नई दिल्ली। Health Tips: आप बाजार जाते हैं तो नामी कंपनी का आयोडीन नमक (Iodised Salt) खरीदते हैं। इसके लिए आप 25-30 रुपये किलो का दाम चुकाते हैं। यही हाल चीनी में है। आप बोरी वाली खुली चीनी नहीं लेकर पैकेट वाली ब्रांडेड चीनी (Branded Sugar) खरीदते हैं।
दावा किया जाता है कि इस चीनी में सल्फर नहीं है। यही नहीं डबल या ट्रिपल रिफाइंडेड का दावा किया जाता है। लेकिन आपको यहा जान कर बेहद निराशा होगी कि इन नमक और चीनी में प्लास्टिक के महीन कण यानी माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदी है। मतलब कि हर रोज हम थोड़ा-थोड़ा प्लास्टिक खा रहे हैं। इसका खुलासा एक स्टडी रिपोर्ट से हुआ है।
थिंक टैंक टॉक्सिक्स लिंक (Toxics Link) ने मंगलवार को एक स्टडी की रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक बाजार में बिक रहे लगभग सभी ब्रांड के नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी है। सबसे अधिक चिंता इस बात की है कि आयोडाइज्ड नमक में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा सबसे अधिक है। यह बहुरंगी पतले रेशों और झिल्ली के रूप में मौजूद है।
टॉक्सिक्स लिंक ने इस स्टडी के लिए टेबल नमक, सेंधा नमक, समुद्री नमक और कच्चा नमक सहित आम तौर पर इस्तेमाल होने वाली नमक की 10 किस्मों और चीनी के 5 तरह के नमूनों को ऑनलाइन और स्थानीय बाजारों से खरीदा। इनमें नमक के दो और चीनी के एक सैंपल को छोड़कर बाकी सभी ब्रैंडेड थे। इन सैंपलों में 0.1 एमएम से 5 एमएम साइज तक माइक्रोप्लास्टिक मिली।
किस तरह के प्लास्टिक
टॉक्सिक्स लिंक के फाउंडर डायरेक्टर रवि अग्रवाल और असोसिएट डायरेक्टर सतीश सिन्हा ने कहा कि नमक और चीनी के सभी नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक की पर्याप्त मात्रा का पाया जाना चिंताजनक है। उन्होंने बताया कि नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति रेशों, छर्रों, पतली झिल्ली और टुकड़ों के रूप में मिली। यह प्लास्टिक आठ रंगों की थी। इन रंगों में ट्रांसपेरेंट, सफेद, नीला, लाल, काला, बैंगनी, हरा और पीला शामिल हैं। आर्गेनिक चीनी के सैंपल में इसकी मात्रा न्यूनतम पाई गई।
कैंसर का कारक
उनका कहना है कि माइक्रोप्लास्टिक स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरा है। माइक्रोप्लास्टिक हानिकारक केमिकल छोड़ती हैं जो इंसानों में प्रजनन संबंधी विकार और कैंसर आदि का कारण बनते हैं। यह प्लास्टिक के कण खाने, पानी और हवा से शरीर के अंदर पहुंचते हैं। माइक्रोप्लास्टिक की वजह से फेफड़ों में सूजन और कैंसर, हार्ट अटैक, मोटापा, इंसुलिन प्रतिरोध और बांझपन आदि का खतरा बढ़ता है।