-कृष्ण बलदेव हाडा-
राजस्थान विधानसभा का इन दिनों चल रहा बजट महत्वपूर्ण बजट सत्र अब लगभग अपने अंतिम दौर में है और इस बजट सत्र की अगली कार्रवाई सोमवार से शुरू किया जाना प्रस्तावित है। इस विधानसभा के कार्यकाल का यह अंतिम बजट सत्र साबित होना है।
विधानसभा के अंदर और विधानसभा के बाहर सदैव कांग्रेस सरकार के प्रति आलोचनात्मक रवैये के साथ मुखर रहने वाली भारतीय जनता पार्टी अभी तक यह तय कर पाने में विफल रही है कि उनकी पार्टी की ओर से विधानसभा के इस सत्र और इस विधानसभा के कार्यकाल के अंतिम दौर में उनकी ओर से नेता प्रतिपक्ष कौन होगा?
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाब चंद कटारिया को असम का राज्यपाल बनाए जाने के बाद उनके विधायक और नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा देने के बाद राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद पिछले एक पखवाड़े से भी अधिक समय से खाली पड़ा हुआ है।
लेकिन, न तो भारतीय जनता पार्टी का राज्य का विधायक दल और ना ही प्रदेश नेतृत्व सहित केंद्रीय नेतृत्व अभी तक यह तय कर पाने में सफल हुए की विधानसभा में उनकी ओर से नेता प्रतिपक्ष कौन होगा?
वैसे आमतौर पर यही माना जाता है कि लगभग आधा दर्जन खेमों में बटी प्रदेश भारतीय जनता पार्टी की यही खेमाबंदी नेता प्रतिपक्ष का नाम तय करने में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। हालांकि गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बनाए जाने के बाद नेता प्रतिपक्ष के लिए कई और नाम सुर्खियों में आए हैं लेकिन पार्टी की ओर से अभी तक कोई नाम तय नहीं किया जा सका है।
राजस्थान की पूर्व में मुख्यमंत्री रही भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता श्रीमती वसुंधरा राजे पहले ही इस पद से अपना हाथ पीछे खींच चुकी है लेकिन इसके बावजूद प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहते हुए भी सतीश पूनिया समेत वर्तमान में उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ नेता प्रतिपक्ष के इस पद के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं।
क्योंकि उनका यह कयास है कि यदि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद यही प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने की स्थिति आती है तो वर्तमान में जो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष होगा वही स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री पद का दावेदार होगा।
हालांकि इस कयास के पीछे कोई तार्किक शक्ति नहीं है क्योंकि दो दशकों में पहले भी ऐसे दो अवसर आए हैं जब राजस्थान में चुनावी हार की वजह से श्रीमती वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद वे विधायक तो चुनी गई लेकिन उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का पद स्वीकार नहीं किया और उनके स्थान पर किसी और को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया।
इन दोनों ही अवसरों पर जब अगले चुनावों में प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी मजबूती से अपने विधायक दल के साथ सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष नहीं बल्कि दोनों बाद श्रीमती वसुंधरा राजे ही बनी।
कमोबेश ऐसी हालत कांग्रेस की भी है। अब जबकि राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र अपने अंतिम दौर में ‘पीक’ पर चल रहा है तो महेश जोशी के पार्टी के विधानसभा में मुख्य सरकारी सचेतक पद से इस्तीफा देने के बाद भी लगभग एक पखवाड़े का समय बीत चुका है परंतु न तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और न ही पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने अभी तक इस पद की भरपाई कर रहा है।
‘एक व्यक्ति एक पद’ के सिद्धांत के आधार पर जैसे-तैसे कांग्रेस में मुख्यमंत्री के विरोधी खेमे के नेता सचिन पायलट और उनके समर्थकों को ‘संतुष्ट’ करने की कोशिश के तहत महेश जोशी को यह पद छोड़ना पड़ा था क्योंकि वह राज्य सरकार में जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के मंत्री पर है।
ऐसे में राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस की ओर से मुख्य सचेतक का पद रिक्त होने के कारण सारा दायित्व मुख्यमंत्री की गैर हाजिरी में संसदीय कार्य मंत्री के रूप में शांति धारीवाल पर ही आ जाता हैं। हालांकि वे भी पूरी जिम्मेदारी से अपने दायित्वों का निर्वहन भी कर रहे हैं लेकिन पार्टी का भी यह दायित्व तो है ही कि विधानसभा में पार्टी की ओर से मुख्य सचेतक की नियुक्ति की जानी चाहिए।
प्रदेश में कई ऐसे वरिष्ठ कांग्रेस विधायक हैं जो स्वाभाविक रूप से इसके हकदार-दावेदार हैं। हालांकि यह पद विधानसभा अध्यक्ष और सरकार के बीच की मुख्य सेतु होने के कारण उप मुख्य सरकारी सचेतक महेंद्र चौधरी अधिकारिक तौर पर मुख्य सचेतक के रूप में जिम्मेदारी निभा रहे हैं।