प्रतीक्षा नहीं है तो परिश्रम व प्रार्थना का लाभ संभव नहीं: गुरुदेव आदित्य सागर

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कोटा। दिगंबर जैन मंदिर त्रिकाल चौबीसी आरकेपुरम में आयोजित नीति प्रवचन में शुक्रवार को आदित्य सागर मुनिराज ने परिश्रम, प्रार्थना और प्रतीक्षा का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि परिश्रम का अर्थ है सक्रिय रहना और अपनी कार्यशीलता को बनाए रखना। प्रार्थना में समर्पण का भाव और प्रतीक्षा में धैर्य और सब्र का महत्व है। उन्होंने कहा कि इन तीनों चरणों को सही तरीके से अपनाने से सफलता की प्राप्ति संभव हो सकती है।

आदित्य सागर ने कहा कि प्रार्थना और परिश्रम की सही दिशा जरूरी है। यदि सही दिशा नहीं होगी तो परिश्रम व्यर्थ चला जाएगा। अपने कार्य के प्रति पूरी तरह से समर्पित होना और अपने मन, वचन और कार्य की दिशा को सही रखना चाहिए । सच्ची प्रार्थना के महत्व पर भी जोर देते हुए बताया कि सच्ची प्रार्थना ही पूरी होती है।

यदि किसी व्यक्ति के जीवन में कुछ होना निश्चित है, तो कोई भी उसे रोक नहीं सकता। इसलिए, व्यक्ति को अपने आप को सुधारना चाहिए और मिथ्या का त्याग करना चाहिए, ताकि उसकी प्रार्थना सच्ची हो सके। अंत में, इस बात पर जोर दिया कि प्रार्थना में भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव होना चाहिए। यह समर्पण ही है जो प्रार्थना को सार्थक और प्रभावी बनाता है।

प्रार्थना व्यक्ति के चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और भगवान के साथ एक गहरा संबंध स्थापित करने का माध्यम बनती है। उन्होने प्रतीक्षा का महत्व बताते हुए कहा कि धैर्य रखने से सफलता मिलती है। परिश्रम के अनुरूप फल भी हमें प्राप्त होते हैं। इस अवसर पर चातुर्मास समिति से टीकम पाटनी, पारस बज, राजेंद्र गोधा,पारस कासलीवाल आरकेपुरम मंदिर समिति से अंकित जैन, अनुज जैन सहित कई लोग उपस्थित रहे।