नई दिल्ली। अर्नब के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि टीवी के तंज को इग्नोर भी तो किया जा सकता है। कोर्ट अर्नब की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था। बॉम्बे हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद अर्नब ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी इस मामले में दो जजों की बेंच सुनवाई कर रही है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘अगर संवैधानिक अदालत लिबर्टी को नहीं बचाएगी तो कौन बचाएगा? अगर कोई भी राज्य किसी व्यक्ति को टारगेट करता है तो एक कड़ा संदेश देने की जरूरत है। हमारा लोकतंत्र बहुत लचीला है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार विचारों में भिन्नता की वजह से किसी को व्यक्तिगत रूप से टारगेट कर रही है। अगर ऐसा होता है तो अदालत को दखल देना ही होगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मान सकते हैं कि अर्नब पर सूइसाइड के लिए उकसाने के आरोप सही हों लेकिन यह जांच का विषय है। अगर केस लंबित है और जमानत नहीं दी जाती है तो यह अन्याय होगा।’ उन्होंने कहा, ‘मैं अर्नब का चैनल नहीं देखता और आपकी विचारधारा भी अलग हो सकती है लेकिन अगर कोर्ट अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा नहीं करेगा तो यह रास्ता उचित नहीं है। हमारा लोकतंत्र बहुत ही लचीला है। सरकार को टीवी के तंज को इग्नोर करना चाहिए। इस आधार पर चुनाव नहीं लड़े जाते हैं।’
जज ने महाराष्ट्र सरकार से कहा, आप देख लीजिए अर्नब के बोलने की वजह से क्या चुनाव पर कोई फर्क पड़ा है? कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से वकील कपिल सिब्बल पेश हुए थे। कोर्ट ने कहा, ‘क्या किसी को पैसे न देना ही उसे आत्महत्या के लिए उकसाना हो गया? इसके लिए जमानत न देना न्याय का मजाक ही होगा।’
इससे पहले हाई कोर्ट ने अर्नब समेत दो अन्य आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने कहा था कि यहां असाधारण क्षेत्र के इस्तेमाल का कोई मामला नहीं बनता है। अभी एफआईआर निरस्त करने के मामले में 10 दिसंबर को सुनवाई होगी। अर्नब ने जमानत के लिए सेशन कोर्ट में भी याचिका दी थी।