रोकने की कवायद किसको, किरोड़ी को या वसुंधरा को?

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
प्रदेश भारतीय जनता पार्टी में गुटबाजी के चलते हुए अलग-अलग आंदोलनों के मसले पर हालांकि पार्टी ने यह आदेश तो जारी किया है कि कोई भी आंदोलन करने से पहले पार्टी के नेतृत्व से सहमति ली जाए, लेकिन इस मसले पर पार्टी अभी भी ‘बैक फ़ुट’ पर है।

क्योंकि पार्टी ने यह अलिखित आदेश तो दिया है कि कोई भी पार्टी नेता आंदोलन करने से पहले प्रदेश नेतृत्व से सहमति ले लेकिन इसके बावजूद भी अगर कोई नेता आंदोलन करता है तो वह उसका व्यक्तिगत स्तर पर किया गया आंदोलन माना जाएगा।

अब यहां बात जातीय राजनीति के माहिर खिलाड़ी डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और वर्तमान में प्रदेश में अपने जनाधार एवं व्यक्तित्व की वजह से पार्टी में शीर्ष स्थान पर विराजमान श्रीमती वसुंधरा राजे की तो वे जो भी आंदोलन करते हैं, वह सब व्यक्तिगत स्तर पर ही होते हैं और वह कभी भी पार्टी की सहमति लेने की जरूरत नहीं समझते। वे अपने स्तर पर ही लोगों और पार्टी के कार्यकर्ताओं को आंदोलन से जोड़ते है।

इनके अलावा प्रदेश में जिला स्तरों पर भी कई ऐसे नेता है जो पार्टी से सहमति के बिना भी सक्षम तौर पर अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिये आंदोलन करते है। ऐसे नेताओं की फेहरिस्त में कोटा के पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल को भी शामिल किया जा सकता है, जो कई अवसरों पर अपने सामर्थ-बूते पर राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। न केवल कोटा संभाग के बल्कि संभाग के बाहर नसीराबाद, केकड़ी, अजमेर सहित अन्य गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र से लोगों की भारी भीड़ जुटाकर अपनी ताकत का पार्टी को अहसास कराने में भी आमतौर पर कामयाब हो जाते हैं।

असल नें पार्टी की यह सारी कवायद ऎसे ही नेताओं पर अंकुश लगाने की कोशिश का नतीजा है। हालांकि हाल ही में पेपर लीक के मसले पर आंदोलन को पार्टी स्तर पर पर्याप्त समर्थन नहीं दिए जाने के विरोध में की गई बयानबाजी की वजह से राज्यसभा सदस्य डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के मसले को लेकर यह माना जा रहा है कि पार्टी उन पर अंकुश लगाने के लिए यह निर्णय कर रही है।

असल में पार्टी की कोशिश डॉ. किरोडी लाल मीणा के साथ-साथ प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की गतिविधियों पर अंकुश लगाने की है, जो भी आम तौर पर कई ऐसे आयोजन करती हैं, जिसमें बड़ी संख्या में प्रदेश भर से भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं सहित उनके अपने समर्थक भी जुटते हैं। आमतौर पर वे प्रदेश के उन नेताओं को आमंत्रित नहीं करती जिनसे वे परहेज करती है।

राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के प्रभारी अरुण सिंह की ओर से बताये जा रहे के अनुसार यह निर्देशित किया गया है कि कोई भी आंदोलन करने से पहले पार्टी के नेता प्रदेश नेतृत्व से सहमति ली जाये। लेकिन, सतही तौर पर यह साफ़ प्रतीत होता है कि प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के दबाव के तहत ही यह तय किया जा रहा है, जिनसे न केवल श्रीमती राजे, बल्कि डॉ. किरोडी लाल मीणा भी लंबे समय से असहमति की राजनीति कर रहे हैं।

सबसे ताजा उदाहरण है पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के जन्मोत्सव के मौके पर राजस्थान के चुरू जिले के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल सालासर बालाजी एक बड़े कार्यक्रम के आयोजन का। श्रीमती राजे के 8 मार्च के जन्मदिन से 4 दिन पहले यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह विशुद्ध रूप से एक राजनीतिक कार्यक्रम था, जिसे कि सामाजिक ताना-बाना पहन कर तैयार किया गया था।

यह दिखाने की कोशिश की गई थी कि यह महज कार्यकर्ताओं ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए श्रीमती राजे को बधाई देने की खातिर उनका जन्मोत्सव आयोजित किया गया, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि इस आयोजन की तैयारी पिछले महीने से ही चल रही थी। पूरे राज्य भर से कार्यकर्ताओं को यहां आने के लिए प्रेरित किया जा रहा था और इसका असली मकसद श्रीमती राजे की ताकत का अहसास पार्टी नेतृत्व को करवाना था।

यही वजह रही कि प्रदेश के अन्य प्रमुख नेताओं ने इस कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी। लेकिन राजस्थान के प्रभारी अरुण सिंह इसलिए इस अवसर पर पहुंचे क्योंकि इस पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के बावजूद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया की ओर से जयपुर में अचानक मुख्यमंत्री आवास के घेराव का कार्यक्रम तय कर दिया जिससे जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं में यह स्पष्ट संकेत जा रहा था कि पार्टी में अंतर्कलह अपने चरम पर है।

कार्यकर्ताओं को सालासर बालाजी जाने से रोकने के लिए जयपुर में आनन-फ़ानन में यह कार्यक्रम रखा गया। विधायकों को सालासर में आयोजित हो रहे जन्मोत्सव कार्यक्रम में शामिल होने से रोकने के लिए अनिवार्य रूप से तो नहीं, लेकिन मौखिक रूप से यह जरूर निर्देशित किया गया कि वे जयपुर में आयोजित होने वाले घेराव कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

इसके अलावा विधायकों-सांसदों और पार्टी के अन्य नेताओं को श्रीमती राजे के खेमे के विरोधी नेताओं ने फोन करके इस बात के लिए मनाने की हर संभव कोशिश की कि वे जयपुर की कार्यक्रम में उपस्थिति में शामिल हों। अब यह दीगर बात है कि कई विधायक-सांसद जयपुर के कार्यक्रम में भी पहुंचे तो सालासर बालाजी के कार्यक्रम में भी। वैसे सतीश पूनिया गुट की कोशिश पूरी तरह से उन्हें रोकने की रही।

प्रदेश भाजपा में अंतर्कलह का स्पष्ट अनुमान तो इस बात से ही लगाया जा सकता है कि सालासर बालाजी में आयोजित इस बड़े जलसे में चुरू जिले से निर्वाचित विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ ही नहीं पहुंचे, जो कभी श्रीमती राजे के खास सिपहसालार हुआ करते थे और अब प्रदेश भाजपा में अपना अलग ‘शक्ति केन्द्र’ स्थापित करने की कोशिश में जुटे हैं।