नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट और अन्य पाबंदियों पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाया। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने साफ कहा कि इंटरनेट को सरकार ऐसे अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं कर सकती। इसके साथ ही प्रशासन से पाबंदी लगानेवाले सभी आदेशों को एक हफ्ते के अंदर रिव्यू करने को कहा गया है। सर्वोच्च अदालत की तीन जजों की बेंच ने यह फैसला दिया है।
जस्टिस एनवी रमणा की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया। कश्मीर में जारी पाबंदियों के खिलाफ कई जनहित याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थीं।
सुनवाई में कोर्ट ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कश्मीर में हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। हमें स्वतंत्रता और सुरक्षा में संतुलन बनाए रखना होगा। नागरिकों के अधिकारों की रक्षा भी जरूरी है। इंटरनेट को जरूरत पड़ने पर ही बंद किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का अंग है। इंटरनेट इस्तेमाल की स्वतंत्रता भी आर्टिकल 19 (1) का हिस्सा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 144 का इस्तेमाल किसी के विचारों को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता।
इंटरनेट बैन को लेकर संसद में भी हुआ बवाल
5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 खत्म करने के बाद से पूरे प्रदेश में इंटरनेट सेवाए बंद हैं। ब्रॉडबैंड के जरिए ही घाटी के लोगों का इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन हो पा रहा है। सरकार ने लैंडलाइन फोन और पोस्टपेड मोबाइल पर लगी पाबंदियों को कुछ दिन के बाद बहाल कर दिया गया था। जम्मू कश्मीर में इंटरनेट पर जारी पाबंदियों को लेकर संसद के दोनों सदनों में भी शीतकालीन सत्र में काफी हंगामा हुआ था।
सरकार का तर्क, सुरक्षा कारणों से पाबंदी
जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बैन पर गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में कहा था कि सुरक्षा कारणों से यह पाबंदी लगाई गई है। शाह ने कहा था कि जैसे ही हालात सामान्य होंगे सभी तरह की पाबंदियां हटा दी जाएंगी। उन्होंने कहा था कि सरकार भी चाहती है कि प्रदेश में जल्द से जल्द इंटरनेट सेवा लागू हो। जनहित याचिकाओं मे कहा गया था कि प्रदेश में इंटरनेट सेवा नहीं होने से आम जनता तक सूचनाओं का प्रसार नहीं हो पा रहा है।