नई दिल्ली । हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होने वाले प्रमुख विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कच्चे तेल ने 27 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंचकर भारत सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं। क्रूड अब 60 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गया है।
आपको बता दें कि कच्चे तेल में होने वाले उतार चढ़ाव से भारतीय बाजारों में तेल की कीमतों पर असर पड़ता है। कच्चे तेल के इस उच्चतम स्तर ने सरकार के सामने फिलहाल कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।
चुनौती नंबर 1: चुनावों से पहले तेल की कीमतों पर लगाम
दो राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कच्चे तेल का उच्चतम स्तर पर पहुंच जाना काफी गंभीर है क्योंकि इससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों को काबू में रखना सरकार के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा। साथ ही यहां पर अब उत्पाद शुल्क में कटौती का विकल्प भारी पड़ सकता है।
क्या है वजह: अंतरराष्ट्रीय जानकारों के मुताबिक आने वाले दिनों में क्रूड की कीमत और बढ़ेगी। इसके लिए दो प्रमुख वजहें बताई जा रही हैं। पहली वजह यह है कि सर्दियों में आम तौर पर क्रूड महंगा होता है। सर्दियों में मांग बढ़ने की वजह से इसकी कीमतों में सामान्य तौर पर 10 से 30 फीसद तक की बढ़ोतरी देखी गई है।
दूसरी वजह यह है कि हाल ही में बड़े तेल उत्पादक देशों के बीच यह सहमति बनी है कि क्रूड उत्पादन में बड़ी कटौती की जाए। रुस की अगुवाई में कुछ देश क्रूड को महंगा करने का हरसंभव उपाय कर रहे हैं। इससे भविष्य में होने वाले सौदों पर असर पड़ा है।
इंडस्ट्री का क्या मानना है?
प्रमुख उद्योगपित और कोटक महिंद्रा बैंक के सीईओ उदय कोटक ने कहा है कि 60 के स्तर पर क्रूड के चले जाने से ब्याज दरों में और कटौती की गुंजाइश भी कम होगी। ऐसे में आर्थिक विकास दर को तेज करने के लिए और मेहनत करनी पड़ेगी।
प्रमुख तथ्य: केद्र सरकार ने हाल ही में पेट्रोल, डीजल पर उत्पाद शुल्क में दो रुपये की कटौती की थी।
भारत अपनी जरुरत का 82 फीसद कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है। इसकी कीमतों में इजाफे से पूरी अर्थव्यवस्था पर असर होता है।
सरकार के डाटा के मुताबिक जून, 2017 में औसत 46.56 डॉलर की दर से क्रूड खरीदा गया था जो सितंबर, 2017 में बढ़ कर 54.52/ डॉलर हो गया।