बेंगलूरु। स्थानीय भाषा में सामग्री एवं खबरें एकत्र कर अपने उपयोगकर्ताओं तक पहुंचाने वाली डेलीहंट(dailyhunt) 2020 का अंत शानदार तरीके से कर रही है। तकनीक क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और अल्फावेव (फाल्कन एज की इकाई) से 10 करोड़ डॉलर से अधिक रकम जुटाने के बाद डेलीहंट की मूल कंपनी वर्स इनोवेशन भारतीय यूनिकॉर्न (एक अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाली कंपनी) में शुमार हो गई है। स्थानीय भाषा के क्षेत्र में काम करने वाली यह पहली यूनिकॉर्न है।
डेलीहंट की शुरुआत स्थानीय भाषाओं में एक मीडिया प्लेटफॉर्म तैयार करने के लिए हुई थी और अब इसने देश के ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों के लिए कई मोबाइल ऐप्लिकेशन तैयार करने शुरू कर दिए हैं। डेलीहंट के सह-संस्थापक एवं फेसबुक इंडिया के पूर्व प्रमुख उमंग बेदी कहते हैं, ‘हम स्थानीय भाषाओं में सामग्री पढऩे-देखने वालों का वक्त, ध्यान और उनसे कमाई चाहते हैं।’ बेदी डेलीहंट के एक अन्य सह-संस्थापक वीरू गुप्ता के साथ मिलकर देश में स्थानीय भाषाओं का सबसे बड़ा डिजिटल प्लेटफॉर्म तैयार करना चाहते हैं। गुप्ता ने कहा कि बेदी के हमारे साथ जुडऩे से देश में सोशल मीडिया क्षेत्र की दिग्गज कंपनी फेसबुक से लोहा लेने का साहस भी अब हमारे अंदर आ गया है।
स्थानीय भाषाओं में सामग्री देने के लिए कंपनी ने ‘जोश’ नाम से एक वीडियो ऐप्लीकेशन तैयार किया है। भारत में टिकटॉक पर प्रतिबंध लगने के दो हफ्ते बाद इसकी शुरुआत हुई थी। कंपनी ने विभिन्न इकाइयों से जो रकम जुटाई है उसका इस्तेमाल जोश का विस्तार करने में लगाया जाएगा।
गूगल के आंकड़ों के अनुसार देश में जितने मोबाइल डेटा (इंटरनेट) का इस्तेमाल होता है उनमें 45 प्रतिशत की खपत ग्रामीण क्षेत्रों में होती है। इनमें भी इंटरनेट का ज्यादातर इस्तेमाल वीडियो देखने में होता है। हालांकि इन इंटरनेट उपभोक्ताओं में बड़ी तादाद उन लोगों की है, जिन्हें उनकी भाषा में सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती है। इस वजह से उनके लिए इंटरनेट का इस्तेमाल सीमित हो जाता है और यह हालत तब है जब इंटरनेट लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा हो गया है।
मंगलवार को अपने ब्लॉगस्पॉट में गूगल के उपाध्यक्ष सीजर सेनगुप्ता ने कहा, ‘डेलीहंट में हमारा निवेश इस बात का संकेत देता है कि हम भारत के तेजी से उभरती स्टार्टअप इकाइयों में कितनी गंभीरता से दिलचस्पी ले रहे हैं। हम एक ऐसी समावेशी डिजिटल अर्थतंत्र तैयार करने की कोशिश कर रहे है जो सभी के लिए लाभदायी होगा।’
बेंगलूरु स्थित डेलीहंट काफी लंबे समय से स्थानीय भाषाओं में सामग्री देने की रणनीति पर काम कर रही थी। शॉर्ट वीडियो ऐप एक ऐसा जरिया था, जिस पर कंपनी पिछले कुछ समय से काम कर रही थी। देश में चीन के मोबाइल ऐप्लीकेशन पर रोक कंपनी के हित में गई और इसने मौका भांपते ही पूरे जोश के साथ जोश उतार दिया। इस समय जोश पर करीब 70 प्रतिशत तक सामग्री छोटे शहरों में रहने वाले लोग दे रहे हैं।