जीएसटी से इन्श्योरेंस कराना भी हो सकता है महंगा

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मुंबई। जीएसटी लागू होने के बाद मिडल क्लास पर पहली मार इन्श्योरेंस के प्रीमयम की पड़ सकती है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में इन्श्योरेंस पर टैक्स दर बढ़ने से प्रीमियम बढ़ने की उम्मीद है। ऐसे परिवार जिनके पास कार है और वे हेल्थ और टर्म इन्श्योरेंस लिए हुए हैं उन पर सालाना करीब 1000 रुपये का बोझ बढ़ जाएगा।

बजाज आलियांज़ जनरल इन्श्योरेंस के एमडी तपन सिंघल ने कहा, ‘तत्काल प्रभाव (जीएसटी लागू होने के) के रूप में टैक्स 15 फीसदी से 18 फीसदी हो जाएगा जिसका वहन ग्राहकों को करना होगा। उन्होंने कहा कि अगर इस टैक्स क्रेडिट का कंपनियों पर पॉजिटिव इम्पैक्ट पड़ेगा तो टैक्स प्रीमियम कम हो जाएगा जबकि टैक्स की दर वही रहेगी।

हालांकि नॉन-लाइफ कंपनियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ मिल रहा है। सर्विस टैक्स में इन्श्योरेंस को उन बिजनस की श्रेणी में रखा गया है जिनके लिए टैक्स क्रेडिट अवैलवल नहीं है। ठीक इसी तरह जीएसटी में भी इन्श्योरेंस को टैक्स इनपुट क्रेडिट के लाभ से अलग रखा गया है।

आईसीआईसीआई लोम्बार्ड के चीफ फाइनैंशल ऑफिसर गोपाल बालचंद्रन ने कहा, ‘सरकार ने मौजूदा छूट को जीएसटी में भी जारी रखा है। जब छूट दी जाति है तो पूरी क्रेडिट वैल्यू चेन गड़बड़ा जाती है।’ इसके परिणामस्वरूप बढ़े हुए टैक्स का बोझ ग्राहक पर पड़ेगा। जो परिवार 20 रुपये से 25,000 रुपये तक हेल्थ कवर, मेडिक्लेम पॉलिसीज पर खर्च करते हैं उनका प्रीमियम तीन फीसदी तक बढ़ जाएगा। ऑटो इन्श्योरेंस के प्रीमियम में भी इतनी ही बढ़ोतरी होगी।

बैकिंग सेवाओं में भी चार्ज बढ़ेंगे। हालांकि इस सेक्टर में ज्यादातर कमाई ब्याज पर निर्भर है इसीलिए इसका प्रभाव केवल लेन प्रोसेसिंग, कार्ड चार्जेज आदि तक ही सीमित रह जाएगा। लाइफ इन्श्योरेंस अलग चीज है। टर्म इन्श्योरेंस को रिक्स प्रीमियम में कैटिगरी में रखा गया है और इस पर मोटर और हेल्थ इन्श्योरेंस के बराबर टैक्स लगता है। इसके अलावा लाइफ पॉलिसीज हेल्थ कंपोनेंट है और इसलिए इस पर अलग तरीके से लगता है।