जीवित माता-पिता की सेवा ही श्राद्ध है: आचार्य डाॅ. शिवदत्त

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कोटा। आर्य समाज कुन्हाड़ी की ओर से गुरुवार को श्रीराम मंदिर, थर्मल काॅलोनी, सकतपुरा पर जीवित पितृ सेवा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में सुल्तानपुर उत्तरप्रदेश के विद्वान आचार्य डाॅ. शिवदत्त पाण्डेय ने प्रवचन और भजन प्रस्तुत किए।

प्रधान पीसी मित्तल ने बताया कि समारोह के तहत 75 वर्ष से आयुपार करने वाले 50 लोगों का श्रद्धापूर्वक सेवा सम्मान किया गया। उन्होंने कहा कि जीवित पितरों को श्रद्धापूर्वक सत्कार और सेवा द्वारा तृप्त करना ही सच्चा श्राद्ध और तर्पण होता है। वेद इसी प्रकार से श्राद्ध-तर्पण की बात करता है।

इससे पहले जीवित माता का श्राद्ध तर्पण करते हुए पुत्रों के द्वारा तर्पण का कार्यक्रम किया। जिसमें अपने जीवित माता के चरणों को धोकर उनका तिलक किया गया। इसके बाद शाॅल और गायत्री मंत्र का दोशाला ओढाकर मिष्ठान्न से तृप्त किया गया।

यज्ञवेदी पर विराजमान यजमानों द्वारा ‘इदम् न मम, इदम् स्वाहा’ के गायन के साथ देवयज्ञ अग्निहोत्र मे गाय के शुद्ध घी, सुगंधित औषधीकृत हवन सामग्री, पीपल की समिधाओं की आहुतियां दी गई।

वेदोपदेश करते हुए आचार्य ने कहा कि श्रद्धापूर्वक मन में प्रतिष्ठा रखकर, विद्वान, अतिथि, माता-पिता, आचार्य आदि की सेवा करने का नाम ही श्राद्ध है। श्राद्ध जीवित माता-पिता, आचार्य, गुरु आदि पुरूषों का ही हो सकता है, मृतकों का नहीं।. मृतकों का श्राद्ध तो पौराणिकों की लीला है, वैदिक युग में तो मृतक श्राद्ध का नाम भी नहीं था।

वेद तो बड़े स्पष्ट शब्दों में माता-पिता, गुरु और बड़ों की सेवा का आदेश देता है। हिन्दु धर्म और वैदिक मान्यताओं के अनुसार अश्विन के श्राद्ध पक्ष के रूप में पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने जीवनकाल में जीवित माता-पिता की सेवा करें।