लखनऊ। वाणिज्य कर विभाग की एसटीएफ ने डेढ़ अरब (150 कारोड़) रुपये की जीएसटी चोरी का खुलासा किया है। सोमवार को विभूतिखंड थाने में दर्ज कराई गई एफआईआर में 142 फर्जी फर्में बनाकर लोहे के कच्चे माल की आपूर्ति में इस चोरी को अंजाम देने की बात कही गई है। इसके पीछे किसी संगठित गिरोह के हाथ होने की आशंका जताई गई है।
एफआईआर दर्ज कराने वाले वाणिज्य कर अधिकारी मनोज कुमार दीक्षित ने बताया यूपी में लोहे का कच्चा माल ज्यादातर झारखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ से आता है। इन प्रदेशों से टीएमटी बार, एंगल व पट्टी जैसा तैयार माल भी आता है। ठग व्यापारियों ने वाणिज्य कर विभाग की ऑनलाइन स्व पंजीयन प्रणाली का दुरुपयोग करते हुए फर्जी फर्मों का पंजीकरण कराया।
इसके लिए 112 पैन, बिजली के बिल, मोबाइल नंबर और किराये के कार्यालयों का इस्तेमाल किया। फर्जी फर्म बनाकर ठगों ने 3023 ई-वे बिल डाउनलोड किए और विभिन्न प्रदेशों में 850 करोड़ रुपये की खरीद-फरोख्त की। सारे दस्तावेज फर्जी होने से ठगों ने उक्त खरीद-फरोख्त पर न तो कोई रिटर्न दाखिल किया और न ही इसे घोषित किया।
इस तरह से ठगों ने सरकार को करीब 1.5 अरब रुपये का चूना लगाया। मनोज ने बताया कि यूपी में फर्जी फर्में बनाकर 370 करोड़ रुपये की खरीद-फरोख्त दिखाकर 65 करोड़ रुपये से अधिक की जीएसटी चोरी की गई। इस चोरी में माल की ढुलाई के लिए ई-वे बिल पर जिन ट्रांसपोर्ट कंपनियों के वाहनों का प्रयोग दिखाया गया है, वे भी फर्जी पाई गईं हैं।
एसटीएफ ने माल ढुलाई के लिए इस्तेमाल किए गए विभिन्न ट्रांसपोर्ट कंपनियों के 1591 ट्रक/वाहन अब तक चिह्नित किए हैं। वाणिज्य कर अधिकारी का कहना है कि जांच जारी है और यह संख्या बढ़ सकती है। वहंी, विभूतिखंड थाना के प्रभारी निरीक्षक डीके उपाध्याय ने बताया कि एफआईआर पर विवेचना शुरू कर दी गई है।
ई-वे बिल को बनाया चोरी का हथियार
वाणिज्य कर अधिकारी ने बताया कि ई-वे बिल अनिवार्य होने के बाद हर खरीद-फरोख्त की सूचना विभाग को मिलने लगी। ऐसी स्थिति में कर चोरी का माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए ठगों ने ई-वे बिल हासिल करने की कोशिशें शुरू कर दीं।
ठगों का सिर्फ एक मकसद है कि ई-वे बिल हासिल हो जाए और किसी का नाम भी सामने न आए। इसके लिए ठग व्यापारियों ने ऑनलाइन पंजीयन प्रणाली का दुरुपयोग करते हुए फर्जी फर्मों का जीएसटीएन पंजीकरण कराया। पंजीकरण होते ही फर्मों ने खरीद-फरोख्त की जानकारी देकर ई-वे बिल हासिल कर लिए। इसके बाद फर्जी फर्मों पर माल इधर से उधर भेजकर जीएसटी कर चोरी कर डाली।
एक आधार पर 27 व एक बिजली के बिल पर 24 पंजीकरण
जांच में पता चला कि सिर्फ आठ आधार नंबर पर अलग-अलग व्यक्तियों ने 67 फर्मों का पंजीकरण कराया। इसमें से एक आधार नंबर ऐसा निकला जिस पर 27 पंजीकरण पाए गए। ऐसे पैन भी मिले जिन पर एक ही कारोबार के लिए एक ही प्रदेश में दो-दो पंजीकरण कराए गए थे। एसटीएफ को सितंबर, 2017 का एक ऐसा बिजली का बिल मिला जिस पर 24 फर्में पंजीकृत हैं।
प्रदेश के बाहर 86 व्यापारियों पर भी नजर
वाणिज्य कर अधिकारी ने बताया कि यूपी से बाहर पंजीकृत 86 व्यापारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है। उक्त व्यापारियों ने फर्म के पंजीकरण के लिए उन्हीं मोबाइल नंबर, ई-मेल आईडी, पैन और आधार का इस्तेमाल किया जिनका प्रयोग यूपी के व्यापारियों ने किया है।
17 ट्रांसपोर्ट कंपनियों के वाहनों का हुआ इस्तेमाल
इस चोरी में माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए 17 ट्रांसपोर्ट कंपनियों के नाम सामने आए हैं। एसटीएफ ने इन ट्रांसपोर्ट कंपनियों के 1591 वाहनों को चिह्नित किया है। अधिकारियों ने बताया कि सुपर सर्विसेज ने 73 ई-वे बिल से 83 लाख रुपये के माल का परिवहन किया।
संजय रोड लाइंस ने पांच ई-वे बिल से 39 लाख रुपये, स्टार रोडवेज ने 16 बिल से पौने पांच करोड़ रुपये, यूपी बिहार रोडवेज कैरियर ने पांच बिल से एक करोड़ रुपये, आल इंडिया रोड लाइंस झारखंड ने दो बिल से 23 लाख रुपये, भारद्वाज रोडवेज जमशेदपुर ने दो बिल से 16 लाख रुपये, गणपति कारगो मूवर्स जमशेदपुर ने 20 बिल से ढाई करोड़ रुपये के अलावा जयलक्ष्मी ट्रांसपोर्ट जमशेदपुर, विशाल रोड लाइंस ने भी ई-वे बिल के जरिए माल लाने ले जाने का काम किया।
इसमें से किसी भी ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिकों-संचालकों का विवरण नहीं मिल सका है। दो कंपनी आगरा की जंक्शन रोड लाइंस और कानपुर के ट्रांसपोर्टनगर की एसजीसी गुड्स कैरियर ने 22 ई-वे बिल से सवा तीन करोड़ रुपये के माल का परिवहन किया।