नई दिल्ली। सरकार ने मार्च 2024 तक पीली मटर के आयात को आयात शुल्क मुक्त करने का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने मार्च, 2024 तक पीली मटर के आयात से शुल्क पूरी तरह हटाने की मंजूरी दे दी।
कारोबारी सूत्रों का कहना है कि भाव काबू में रखने के मकसद से लिए गए सरकार के इस फैसले के पीछे चने का उत्पादन कम रहने की चिंता नजर आ रही है। पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात से चने के उत्पादन में होने वाली संभावित कमी से काफी हद तक निपटा जा सकता है।
भारत में हर साल 2.5 से 2.7 करोड़ टन दलहन उत्पादन होता है। इसमें सबसे ज्यादा 44 से 48 फीसदी हिस्सेदारी चने की ही है। अगर इसकी उपज में जरा भी कमी आई तो महंगाई बढ़ सकती है और आम चुनाव नजदीक होने के कारण सरकार महंगाई में इजाफे का खतरा मोल नहीं ले सकती।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इस संवाददाता से कुछ महीने पहले कहा था, ‘हम खाद्य महंगाई को काबू में रखने के लिए पूरी तरह कमर कसे बैठे हैं और दाम नीचे रखने के लिए हरमुमकिन कदम उठाएंगे।’
ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने कहा, ‘मार्च 2024 तक शुल्क-मुक्त पीली मटर आयात की अनुमति देने का फैसला सरकार ने चने की अगली फसल में पैदावार घटने की चिंता में किया है। दरअसल यह एहतियाती कदम है। साथ ही इसका मकसद सस्ती ‘भारत चना दाल’ उपलब्ध कराने के सरकार के फैसले के हिसाब से चने के भाव स्थिर रखना है।’
चने के तेवर ढीले
अग्रवाल ने कहा कि जैसे ही सरकार ने पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात की इजाजत दी, चने के भाव नीचे आ गए और तकरीबन 6,400 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा चना गिरकर 5,800 से 5,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। प्रसंस्कृत चना दाल के भाव भी 7,175 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर 6,750 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। कारोबारियों का कहना है कि गिरावट तो पीली मटर के दाम में भी आई है।
पहले देसी किसानों के हितों की रक्षा के मकसद से पीली मटर के लिए न्यूनतम आयात मूल्य तय किया गया था और उस पर 50 फीसदी आयात शुल्क भी लगता था। साथ ही इस फसल का न्यूनतम आयात मूल्य भी होता था। चने के विपरीत पीली मटर की पूरे देश में अलग-अलग तरीके से खपत होती है। मगर उन्हें चने का सस्ता विकल्प माना जाता है। चने की ही तरह पीली मटर भी रबी फसल है।
पीली मटर की खेती अक्टूबर और मार्च के बीच होती है और इसका उत्पादन आम तौर पर मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में फैले बुंदेलखंड जैसे शुष्क जलवायु वाले इलाकों में होता है। अग्रवाल ने कहा, ‘पीली मटर की खेती प्रमुख तौर पर सागर, बालघाट, सिवनी, ग्वालियर, ललितपुर (उत्तर प्रदेश) और बुंदेलखंड के दूसरे इलाकों में की जाती है।’
देश में पीली मटर की खेती को बढ़ावा देने के लिए जब इसके आयात पर शुल्क लगाया गया तब भारत में सालाना 2 से 2.5 लाख टन पीली मटर ही होती थी। मगर कारोबारियों के मुताबिक पिछले 5-6 साल में उत्पादन बढ़कर 10 से 12 लाख टन हो गया है।
उत्पादन में इजाफे के बाद भी सरकार ने पीली मटर के आयात पर शुल्क हटाने का फैसला किया क्योंकि चने का उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यों में इसका रकबा काफी घट गया है। कृषि विभाग के ताजा आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक जैसे राज्यों में चने की बोआई धीमी है। मगर मध्य प्रदेश में पिछले साल के मुकाबले चने का रकबा बढ़ा है। हालांकि चने की बोआई तेज होने की उम्मीद है मगर कमजोर मॉनसून के कारण मिट्टी में नमी की कमी और कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा राजस्थान में मॉनसून के बाद कम बारिश दिक्कत बढ़ा सकती है।
भारत के कदम से पीली मटर महंगी
भारत से भारी आयात की उम्मीद में पीली मटर के भाव दुनिया भर में बढ़ गए हैं। शुल्क मुक्त आयात के ऐलान से पहले इसके अंतरराष्ट्रीय भाव 400-500 डॉलर प्रति टन थे। लेकिन इस घोषणा के बाद कीमत 510 से 545 डॉलर प्रति टन हो गई है। अलबत्ता पिछले कुछ दिन में भाव नरम हुए हैं। यूक्रेन और कनाडा पीली मटर की सबसे अधिक आपूर्ति करते हैं।
कनाडा में भाव 8 दिसंबर से पहले 450-500 डॉलर प्रति टन थे, जो भारत की शुल्क मुक्त आयात की घोषणा के बाद 495 से 525 डॉलर प्रति टन पर आ गए हैं। रूस से आने वाली पीली मटर 400 डॉलर प्रति टन के भाव से उछलकर 510 डॉलर प्रति टन तक गई और आखिर में 450 से 470 डॉलर प्रति टन पर ठहर गई।
कनाडा में हर साल 23 से 34 लाख टन पीली मटर का उत्पादन होता है, जिसमें से ज्यादातर निर्यात होती है। भारत में ऊंचे शुल्क के कारण पिछले छह साल से कनाडा का पीली मटर का बाजार चीन में चला गया है, जहां इसे पशु चारे के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भारत फिर बाजार में उतर रहा है, जिससे कनाडा की पीली मटर पर चीन का दबदबा खतरे में पड़ सकता है।
कारोबारियों को संदेह है भारत के इस फैसले को पहले ही भांपकर चीनी कारोबारियों ने कम भाव पर भारी मात्रा में कनाडा की पीली मटर खरीद ली होगी। अभी कहा नहीं जा सकता कि इस जमाखोरी का पीली मटर की कीमत पर क्या असर पड़ेगा।
अग्रवाल ने कहा, ‘मुझे लगता है कि कनाडा इस साल मार्च तक करीब 4-5 लाख टन पीली मटर भारतीय बाजार में भेज सकता है। इससे उपभोक्ताओं को तो फायदा होगा मगर मिल मालिकों के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है।’