राजस्थान के वायुमंडल में उल्कापिंड टूटने की देखिए पहली तस्वीर

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बीकानेर। सौर मंडल से धरती के वायु मंडल में प्रवेश करने वाले उल्कापिंड के टूटने की राजस्थान में यह पहली तस्वीर है। इसे बीकानेर से सूरतगढ़ जाने वाले हाईवे पर ट्रैवल फोटोग्राफर उमेश गोगना ने कैद किया है। आकाश में असंख्य तारों के बीच में कुछ टूटते तारे फोटो में कैद हुए। गोगना बताते हैं कि हर साल दिसंबर में ये खगोलीय घटना होती है।

इसे कैमरे में कैद करने की सोची। पता किया कि कब, कहां और कैसे इस घटना को कैमरे में कैद सकते हैं। तय समय पर बीकानेर-सूरतगढ़ हाईवे पहुंचा, लेकिन शॉवर का पीक टाइम दिन में था। रात में तारों में केवल 6 उल्काओं के टूटने की घटना कैद हुई। ये तस्वीर 2 घंटे के प्रयास के बाद बन पाई।

2 घंटे तक 240 से ज्यादा क्लिक
लोकेशन देखने के बाद सबसे पहले कैमरे को ट्राइपॉड पर सेट किया। फिर कैमरे का फ्रेम फिक्स किया। आकाश में होने वाली हर घटना उसमें कैद होती रही। लगातार 2 घंटे तक कैमरे से करीब 240 से ज्यादा क्लिक किए। उनमें से केवल 6 इमेज में तारे टूटते दिखे। तब उल्कापिंड की तस्वीर कैमरे में कैद हो पाई। फोटोशॉप से जब उन 6 फ्रेम को एक किया गया तो ये भव्य तस्वीर बनी।

क्यों होती है ऐसी आतिशबाजी
तेज गति से धरती के वायुमंडल में पहुंचने से घर्षण के कारण उल्कापिंड में आग लग जाती है। इसकी वजह से यह चमक उठते हैं और टूटते हुए तारे का आभास देते हैं। कॉमेट हेली के छोटे अवशेषों के कारण 4 दिन तक आसमान में होने वाली इस आतिशबाजी की अनोखी खगोलीय घटना को वैज्ञानिकों ने ऐटा एक्वारिड मेटियोर शॉवर नाम दिया है।

क्याें टूटते हैं तारे?
कोई तारा टूटता नहीं है। देखने में ऐसा लगता है कि आकाश से कोई तारा टूटा है। तारा खुद एक सूर्य के समान होता है। जो तारे हमें टूटते हुए दिखाई देते हैं, वह गैसीय पिंड या उल्का पिंड होते हैं। लाखों उल्कापिंड सौर मंडल में जब घूमते हुए धरती के वायु मंडल में प्रवेश करते हैं तो वे जलकर बिखर जाते हैं। इस घटना को ही तारे का टूटना कहते हैं।