नई दिल्ली। देश के सरकारी बैंकों ने कर्जा लेकर जानबूझ कर न चुकाने वाले लोगों का करीब 516 करोड़ रुपए का लोन बट्टे खाते (जिसे वसूलना कठिन) में डाल दिया है। यह डाटा चालू वित्तीय वर्ष की पहली छमाही का है। वित्त मंत्रालय ने जो डाटा एकत्र किया है उसके अनुसार ऐसे विलफुल डिफाल्टरों की संख्या 38 है।
एनपीए कम हो जाएगा
बैंकों की इस कार्रवाई से उनकी बैलेंसशीट पर एनपीए की राशि कम हो जाएगी, लेकिन यह पैसा बैंक अपनी कमाई से भरता है। इससे बैंकों का आपरेटिंग प्रॉफिट कम हो जाता है।
फंड का डायवर्जन भी होता है
विलफुल डिफाल्टर वह हैं जो बैंक से पैसा लेकर जानबूझ कर कर्ज नहीं चुकाते हैं। ऐसे लोग कई बार जिस काम के लिए बैंक से पैसा लेते हैं उस काम में नहीं लगाते हैं। कई बार ऐसे लोग फंड का डावर्जन करते हैं और गलते तरीके से इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा कई बार ऐसे लोग जिस प्रॉपर्टी के बदले लोन लेते हैं उसे चुपचाप बेच देते हैं, जिससे बैंक कार्रवाई नहीं कर पाता है।
ऐसे लोगों से वसूली कठिन
एक बैंक अधिकारी के अनुसार जानबू्झ कर कर्ज न चुकाने वालों को एनपीए मान कर कार्रवाई का ठोस नतीजा नहीं निकलता है। इन लोगों की जो भी आसेट जानकारी में होती है उससे कर्ज की वसूली कठिन होती है। इससे पूरी कार्रवाई के बाद भी मामूली रकम ही वसूल हो पाती है।
रिजर्व बैंक के निर्देश
रिजर्व बैंक ने 2015 में बैंकों को निर्देश जारी कर कहा था विलफुल डिफाल्टरों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। इसमें लोन लेने वालों के अलावा गारंटी लेने वालों पर भी कार्रवाई की बात कही गई थी। आरबीआई के अनुसार अगर जरूरत पड़े तो कानूनी कार्रवाई भी शुरू करें।