी होने को लेकर चेतावनी दी थी।