नई दिल्ली। आयुर्वेद में पोस्टग्रेजुएट डॉक्टर्स अब 58 तरह के सर्जिकल प्रोसीजर में ट्रेनिंग पाने के साथ प्रैक्टिस भी कर सकते हैं। बताया गया है कि केंद्र सरकार के निर्देशों के तहत ये डॉक्टर मोतियाबिंद के साथ नासिका, उदर और ट्यूमर के ऑपरेशन भी कर सकते हैं। हालांकि, इस पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने आपत्ति दर्ज कराई है और आयुर्वेद डॉक्टरों की सर्जरी को मॉडर्न सर्जरी से अलग रखने की सलाह दी है।
दरअसल, पारंपरिक दवाओं की सर्वोच्च नियामक संस्था सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (CCIM) ने अपने नोटिफिकेशन में कहा है कि MS (आयुर्वेद) के डॉक्टर स्वतंत्र तौर पर 39 तरह के सर्जरी प्रोसीजर और कान, नाक, गले और आंख से जुड़े 19 तरह के प्रोसीजर्स की ट्रेनिंग हासिल कर सकते हैं। बता दें कि इनमें से कुछ प्रोसीजर तो आयुर्वेद में पोस्टग्रेजुएट डॉक्टर पहले से ही आजमा रहे थे। पर यह पहली बार है जब आयुर्वेद डॉक्टरों को 58 तरह के प्रोसीजर्स की मंजूरी के लिए गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया।
कुछ एलोपैथिक डॉक्टरों का कहना है कि अगर ऐसे आयुर्वेद सर्जनों को सालों से ट्रेनिंग मिल रही थी और अगर वे ट्रेनिंग के बाद सर्जरी में हिस्सा ले रहे थे, तो नोटिफिकेशन का उद्देश्य साफ नहीं है। हालांकि, CCIM के दो सदस्यों ने साफ किया कि गजट नोटिफिकेशन कानूनी तौर पर अहम जरूरत थी।
इस नोटिफिकेशन पर आधुनिक चिकित्सकों की संस्था IMA ने नाराजगी जताई है। आईएमए ने शनिवार को एक बयान जारी कर नोटिफिकेशन पर सवाल उठाए और अपील की कि CCIM खुद के प्राचीन लेखों से सर्जरी की अलग शिक्षण प्रक्रियाएं तैयार करें और सर्जरी के लिए मॉडर्न मेडिसिन के तहत आने वाले विषयों पर दावा न करें। आईएमए ने आरोप लगाए कि CCIM की नीतियों में अपने छात्रों के लिए मॉडर्न मेडिसिन से जुड़ी किताबें मुहैया कराने के स्पष्ट भेद हैं और संस्था दोनों सिस्टमों को मिलाने की कोशिशों का विरोध करेगा।
एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रघु राम का कहना है कि जनरल सर्जरी आधुनिक मेडिकल साइंस का हिस्सा है और इसे आयुर्वेद के साथ मुख्यधारा में नहीं लाया जा सकता। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद की पढ़ाई के पोस्टग्रैजुएट पाठ्यक्रम में इस तरह के ट्रेनिंग मॉड्यूल के जरिए डॉक्टरों को MS (आयुर्वेद) जैसे शीर्षक देना मरीजों की सुरक्षा के बुनियादी मानकों से खिलवाड़ जैसा होगा।