नई दिल्ली। इंटरनैशनल कम्प्यूटर साइंस इंस्टिट्यूट ऑफ कैलिफोर्निया की एक रिसर्च में सामने आया है कि हजारों ऐंड्रॉयड ऐप्स बिना परमिशन के यूजर्स को ट्रैक कर रहे हैं। रिसर्च में पता चला है कि लगभग 17,000 ऐप्स न सिर्फ यूजर्स का लॉन्ग टाइम बिहेवियर ट्रैक कर रहे हैं, बल्कि उनके फोन में होने वाली हर छोटी-बड़ी ऐक्टिविटी का परमानेंट रेकॉर्ड भी रख रहे हैं। यूजर्स से ऐसा करने के लिए परमिशन भी नहीं ली जाती, जो इस मामले को चिंताजनक बनाता है।
CNet की रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से ज़्यादातर ऐप्स गूगल की डेटा कलेक्शन पॉलिसी का उल्लंघन कर रहे हैं, जिससे वे यूजर्स की ऐक्टिविटी के आधार पर ऐड दिखा सकें और यूजर्स को टारगेट कर सकें। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे ऐंड्रॉयड ऐप्स यूजर्स की एडवरटाइजिंग आईडी की मदद से उनसे कनेक्ट होते हैं और इन्फॉर्मेशन जुटाते हैं। एडवरटाइजिंग आईडी एक यूनीक नंबर होता है, जिससे डिसाइड होता है कि यूजर्स की किस तरह एक ऐड्स दिखाए जाएंगे।
दरअसल गूगल इस आईडी की मदद से ऐप डिवेलपर्स की ऐप्स पर ऐडवरटाइजमेंट्स दिखाता है। यह आईडी डिवेलपर्स की मदद करती है, जिससे यूजर्स को पर्सनलाइज एक्सपीरियंस मिल सके। नई रिसर्च में इस आईडी का गलत इस्तेमाल सामने आया है। इसमें कहा गया है, ‘इन ऐप्स में से एक तिहाई से कम एडवरटाइजिंग आईडी लेती हैं।’ मतलब बाकी सभी ऐप्स अलग तरह के यूनीक आइडेंटीफाइंग इनफॉर्मेशन यूज करते हैं, जो आपकी ऐक्टिविटीज ट्रैक कर सकते हैं।
इस रिसर्ज से जुड़े ब्लॉग पोस्ट में रिसर्चर सर्ज ईगलमैन ने एक्सप्लेन किया है कि किस तरह के ऐप्स ऐड दिखाने के लिए इनफॉर्मेशन भेजते हैं। इन ऐप्स में एंग्री बर्ड्स, ऑडियोबुक्स बाय ऑडिबल और फ्लिपबोर्ड जैसे बड़े ऐप्स भी शामिल हैं। वहीं, क्लीन मास्टर और बैटरी डॉक्टर भी इनमें शामिल हैं। स्टोरी में कहा गया है कि गूगल ने इसपर कड़े कदम उठाने की बात कही है।