जीवन में निरंतर अभ्यास ही सफलता का साधन: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर रिद्धि- सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में मंगलवार को चातुर्मास के अवसर पर आदित्य सागर मुनिराज ने अपने नीति प्रवचन में कहा कि हर व्यक्ति सफल होना चा​हता है और अन्य से अधिक होना चाहता है। परन्तु पुरूषार्थ पर विचार नहीं करता है।

सफलता सिर्फ मेहतन से नहीं मिलती है। वर्ना गधा सर्वश्रेष्ठ होता है। सफलता के लिए विशेष विधा होना जरूरी है, वह है ‘अभ्यास’। इस अभ्यास में निरंतरता का गुण भी होना जरूरी है। जो काम बचपन में कठिन लगते थे, वह आज सरल लगते हैं। इस जीवन में अध्यात्म की विधा अखंड विधा है अन्य सभी खंड विधा है। जीवन की हर विधा में अभ्यास व निरंतरता जरूरी है।

उन्होंने कहा कि विद्यार्थी जो कक्षा के प्रथम दिन से अध्ययन के अभ्यास में निरंतरता रखता है, वह परीक्षा में सहज होता है, जो ऐसा नहीं करता है, वह परीक्षा के दिनों में कठिनाई में आ जाता है। इसलिए अ​भ्यास की ​निरंतरता बहुत जरूरी है। जिसकी सोच जितनी गहरी व बडी है, सफलता उतनी ही अधिक मिलती है। आपका अभ्यास जितना होगा, सफलता भी उतनी ही मिलेगी।

आदित्य सागर ने कहा कि निरंतर अभ्यास करें, आपकी सफलता का आकार इसी पर टिका है और यदि अभ्यास में गुरू न मिले तो मिट्टी के द्रोणाचार्य बना कर एकलव्य की तरह साधना करो। उन्होंने कहा कि अभ्यास के लिए कठिन परिश्रम एकाग्रता होना जरूरी है। साथ ही सही दिशा का ज्ञान व आलस्य को दूर रखना जरूरी है। सफल होने के लिए 24 घंटे में 48 घंटे का कार्य करना पडता है।

इस अवसर पर सकल जैन समाज के संरक्षक राजमल पाटौदी, रिद्धी -सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा सहित कई शहरो के श्रावक मौजूद रहे।