प्रदेश भाजपा में धड़ेबाजी होगी सीपी जोशी की सबसे बड़ी चुनौती

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
भारतीय जनता पार्टी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष चंद्र प्रकाश जोशी के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में पार्टी में धड़ेबाजी पर अंकुश लगाने और अगले विधानसभा चुनाव के बाद यदि प्रदेश में भाजपा का विधायक दल बहुमत में आने की स्थिति में होता है तो ऐसे हालात में प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के ‘अहम’ को संतुष्ट करने की रहने वाली है।

हालांकि सीपी जोशी तो क्या कोई भी और प्रदेश भाजपा का नेता राज्य के पार्टी नेताओं की आपसी धड़ेबाजी-गुटबाजी पर अंकुश लगाने में समर्थ है,ऐसा किसी भी सूरत में संभव प्रतीत नहीं होता क्योंकि प्रदेश में कई बार सत्ता का सुख भोग चुके भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की इच्छायें सत्ता की राजनीति में बने रहने के लिये इतनी आगे बढ़ चुकी है कि उनके लिए अब वापस रोकना मुश्किल है।

सीपी जोशी के लिए राजस्थान मेें विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद के दावेदार नेताओं को साधने में भी काफी दिक्कतें आने वाली है क्योंकि ऐसे दावेदारों की प्रदेश में संख्या अब बढ़कर लगभग आधा दर्जन हो गई है।

इसके विपरीत तुलनात्मक रूप में देखे तो प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस में वर्तमान में घोषित रूप से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के रूप में केवल दो ही धड़े होने के बावजूद कांग्रेस आलाकमान को इन दोनों गुटों को संभालना कितना मुश्किल हो रहा है, इसकी बानगी अकसर सामने आती रहती है। ऐसे में राजस्थान में तो भारतीय जनता पार्टी के लगभग आधा दर्जन नेता अपने को मुख्यमंत्री पद का दावेदार माने बैठे हैं और उनमें से कुछ के दावे संजीदा से कहीं ज्यादा हास्यास्पद नजर आते हैं।

प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में पिछले दो बार से मेवाड़ क्षेत्र के चित्तौड़गढ़ संसदीय क्षेत्र से सांसद सीपी जोशी प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेताओं को कितने ग्राह्य होंगे,इस बारे में अभी टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी लेकिन उनकी नियुक्ति को लेकर प्रदेश के ज्यादातर भाजपा नेताओं में से किसी की प्रतिक्रिया उनके लिए ज्यादा उत्साहवर्धक नहीं कही जा सकती। यहां तक की निवर्तमान अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया का नियुक्ति के बाद बयान भी घिसापिटा-रटारटाया सा था कि- पार्टी का निर्णय स्वागत योग्य है।….

‘मैं तो पार्टी में साधारण सिपाही की तरह हमेशा काम करता रहूंगा।….. पद का लालच कभी नहीं रहा।’ वगैरा-वगैरा। हालांकि इस संदर्भ में पूनिया ने यहां तक कहा है कि वे पार्टी के एक अत्यंत साधारण कार्यकर्ता की अपना काम करते रहेंगे। सतीश पूनिया के इस बयान से सीपी जोशी के प्रति समर्थन का भाव कम झुंनझुलाहट का भाव ज्यादा नजर आता है।

कारण भी स्पष्ट है कि उन्हें भी ऎसी कोई उम्मीद नहीं थी कि अचानक उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर सीपी जोशी सरीखे राजनीति में कमतर हैसियत रखने वाले नेता को पदासीन कर दिया जाएगा। जबकि वे तो यह पूरी शिद्दत के साथ मानकर चल रहे थे कि राजस्थान विधानसभा का यह चुनावी साल होने के कारण वे कम से कम अगले विधानसभा चुनाव तक तो अपने पद पर बने रहेंगे ही।

क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनका अधिकारिक तौर पर कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद भी पार्टी नेतृत्व ने चुनावी साल देखते हुए उनकी कार्यकाल को विस्तार दिया था, लेकिन इसके बावजूद अपने पद से हटाकर मेवाड़ क्षेत्र के अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय नेता सीपी जोशी को प्रदेश की बागडोर सौंपने का पार्टी ने फ़ैसला कर लिया।

इसके विपरीत पहले मीडिया रिपोर्ट में यह कयास लगाए जा रहे थे कि यदि विधानसभा चुनाव के बाद राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी अपने बूते पर सरकार बनाने में सक्षम होने की स्थिति में आती है, तो डॉ. सतीश पूनिया भी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदार हो सकते हैं। उनके पक्ष में दलीलें दी गई थी, वह यह कि वे छात्र राजनीति के समय से ही भारतीय जनता पार्टी के अनुभवी नेता है।

साथ ही प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनके सामान्य तौर पर कम विवादित तीन साल का कार्यकाल का समापन के बाद विधानसभा चुनाव की वजह से पार्टी नेतृत्व ने उनमें आस्था जताते हुए उनके कार्यकाल को विस्तारित किया है। साथ ही यह भी कि, प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते प्रदेश में विधानसभा का अगला चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।

हालांकि पार्टी यह पहले ही औपचारिक रूप से घोषणा कर चुकी है कि राजस्थान में किसी को मुख्यमंत्री के रूप में सामने रखे बिना ही भाजपा चुनाव लड़ेगी। इन सब के बावजूद दिल्ली से अचानक आए तीन पंक्ति के एक फैसले ने डॉ. सतीश पूनिया की सारी उम्मीदों को धराशाई कर दिया और उन्हें अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखना पड़ा कि- अब वे पार्टी के साधारण कार्यकर्ता की तरह काम करते रहेंगे।