कयासबाजी: भाजपा की पहली सूची में किसकी चली और किसकी नहीं

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आज की तारीख में वसुंधरा राजे का समर्थन या तो कांग्रेस कर रही है या बीजेपी विरोधी पत्रकार। भाजपा के कार्यकर्ता, जमीन से जुड़ा केडर और संघ से जुड़े हुए लोग वसुंधरा राजे की राजस्थान में भूमिका नहीं चाहते। हां, भाजपा विरोधी पत्रकारों को टीवी के एसी वाले स्टूडियो में कहते हुए सुन सकते हैं, राजस्थान में वसुंधरा का कोई विकल्प नहीं है।

-आशीष मेहता-
BJP politics in Rajasthan:आखिरकार भाजपा की पहली सूची जारी हो ही गई। कयासबाज कह रहे हैं, सूची 52 लोगों की थी, लेकिन अंतिम समय में केवल 41 ही नाम जारी किए गए। वैसे सूची में बड़ी बात यह है कि 41 में से 16 नए लोगों को टिकट दिया गया है। इससे भी बड़ी बात यह है, यही वह रास्ता है जो 2018 के चुनाव में भी जीत दिला सकता था।

यही वह बात है जिसने पीएम मोदी और वसुंधरा राजे के बीच खटास बढ़ाई हुई है। इस खटास के बारे में आज अपन विस्तार से बात करेंगे। पहले सूची की छानबीन तो कर लें। कयासबाज बता रहे हैं, पहली सूची में वसुंधरा राजे की नहीं चल पाई। हां, राजेंद्र राठौड़ की खूब चली।

सूची की बड़ी बात यह भी है कि जहां 7 सांसदों को विधानसभा के टिकट दिए। उनमें से दीया कुमारी को सबसे आसान सीट से लड़ाया जा रहा है। यह राजस्थान के बदलते समीकरणों का परिचायक भी हो सकता है। आखिर ‘बाबोसा’ के दामाद का टिकट काट दिया गया। राजपूतों के बाहुल्य वाली यह सीट बीजेपी की परंपरागत सीट है।

वैसे सूची में किरोड़ी लाल मीणा की छाप भी नजर आ रही है। लग रहा है, यदि सरकार बनती है तो किरोड़ीलाल भी किसी बड़े पद पर पहुंचने वाले हैं। मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान का सूची में नाम आ चुका है, लेकिन राजस्थान की सूची में वसुंधरा राजे का नाम नहीं आया है। वसुंधरा के गढ़ हाडोती की एक भी सीट पर टिकट की घोषणा नहीं की गई है।

वैसे कयासबाज कह रहे हैं, आज की तारीख में वसुंधरा राजे का समर्थन या तो कांग्रेस कर रही है या बीजेपी विरोधी पत्रकार। भाजपा के कार्यकर्ता, जमीन से जुड़ा केडर और संघ से जुड़े हुए लोग वसुंधरा राजे की राजस्थान में भूमिका नहीं चाहते। हां, भाजपा विरोधी पत्रकारों को टीवी के एसी वाले स्टूडियो में कहते हुए सुन सकते हैं, राजस्थान में वसुंधरा का कोई विकल्प नहीं है।

आखिर भाजपा का आलाकमान वसुंधरा राजे से इतना नाराज क्यों है? विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी लगातार राजस्थान में सभाएं करने के बावजूद वसुंधरा राजे से आंख तक नहीं मिला रहे हैं। आज हम आपको विस्तार से बता रहे हैं..

.. कहानी पुरानी है, जब 2013 में सिटी पैलेस में दीया कुमारी के घर लंच पर आईं वसुंधरा राजे से पत्रकारों ने पूछा था, क्या गुजरात के मुख्यमंत्री प्रचार में आएंगे? तब वसुंधरा राजे ने दंभ भरे अंदाज में कहा था, नहीं… और मीडिया ने चला दिया था “मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है…!”

कहते हैं तब के सीएम और आज के पीएम नरेंद्र मोदी के मन में तभी से खटास बनी हुई है। हालांकि उसके बाद मोदी के नाम पर हुए चुनाव में बंपर जीत हुई, वसुंधरा राजे को राजस्थान की सीएम चुना गया। ये तो पुरानी बात है, आज हम 2018 से शुरुआत करेंगे।

2018 की शुरुआत में हुए तीन सीटों के उपचुनाव में भाजपा ने तीनों सीटों को खो दिया था। तब भाजपा ने उस समय के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी को पद से हटा दिया। अमित शाह गजेंद्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन वसुंधरा राजे के इशारे पर विधायकों ने विरोध शुरू कर दिया। इसके बाद 2 महीने तक वसुंधरा राजे को मनाया गया, लेकिन वे नहीं मानी।

तब अर्जुनराम मेघवाल के नाम को आगे किया गया, लेकिन उस पर भी वसुंधरा राजे ने ‘वीटो’ कर दिया। ढाई महीने बिना अध्यक्ष के रहने के बाद मदनलाल सैनी को अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन चुनाव से ठीक पहले बिना प्रदेश अध्यक्ष, बिना संगठन के रहने से पार्टी का बहुत बड़ा नुकसान हो चुका था।

इसके बाद चुनाव के समय आलाकमान ने सर्वे कराया और तय किया कि 96 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जाएंगे। इस फैसले का राजे ने भारी विरोध शुरू कर दिया।आखिरकार, भाजपा ने वसुंधरा राजे के कहने पर तत्कालीन सभी विधायकों को टिकट दे दिए। परिणाम, मात्र आधा परसेंट वोट शेयर से भाजपा चुनाव हार गई। आलाकमान जिन विधायकों के टिकट काटना चाहते थे, वे सभी विधायक चुनाव हार गए।

इसके बाद ऑपरेशन वसुन्धरा शुरु हुआ। राजे विरोधी नेताओं की भाजपा में एंट्री शुरू हुई। वसुंधरा को नेता प्रतिपक्ष बनने से रोका गया। विरोधी बेनीवाल से गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़ा गया। जयपुर हवामहल विवाद के चलते खुन्नस खाए बैठी वसुन्धरा राजे ने विधानसभा चुनाव में दीया कुमारी का टिकट कटवा दिया था। जिन्हें लोकसभा में सवाई माधोपुर से टिकट देकर दिल्ली भेजा गया।

विरोधी किरोड़ी लाल मीणा और घनश्याम तिवारी भी पार्टी में लौट आए। जिन्हें राज्यसभा के रास्ते दिल्ली ले जाया गया। सतीश पूनिया के रुप में, पहली बार ऐसा प्रदेश अध्यक्ष लाया गया, जो वसुंधरा राजे की छाया से राजस्थान भाजपा को निकाल कर ले गया।

अब आगे की बात..
2018 का चुनाव हारने के बाद भी वसुंधरा राजे को लगता था, 5 साल बाद फिर से भाजपा की सरकार बनेगी। स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री बन जाऊंगी। ऐसे में जब पायलट और गहलोत के बीच विवाद चला, तो वसुंधरा राजे सरकार का साथ देती नजर आई। जिसे खुद सीएम अशोक गहलोत ने सार्वजनिक मंचों से कहा है।

आलाकमान ने दिल्ली से विधायकों को लाने के लिए हेलीकॉप्टर भेजा, लेकिन राजे के दबाव में कोई बैठने नहीं आया। प्रदेश में गत 5 साल वसुंधरा राजे कहीं नजर नहीं आईं। इस दौरान हुए उपचुनाव में मेहनत करना तो दूर, प्रत्याशियों की जीत के लिए एक ट्वीट भी नहीं किया।

5 साल तक महिला उत्पीड़न, दलित उत्पीड़न, पेपर लीक, दंगे जैसे भारी मुद्दे होने के बावजूद वसुंधरा राजे सड़क से गायब रही। कुछ दिनों पहले तक वसुंधरा राजे और उनके समर्थक दिल्ली को आंख दिखा रहे थे। पीएम की सभा से ठीक पहले महिलाओं को बुलाकर जयपुर में शक्ति प्रदर्शन किया गया।

इसके बाद पीएम मोदी नाराज हो गए। ऐसे में वसुंधरा राजे की डीडवाना और अन्य स्थानों पर 2 और 5 अक्टूबर को सभाएं तय थी। ठीक उसी दिन पीएम मोदी ने अपनी सभाएं रखवा दी। कयासबाज कह रहे, वसुंधरा राजे के साथ आज जो भी हो रहा है। उसके लिए कोई और नहीं, बल्कि वे खुद जिम्मेदार हैं।

कयासबाज कह रहे हैं, वसुंधरा राजे हमेशा कांग्रेस की नाकामी पर चुनाव जीती हैं। अपने काम के आधार पर अभी तक एक भी चुनाव नहीं जीता है। कयासबाज तो यह भी कह रहे हैं, वसुंधरा राजे पर कैलाश मेघवाल ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। आज कैलाश राजे के पैरोकार हो रहे हैं।

एक गुर्जर नेता भी उन्हें खूब गाली दिया करते थे। जो आज उनके समर्थक हैं। यूनुस खान का चरित्र सभी को पता है। ऐसे लोगों के दम पर वसुंधरा राजे कैसे आगे जाएंगी.. यह भविष्य का सवाल है।

और अंत में..
याद आता है, वसुंधरा राजे को राजस्थान में जसवंत सिंह लेकर आए थे। चुनाव जीतने के कुछ महीने बाद ही जसवंत सिंह को राजस्थान की राजनीति से दूर कर दिया गया था। आज जब वसुंधरा राजे नेपथ्य में जा रही हैं.. साफ दिखाई दे रहा है “पृथ्वी गोल है…!”