सुरक्षित आशियाने की तलाश में भाजपा में सीट बदलने की दौड़

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सीट बदलने की इस दौड़ में भारतीय जनता पार्टी के दो वरिष्ठ विधायक-नेता तो ऐसे भी हैं जो अगले विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में भाजपा के बहुमत में आने की स्थिति में मुख्यमंत्री बनने की खुले आम दावेदारी तो जता रहे हैं। लेकिन अपनी मौजूदा सीट पर चुनाव लड़ने का साहस नहीं जुटा पा रहे। असल में यह दोनों नेता किरण बेदी नहीं बनना चाहते जो दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद का घोषित चेहरा तो थी लेकिन गलत चुनावी रणनीति के कारण खुद विधायक का चुनाव ही हार गई।

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा।
Race to change seat in BJP: भारतीय जनता पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता-विधायक अगले विधानसभा चुनाव में अपनी जीत पर आशंकाओं के बादलों को देखते हुए परम्परागत सीट बदलकर किसी सुरक्षित स्थान की ओर रुखसत करना चाहते हैं।

लेकिन पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व अभी से ही इस बात के स्पष्ट संकेत दे रहा है कि किसी भी मौजूदा विधायक को यदि पार्टी टिकट के लायक समझती है तो उसे अपनी सीट बदलने की अनुमति नहीं देगी। क्योंकि ऐसा करने की स्थिति में नई-पुरानी सीट के मतदाताओं में ही नहीं बल्कि प्रदेश भर में मतदाताओं के बीच गलत संदेश जा सकता है।

भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के इस सिलसिले में स्पष्ट संकेतों के बावजूद अभी भी अपने लिए सुरक्षित आशियाने की तलाश में कुछ नेता-विधायक सीट बदलने की जुगत में जुटे हुए हैं। इनमें दो वरिष्ठ विधायक-नेता तो ऐसे भी हैं जो अगले विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री बनने का सपना तो संजोए हुए हैं।

लेकिन बात जब इस चुनाव में अपनी परंपरागत सीट से चुनाव लड़ने की आती है तो वे इसके स्थान पर किसी अन्य सुरक्षित सीट की तलाश में लगे हैं। ऐसे नेताओं में प्रमुख रूप से राजस्थान विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़, पूर्व में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे और वर्तमान में विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया के नाम प्रमुख रूप से बनाए जा सकते हैं जो मुख्यमंत्री पद के स्वंभू दावेदार हैं।

इसके अलावा पूर्व में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रह चुके अरुण चतुर्वेदी भी सीट बदलने के इच्छुक है। अपनी सीट बदलने के इच्छुक नेताओं में सबसे प्रमुख नाम राजेन्द्र सिंह राठौड़ का है जो पिछले दो बार से चूरू विधानसभा सीट से विधायक हैं और अब तक कुल मिलाकर सात बार विधायक रह चुके हैं, लेकिन इस बार चूरू से चुनाव नहीं लड़ना चाहते क्योंकि उनका पिछला अनुभव यह रहा कि वे भाजपा के बड़े नेता है और तब श्रीमती वसुंधरा राजे के बिलकुल नजदीक होते हुए भी महज करीब 1700 मतों से ही चुनाव जीत पाए थे

इसीलिए इस बार उनकी वरीयता चुरू नही बल्कि जयपुर शहर में झोटवाड़ा और विद्यानगर सीटों सहित चुरू जिले की तारानगर और धौलपुर जिले की राजाखेड़ा विधानसभा सीट है, जिन्हें वे अपने लिए सबसे अधिक सुरक्षित मानते हैं। विद्यानगर सीट भाजपा लगातार तीन चुनाव में जीत रही है अभी यहां से दिग्गज नेता रहे भैरों सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी विधायक हैं।

इसी तरह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और उप नेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया भी अपनी आमेर सीट बदलना चाहते हैं जहां से साल 2013 का चुनाव हारने के बाद 2018 का चुनाव बड़ी मुश्किल से डा. किरोड़ी लाल मीणा की मदद से जीत पाए थे। वैसे भी उनके लिए सबसे बड़ी दिक्कत इस बार कम मतों के अंतर से चुनाव जीतने की नहीं बल्कि भारी मतों के अंतर से चुनाव हारने की है।

यह आशंका जताई जा रही है कि यह काम नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ सहित जयपुर से भाजपा के सांसद कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के समर्थक एवं राजपूत लॉबी कर सकती हैं जो उन्हें विधानसभा चुनाव हराकर मुख्यमंत्री पद पर उनकी दावेदारी का कंटक ही काट देना चाहते हैं। राज्यवर्धन सिंह राठौड़ पिछले आम चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा पूनिया को 3 लाख 93 हजार 171 वोटों के भारी मतों के अंतर से हराकर जीते थे।

सतीश पूनिया की विधानसभा सीट उनके ही लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, इसलिए सतीश पूनिया इस बार सावधान है। उनकी निगाहें जयपुर की झोटवाड़ा और टोंक जिले के मालपुरा सीट पर है, जो दोनों ही जाट बाहुल्य सीटे हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि विद्याधर नगर से अभी नरपत सिंह राजवी विधायक है, तो राजेंद्र सिंह राठौड़ भी दावेदार हैं। इसी तरह मालपुरा सीट से भी स्थानीय जाट नेता कन्हैया लाल चौधरी वर्तमान में भाजपा के विधायक हैं।