नई दिल्ली। स्वच्छ भारत सेस का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा! बीते 2 वर्षों के दौरान सरकार ने स्वच्छ भारत सेस के रूप में 16,400 करोड़ रुपये से ज्यादा जुटाए जो स्वच्छता स्कीमों में लगाए जाने थे। सीएजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस रकम का करीब चौथाई हिस्सा स्वच्छता कोष से बाहर है।
सभी सेवाओं पर लगाए गए 0.5 फीसदी सेस के जरिए इकट्ठा किया गया सारा फंड राष्ट्रीय स्वच्छता कोष में जमा होना चाहिए लेकिन इकट्ठा रकम में से 4,000 करोड़ रुपयों की राशि अब तक इस कोष में नहीं पहुंची है। सीएजी ने बताया कि बीते दो वर्षों में कुल कलेक्शन का 75 फीसदी हिस्सा यानी 12,400 करोड़ रुपये ही राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में पहुंचे हैं और उनका इस्तेमाल किया गया है।
सीएजी के एक अधिकारी ने बताया, ‘नियमों के मुताबिक राष्ट्रीय स्वच्छता कोष का वितरण 80:20 के अनुपात में किया जाना है, यानी स्वच्छ भारत मिशन(ग्रामीण) पर कोष का 80 फीसदी हिस्सा खर्च होगा, जबकि 20 फीसदी हिस्सा शहरों की स्वच्छता पर खर्च किया जाएगा। हालांकि पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय ने सारा फंड ग्रामीण इलाकों पर खर्च कर दिया और शहरी इलाकों के लिए कोई फंड नहीं छोड़ा।’
नैशनल ऑडिटर ने कहा कि इसी तरह का अनुभव अन्य सेस के मामलों में भी दिखा। 6 अन्य प्रमुख सेस के मामलों में भी ऐसे ही आंकड़े मिलते हैं। साल 2016-17 में 6 सेसों से कुल कलेक्शन 4 लाख करोड़ रहा और एकत्र की गई 1.81 लाख करोड़ रुपयों की राशि का इस्तेमाल नहीं किया गया। यह रकम सरकार के कन्सॉलिडेटेड फंड से ट्रांसफर नहीं हुई और इसका इस्तेमाल तय योजना के क्रियान्वयन में नहीं किया जा सका।
बीते सप्ताह संसद में सीएजी ने एक रिपोर्ट भी पेश की थी और फंड के बारे में जानकारी दी थी। विपक्षी पार्टियां पहले ही सेस से कलेक्ट हुई राशि का उचित इस्तेमाल न किए जाने को लेकर सवाल उठा चुकी हैं। विपक्षी पार्टियां इस बाबत सरकार से स्पष्टीकरण की मांग कर रही थीं, पार्टियों का कहना था कि अगर करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल नहीं हो रहा तो उनपर बेवजह बोझ क्यों डाला जा रहा है।
सीएजी ने यह भी कहा कि 2006-2007 से 2016-17 के बीच वसूले गए एजुकेशन सेस से इकट्ठा की गई राशि को ट्रांसफर नहीं किया गया, ना ही ऐसी स्कीमें या योजनाएं तय की गईं जिनपर इनका इस्तेमाल होना हो, इसे जमा करने के लिए कोई कोष भी निश्चित नहीं किया गया। सेस द्वारा इकट्ठा की गई राशि कन्सॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया के पास रही, जिसका इस्तेमाल सरकार के सामान्य खर्च के लिए होता रहा।
1986 में सरकार ने रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट सेस की शुरुआत की थी, जो आयातित टेक्नॉलजी पर लगाया जाना था। इस सेस से जुटाई गई राशि का इस्तेमाल देश में विकसित टेक्नॉलजी को प्रोत्साहन में किया जाना था। इस सेस के जरिए 1996-97 से 2016-17 के बीच 7,885 करोड़ रुपये इकट्ठा किए गए, जबकि खर्च महज 607 करोड़ रुपयों की राशि हुई।
ऑडिटर ने सेंट्रल रोड फंड (सीआरएफ) के तहत इकट्ठा किए गए सेस की भी जांच की। इस जांच में ऑडिटर ने पाया कि 2010-11 से 2016-17 के बीच 2.43 लाख करोड़ रुपये कलेक्ट किए गए, जिसमें से महज 1.95 लाख करोड़ रुपये की राशि सीआरएफ को ट्रांसफर की गई।