मुंबई। टैक्स डिपार्टमेंट को संदेह है कि कई कन्ज्यूमर गुड्स और सर्विसेज कंपनियां जीएसटी के रेट में कमी का फायदा ग्राहकों को नहीं दे रही हैं। इसलिए उसने उनकी जांच शुरू की है। अधिकारियों का मानना है कि रेट में कमी के बावजूद कंपनियों ने अपने प्रॉडक्ट्स और सेवाओं को सस्ता नहीं किया और वे मुनाफाखोरी कर रही हैं।
इंडस्ट्री पर नजर रखने वालों का कहना है कि जांच के पहले दौर में इनडायरेक्ट टैक्स डिपार्टमेंट के अधिकारी एफएमसीजी, रियल एस्टेट और कन्ज्यूमर गुड्स सेगमेंट पर फोकस करेंगे, जिनका ग्राहकों पर सीधा असर होता है। महंगाई दर बढ़ने के बीच इनकम टैक्स डिपार्टमेंट यह कदम उठा रहा है। जब जीएसटी को लागू किया गया था, तब इससे महंगाई बढ़ने की आशंका जताई गई थी। इनडायरेक्ट टैक्स अधिकारी टेलिकॉम और बैंकिंग सेक्टर की भी जांच कर सकते हैं।
टैक्स एक्सपर्ट्स ने कहा कि कुछ कंपनियों की अपनी लागत पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है और उन्हें ना सिर्फ जीएसटी रेट में कमी बल्कि इनपुट टैक्स क्रेडिट से हुए फायदे को भी ग्राहकों तक पहुंचाना चाहिए। ईवाई इंडिया में टैक्स पार्टनर अभिषेक जैन ने बताया, ‘इंडस्ट्री को अपनी लागत देखनी चाहिए।
खासतौर पर वे कंपनियां, जो मास सेगमेंट से जुड़ी हैं। उन्हें टैक्स रेट में कमी से जो फायदा हुआ है, उसे ग्राहकों तक पहुंचाना चाहिए।’ जीएसटी में एंटी-प्रॉफिटीयरिंग की शर्त रखी गई थी। इसके मुताबिक नए टैक्स के लागू होने से कंपनियों को जो भी बचत होनी थी, उसे ग्राहकों तक पहुंचाना जरूरी था। लीगल एक्सपर्ट्स का कहना है कि कुछ मामलों में कंपनियों को हुए फायदे का पता लगाने में मुश्किल हो सकती है।
खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर अभिषेक ए रस्तोगी ने कहा, ‘एंटी-प्रॉफिटीयरिंग के साथ कई बातें जुड़ी हुई हैं। यह सिर्फ प्रॉडक्ट या सर्विस की कीमत तय करने तक सीमित नहीं है। प्रॉफिटीयरिंग तय करने का कोई सिस्टम नहीं है। दाम में कितनी कटौती करनी चाहिए, इसकी कोई वाजिब रेशियो भी तय नहीं की है।’ वह इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में एक कंपनी की पैरवी कर रहे हैं।
एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि मुनाफाखोरी के मामले में कंपनी पर पेनल्टी लगाए जाने के बाद विवाद सुलझाने की कोई व्यवस्था नहीं है। रस्तोगी ने कहा कि अगर कंपनी नैशनल एंटी-प्रॉफिटीयरिंग अथॉरिटी के फैसले को चुनौती देती है तो उसके निपटाने का कोई सिस्टम नहीं है।
टेलिकॉम और बैंकों के मामले में समस्या और गंभीर है क्योंकि उनमें इनपुट टैक्स क्रेडिट का स्कोप काफी ज्यादा है। वे कैपिटल एक्सपेंडिचर पर टैक्स क्रेडिट की मांग कर सकते हैं। पहले सर्विस सेक्टर के लिए ऐसा सिस्टम नहीं था।