जियो की झोली में जाएगी अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्राटेल, NCLT ने दी मंजूरी

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नई दिल्ली। इंसॉल्वेंसी कोर्ट NCLT ने रिलायंस इंफ्राटेल (RITL) के रिजॉल्यूशन प्लान को मंजूरी दे दी। इस मंजूरी के बाद अब रिलायंस जियो इंफोकॉम द्वारा दिवालिया कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस के टावर और फाइबर असेट्स का अधिग्रहण करने का रास्ता साफ हो गया। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) द्वारा स्वीकृत योजना के तहत रिलायंस इंफ्राटेल के रिजॉल्यूशन के जरिये कर्जदाता करीब 4,000 करोड़ रुपए की रिकवरी कर सकेंगे। जियो मुकेश अंबानी की कंपनी है, जबकि रिलायंस कम्युनिकेशंस उनके छोटे भाई अनिल अंबानी की कंपनी है

एक जानकार सूत्र ने बताया कि रिलायंस कम्युनिकेशंस की 100 फीसदी सब्सिडियरी रिलायंस इंफ्राटेल के पास 43,000 टावर और 1,72,000 किलोमीटर का फाइबर असेट है। इकॉनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि NCLT रिजॉल्यूशन प्लान का डिस्ट्रिब्यूशन दोहा बैंक के इंटरवेंशन अप्लिकेशन के फैसले पर निर्भर करेगा। एक अन्य लीगल सोर्स ने कहा कि NCLT ने प्लान को स्वीकार तो कर लिया है, लेकिन उसने रिकवरी मनी को एक सरकारी बैंक के एस्क्रो अकाउंट में डालने का निर्देश दिया है, जिसमें ब्याज मिलता रहे।

इस मामले में डेलॉई के अनीश नानावटी रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) हैं और डेलाई के ही पार्टनर और कॉरपोरेट फाइनेंस व रीस्ट्रक्चरिंग हेड सुमित कुमार खन्ना RP के एडवायजर हैं। कर्जदाताओं ने जिस व्यापक योजना को मंजूरी दी है, उसके तहत रिलायंस कम्युनिकेशंस और उसकी सहायक कंपनी RTIL का अधिग्रहण UVARCL करेगी, जबकि टावर यूनिट रिलायंस इंफ्राटेल जियो के पास चली जाएगी। इस योजना से 20,000-23,000 करोड़ रुपए मिलेंगे, जिसका भुगतान 7 साल में होगा।

रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 46,000 करोड़ रुपए का कर्ज
रिलायंस कम्युनिकेशंस ने जब बैंक्रप्सी के लिए फाइल किया था, तब उस पर 46,000 करोड़ रुपए का कर्ज था। कंपनी पर 53 फाइनेंशियल क्रेडिटर्स ने दावा किया है, जिसमें घरेलू व विदेशी बैंक, नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी और फंड्स शामिल हैं। इसके अलावा टावर कंपनियों, इक्विपमेंट वेंडर्स और टेलीकॉम डिपार्टमेंट जैसे ऑपरेशनल क्रेडिटर्स ने करीब 30,000 करोड़ रुपए का दावा किया है, जिसमें से 21,000 करोड़ रुपए से ज्यादा के दावे वैरीफाई किए जा चुके हैं।

2017 के अंत में कारोबार बंद करना पड़ा था
सितंबर 2016 में मोबाइल सर्विस सेक्टर में जियो की एंट्री से प्रतिस्पर्धा बढ़ने के बाद कर्ज और घाटा बढ़ने के कारण 2017 के अंत में रिलायंस कम्युनिकेशंस को अपना कारोबार बंद करना पड़ा। कंपनी ने स्पेक्ट्रम व टावर जैसे वायरलेस असेट्स जियो को बेचने की कोशिश की, लेकिन कई कानूनी मामलों के कारण वह ऐसा नहीं कर पाई। इसके कारण कंपनी और उसकी इकाइयों को इंसॉल्वेंसी प्रक्रिया में जाने के लिए बाध्य होना पड़ा, जिसे IBC के तहत मई 2019 में स्वीकार कर लिया गया।