नई दिल्ली । सार्वजनिक क्षेत्र के देना बैंक के निदेशक मंडल ने सोमवार को सरकार द्वारा पिछले हफ्ते बैंक के बैंक ऑफ बड़ौदा और विजया बैंक के साथ विलय के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है। सरकार ने पिछले सोमवार को तीन सरकारी बैंकों – देना बैंक, विजया बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा के विलय की घोषणा की थी, जिससे देश का तीसरा सबसे बड़ा बैंक बनेगा, जिसका संयुक्त कारोबार 14.82 लाख करोड़ रुपये का होगा।
इन तीनों बैंकों में सबसे छोटा देना बैंक है। शेयर बाजारों में नियामकीय फाइलिंग में देना बैंक ने कहा कि इस विलय से वैश्विक बैंकों को प्रतिस्पर्धा देनेवाला बैंक पैदा होगा। देना बैंक का कुल कारोबार 1.73 लाख करोड़ रुपये है और बैंक के भारी मात्रा में बड़े कर्ज (एनपीए) फंसे होने के कारण इसे त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) फ्रेमवर्क के तहत रखा गया है।
भारतीय बैंकिंग प्रणाली का फंसे हुए बड़े कर्जो का आंकड़ा 10 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है। देना बैंक ने फाइलिंग में कहा, “हमारे बैंक के बैंक ऑफ बड़ौदा और विजया बैंक में विलय से एक मजबूत संयुक्त बैंक पैदा होगा। जिसके पास विलय के बाद के स्थिरीकरण चरण के दौरान आवश्यकताओं के निपटने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन होगा।”
बैंकों का सेवाओं का दायरा बढ़ जाएगा
बैंक ऑफ बड़ौदा, विजया बैंक और देना बैंक के विलय से ग्राहकों के लिए सेवाओं का दायरा बढ़ जाएगा। दक्षिण भारत में विजया बैंक की मज़बूत पकड़ है । वहीं उत्तर और पश्चिम भारत में बैंक ऑफ बड़ौदा का काफी अच्छा नेटवर्क है। ऐसे में इन तीनों बैंकों के ग्राहकों को पूरे भारत में आसानी से सेवाएं मिल सकेंगी। इन तीनों बैंकों के एटीएम भी विलय के एक ही बैंक के हो जाएंगे ।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का भी होगा विलय
केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ-साथ अब क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के एकीकरण की प्रक्रिया भी शुरू करने जा रही है । सरकार का इरादा आरआरबी की संख्या को मौजूदा 56 से घटाकर 36 करने का है ।
इस बारे में केंद्र ने राज्यों के साथ विचार विमर्श शुरू किया है क्योंकि देश में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के वह भी प्रायोजक हैं । इसके अलावा प्रायोजक बैंक किसी एक राज्य के भीतर स्थित आरआरबी के आपस में विलय की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं ।
बैंक यूनियन का विरोध
सरकार के उपर्युक्त तीनों बैंकों के विलय के फैसले का बैंक यूनियनों ने विरोध किया है । उनका तर्क है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) में उसके पांच सहयोगी बैंकों के विलय से कोई चमत्कार नहीं हुआ था । उस दौरान कई शाखाओं को बंद करना पड़ा था । एनपीए बढ़ गया था और कर्मचारियों की छंटनी भी हुई थी । साथ ही स्टेट बैंक का कारोबार भी घट गया था । 200 साल में पहली बार एसबीआई नुकसान में आ गया था ।