अपनों के लिए उदार, अंजान पर दया और दुर्जन के लिए सख्त बनें: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। आरकेपुरम त्रिकाल चौबीस दिगम्बर जैन मंदिर समिति की ओर से आयोजित विशुद्ध ज्ञान ग्रीष्मकालीन वाचन किया जा रहा है। मंदिर समिति के अध्यक्ष अंकित जैन ने बताया कि श्रुतसंवेगी आदित्य सागर महाराज ससंघ ने श्रद्धालुओं को जिनवाणी का श्रवण करवाया। उन्होने जिनवाणी से जीवन जीने की कला सिखाई।

मंदिर की ओर से 17 मार्च से 25 मार्च तक सिद्ध महामण्डल विधान का आयोजन किया जाएगा। इस अवसर पर महामंत्री अनुज जैन, दर्पण जैन, ज्ञानचंद जैन खजूरी, मुकेश पपड़ीवाल, अशोक पाटनी, प्रकाश चंद सेठिया समेत समाज के सैकड़ों बंधुओं ने प्रवचनों से ज्ञान प्राप्त किया।

आचार्य विशुद्ध सागर महाराज के शिष्य आदित्य सागर महाराज ससंघ ने जीवन जीने कला बताते हुए कहा कि मनुष्य को अपने परिजन, सगे -सम्बंधी व जानकारों के लिए उदारभाव रखना चाहिए। यदि हम उदार रहेंगे तो हमारी ख्याति भगवान के समान होगी।

उन्होंने जीवन का दूसरा भाव समझाते हुए कहा कि हमें अनजानों के लिए भी दया भाव रखना चाहिए। अनजानों को यदि मदद की जरूरत हो तो हमें निःसंकोच भाव से यथाशक्ति मदद करनी चाहिए। परन्तु दया व दान भाव का आडम्बर व प्रचार नहीं करना चाहिए।

आदित्य सागर महाराज ने श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि दुर्जनों से सावधान व सख्त रहना चाहिए। दुर्जन घाव के समान होता है, दर्द होने पर डॉक्टर जिस प्रकार घाव से मवाद को दूर करते हैं, वैसे ही दुर्जन के प्रति सख्त रहे। जिद्दी दागों को स्वच्छ करने के लिए भी कपड़ों को सख्ती से धोना पड़ता ही है। उन्होंने श्रावकों को समझाया कि सख्ती का आश्रय कभी भी हिंसा से नहीं है। हमें अहिंसक होकर सख्त रहना होगा।