नई दिल्ली। ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ वाली कहावत टैक्स चोरों पर खूब फिट बैठती है । ई-वे बिल सिस्टम शुरू हुए अभी छह महीने ही हुए हैं कि लोगों ने इसे भी टैक्स चोरी का जरिया बना लिया है। सरकार ने कर चोरी रोकने के लिए और टैक्स सिस्टम को आसान बनाने के लिए ई-वे बिल योजना इस साल 1 अप्रैल से शुरू की थी, लेकिन सेंधमारों ने इस फुलप्रूफ योजना में भी झोल ढूंढ लिया और सरकार को उसी के सिस्टम में लाखों-करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है ।
टैक्स चोरी के इस बड़े षड़यंत्र पर सरकार अलर्ट हो गई और पूरे मामले की जांच शुरू करके टैक्स चोरों को घेरने के लिए पुख्ता प्लान तैयार किए हैं । जीएसटी प्रणाली के तहत 50 हजार रुपये से अधिक का माल एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजने पर ई-वे बिल लेना अनिवार्य किया गया है । इस व्यवस्था की शुरुआत जीएसटी व्यवस्था के तहत कर चोरी रोकने के लिये की गई।
सूत्रों की मानें तो टैक्स चोर ई-वे बिल के जनरेट होते ही उसे कैंसिल कराकर सरकार को टैक्स में मोटी चपत लगा रहे हैं और बिना कोई टैक्स अदा किए सिस्टम में ही रहकर अपना माल एक शहर से दूसरे शहर पहुंचा रहे हैं ।
रोजाना 15 लाख ई-विल होते हैं जनरेट
जीएसटीएन के अधिकारी ने बताया कि जांच में पाया गया है कि कुछ लोग नियमित रूप से ई-वे बिल तैयार करने चार घंटे के भीतर उस बिल को रद्द कर रहे हैं। जांच में पाया गया है कि रोजाना लगभग 15 लाख ई-वे बिल तैयार किए जा रहे हैं, लेकिन इनमें से करीब 1 लाख बिल रोजाना रद्द भी हो रहे हैं । बिल कैंसिल के पीछे टैक्स चोरों का एक बड़ा षड़यंत्र काम कर रहा है । इस पूरे मामले में सरकार को जो आंकड़े हाथ लगे हैं वे चौंकाने वाले हैं।
सरकार ने बिल के इस दुरुपयोग करने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी फैसला लिया है। जीएसटीएन का कहना है कि टैक्स से बचने के लिए देखा गया है कि कुछ लोग ई-वे बिल का दुरुपयोग कर रहे हैं ।
4 घंटे के अंदर 1 लाख बिल होते हैं कैंसिल
जांच में यह भी पाया गया कि एक ही जीएसटीएन नंबर से तैयार 100 बिलों में 99 बिलों को रद्द कराया गया है । खासबात ये रही कि जिन बिलों को रद्द किया गया उनमें से ज्यादातर वे थे जिन पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का दावा नहीं किया गया है। ये बिल चार घंटे के भीतर ही रद्द किए जाते हैं।
इतनी संख्या में ई-वे बिल कैंसिल होने के चलते राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) और जीएसटीएन सिस्टम की जांच शुरू की गई तो जांच में पाया कि कुछ व्यापारी जानबूझ कर अपने ई-वे बिल रद्द करवा रहे हैं और बिल कैंसिल होने का यह काम बिल जनरेट होने के चार घंटे के भीतर किया जाता है।
खासबात ये है कि जो बिल कैंसिल किए जा रहे हैं उन पर लोहा, स्टील, सीमेंट, सैनिटरी आइटम और तांबे के तार आदि जैसे वे सामान भेजे जा रहे हैं जो आसानी खप जाते हैं। जांच में यह बात भी सामने आई है कि इन बिलों पर सामान भेजने की दूरी आसपास के शहर आदि होते हैं, जहां सामान को चार घंटे के भीतर ही पहुंचा दिया जाता है।
रिटर्न दाखिल नहीं करने वाले ले रहे हैं ई-वे बिल
इस पूरे मामले में यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि इन ई-वे बिलों को शिपमेंट की डिलीवरी के समय में भी रद्द किया जा रहा है और इस तरह बड़े पैमाने पर चोरी की जा रही है, क्योंकि इस दौरान सामान का पता नहीं लगाया जा सकता है।
यह भी देखने में आया है कि जो लोग रिटर्न दाखिल नहीं कर रहे हैं वे ई-वे बिल जनरेट कर रहे हैं और यह मामला समझ से परे हैं कि ऐसे लोग ई-वे बिल क्यों जनरेट कर रहे हैं। इस मामले की भी जांच की जा रही है।
होगी कड़ी कार्रवाई
इस मामले की जांच के लिए डेटा एक्पर्ट की मदद ली जा रही है। जीएसटीएन नंबरों के आधार पर टैक्स चोरी करने वाले व्यापारियों की पहचान की जा रही है। टैक्स चोरों को पकड़ने की प्रक्रिया पाइप लाइन में है। अधिकारियों ने lendennews-ee4f51.ingress-erytho.ewp.live को बताया कि इस मामले में जब जांच पूरी हो जाएगी, तो पहचान किए गए कारोबारियों की लिस्ट तैयार करके संबंधित अधिकारियों के पास भेजा जाएगा, ताकि ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जा सके।
बिल में किए बदलाव
वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) प्रणाली को बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने वाली कंपनी वस्तु एवं सेवाकर नेटवर्क (जीएसटीएन) ने ई-वे बिल पोर्टल को सरल बनाने के लिए इसमें बदलाव किए हैं जिससे भेजी जाने वाले माल के प्रकार के अनुसार ही फार्म तैयार किए जाएंगे । इससे गलतियां कम होंगी।
इस सिस्टम में ‘डाक्यूमेंट टाइप’ में जिस श्रेणी के माल की सप्लाई का विकल्प चुना जायेगा वही फार्म तैयार होगा, जैसे अगर माल की आपूर्ति जॉबवर्क के लिए है तो ‘डाक्यूमेंट टाइप’ में जॉबवर्क होने पर उसमें इस्तेमाल होने वाला फार्म ही प्रणाली में जनरेट होगा। इससे फार्म भरने में गलती नहीं होगी । उसे संबंधित अधिकारियों के पास भेजा जाएगा, ताकि ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जा सके।