कानून की अनदेखी पर सीएम ममता बनर्जी के खिलाफ कार्रवाई के लिए CBI स्वतंत्र

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नई दिल्ली। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा समर्थकों के साथ सीबीआइ दफ्तर पर धरना देने की अभूतपूर्व घटना का हवाला दे टीएमसी नेताओं की हाउस अरेस्ट का विरोध कर रही सीबीआइ से मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कानून तोड़ने पर मुख्यमंत्री और कानून मंत्री पर कार्रवाई करने को स्वतंत्र है लेकिन उनके कृत्यों का खामियाजा अभियुक्त नहीं भुगत सकते। कोर्ट ने कहा कि नेताओं के धरने आदि को सराहा नहीं जा सकता। न ही कोर्ट मुख्यमंत्री और कानून मंत्री के कृत्यों का समर्थन करता है। अभियुक्तों की जमानत और नेताओं के कृत्य दोनों अलग अलग मामले हैं। उन्हें मिला कर नहीं देखा जा सकता।

टीएमसी नेताओं के हाउस अरेस्ट (नजरबंदी) के आदेश में दखल देने की अनिच्छुक दिख रही पीठ का मंतव्य समझते हुए सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली।सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल कर नारद घोटाले में गिरफ्तार किए गए टीएमसी नेताओं के हाउस अरेस्ट के हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

सीबीआइ ने नेताओं की गिरफ्तारी पर राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के समर्थकों के साथ सीबीआइ दफ्तर पर धरना देने और सीबीआइ अधिकारियों के दफ्तर से बाहर न आ सकने की अभूतपूर्व स्थिति को आधार बनाया था। साथ ही राज्य के कानून मंत्री का आदेश जारी होने तक कोर्ट में रहने को भी दबाव के दांवपेच अपनाने की तरह पेश किया था।

जस्टिस विनीत सरन और बीआर गवई की पीठ ने सीबीआइ को याचिका वापस लेने की इजाजत देते हुए कहा कि वह मामले की मेरिट पर कोई आदेश नहीं दे रहे हैं। इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ कर रही है। याचिकाकर्ता सीबीआइ और अन्य पक्षकार सारी दलीलें हाईकोर्ट के सामने रख सकते हैं।

इससे पहले सीबीआइ की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह मामला बहुत गंभीर है। सुप्रीम कोर्ट को इसका संज्ञान लेना चाहिए। यह देखा जाना चाहिए कि किन परिस्थितियों में हाउस अरेस्ट का आदेश पारित हुआ। मेहता ने कहा कि मामले की जांच चल रही है। सीबीआइ ने चार लोगों को गिरफ्तार किया है। गिरफ्तारी के बाद लोगों की भीड़ ने सीबीआइ का दफ्तर घेर लिया।

मुख्यमंत्री भी वहां आ गई और उन्होंने वही धरना देना शुरू कर दिया। भीड़ ने सीबीआइ दफ्तर पर पत्थरबाजी की, जिसके कारण अधिकारी दफ्तर से बाहर नहीं निकल पाए। सीबीआइ के लोक अभियोजक जमानत का विरोध करने के लिए कोर्ट नहीं पहुंच पाए और उन्होंने मोबाइल फोन के जरिये बहस की। दूसरी ओर राज्य के कानून मंत्री आदेश पारित होने तक कोर्ट में बने रहे।

मुख्यमंत्री और कानून मंत्री ने सीबीआइ पर दबाव बनाया। मुख्यमंत्री गिरफ्तार लोगों के समर्थन में थीं। इन परिस्थितियों में हुई कोर्ट की सुनवाई पर शीर्ष अदालत को गौर करना चाहिए। मेहता ने कहा कि मामले को राज्य के बाहर स्थानांतरित किया जाना चाहिए। लेकिन पीठ उनकी दलीलों से सहमत नहीं हुई। पीठ ने कहा, मामले की सुनवाई हाईकोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कर रही है। मामले को राज्य से बाहर स्थानांतरित करना हाईकोर्ट को हतोत्साहित करना होगा।

पीठ ने कहा की यहां दो मुद्दे हैं। एक राजनेताओं के कृत्य और दूसरा व्यक्ति की आजादी। यहां अभियुक्तों की जमानत पर विचार हो रहा है। कोर्ट दोनों मुद्दों को मिला कर नहीं देख सकता। मुख्यमंत्री, कानून मंत्री ने जो किया है उसके लिए आप उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। लेकिन उनके कामों का खामियाजा अभियुक्त नहीं भुगत सकते।

कोर्ट पर दबाव की दलील पर पीठ ने कहा कि हम नहीं समझते कि हमारी अदालतें किसी दबाव में आ सकती हैं। जस्टिस गवई ने इस संबंध में अपना एक पुराना संस्मरण भी सुनाया। मामले में नोटिस के बगैर बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील विकास ¨सह मौजूद थे और उन्होंने सीबीआइ की याचिका का विरोध किया।