निसंतान दंपतियों की गोद को खिलखिलाता बचपन देने वाली प्रसन्ना भंडारी नहीं रही

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। Prasanna Bhandari passed away: सैकड़ों निसंतान दंपतियों की गोद को खिलखिलाता बचपन देकर उनके घरों में मासूमों की किलकारियां गुंजायमान करने वाली राजस्थान में कोटा की जानी-मानी समाज सेविका प्रसन्ना भंडारी आज खुद खामोश हो गई।

श्री करणी विकास समिति के संस्थापक संयोजिका प्रसन्ना भंडारी का आज कोटा में निधन हो गया। वे करीब 80 वर्ष की थी और अभी भी समाज सेवा सहित पालनों में छोड़े गये बच्चों, निराश्रितों, विधवाओं, वृद्धजनों विकलांगों को आश्रय देने के सद्कार्य में लगी थी। प्रसन्ना भंडारी ने आज सुबह अंतिम सांस ली।

प्रसन्ना भंडारी ने कोटा में वर्ष 1960 में पहली बार चिल्ड्रन होम की स्थापना की और उसके बाद ताजिंदगी उन्होंने ऐसे बच्चों की सेवा में लगा दी, जिन्हें लोगों ने अल्पायु में ही अपने हाल पर बेसहारा-लावारिस छोड़ दिया था। इनमें कई तो नवजात शिशु भी शामिल थे, जो उनके ही आश्रम में पले-बढ़े।

खास बात यह कि प्रसन्ना भंडारी ने अपने पूरे जीवन में जिन निराश्रित बच्चों को पनाह देकर उनका लालन-पालन किया। बेहतर से बेहतर शिक्षा दिलवाई और अच्छे सामाजिक संस्कारों के साथ उन्हें युवा अवस्था तक का सफर तय करने में मदद की, इनमें से कई आज जाने-माने डॉक्टर, इंजीनियर और दूसरे ही अन्य सम्मानित व्यवसाय, सरकारी-गैर सरकारी सेवाओं से जुड़े हुए हैं।

बच्चों के प्रति लगाव और उनके लालन-पालन करने की वजह से ही आरंम्भिक बचपन से होश संभालने तक उनके आश्रम में रहने वाले सभी बच्चे उन्हें ” मम्मी जी ” कहकर बुलाना शुरू कर देते थे। उनकी मृत्यु पर्यंत यही उनका लोकप्रिय नाम भी रहा।

प्रसन्ना भंडारी ने वर्ष 1978 में कोटा के कोटड़ी इलाके में गैर सरकारी सामाजिक संगठन श्री करणी नगर विकास समिति की स्थापना कर यहां एक आश्रम खोला था और तब से लेकर अब तक तीन हजार से भी अधिक निराश्रित बच्चों ने इस आश्रम में आश्रय पाया। इसके अलावा कम से कम साढ़े नौ सौ से भी अधिक ऐसे भी मासूम बच्चों का लालन-पालन पूरी जिम्मेदारी के साथ प्रसन्ना भंडारी और आश्रम की अन्य समाज सेविकाओं ने पूरी निष्ठा और स्नेह के साथ किया, जिन्हें उनकी मातायें बेसहारा-लावारिस अवस्था में उनके आश्रम के बाहर या तो छोड़ गई थी या लालन-पालन में असमर्थता जताते हुए इन बच्चों को आश्रम के हवाले कर दिया गया था।

अनाथ बच्चों में 200 से भी अधिक बालिकाएं भी शामिल थी। कोटा ही नहीं बल्कि पूरे राजस्थान और देश के अन्य हिस्सों से भी निसंतान दंपत्ति अपने घर-आंगन में नन्हे-मुन्ने बच्चों की किलकारियां सुनने की आस लिए बच्चों को गोद लेने की उम्मीद के साथ समाज सेविका प्रसन्ना भंडारी के पास पहुंचते थे और उनकी गृह-गृहस्थी आबाद करने का विनय करते थे। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि की पक्की जानकारी करने के बाद ही प्रसन्ना भंडारी तमाम कानूनी औपचारिकता पूरी करने के उपरांत बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करती थी। आज कई ऐसे दंपतियों के घर इन बच्चों से आबाद हैं।

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित देश के ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए अपनी अलग पहचान रखने वाले दिवंगत समाज सेवी बाबा आमटे तक निराश्रित लोगों के प्रति की जा रही प्रसन्ना भंडारी की सेवा से बहुत अधिक अभिभूत थे। जब बाबा आमटे ने साल 1984 में साइकिल से अपनी सुप्रसिद्ध भारत यात्रा निकाली थी, तब वे कोटा से होकर गुजरे थे तो उन्होंने रात्रि विश्राम कोटा में कोटड़ी के प्रसन्ना भंडारी के आश्रम में ही किया था।

अगले दिन यहां से निकल पड़े थे। रीढ़ की हड्डी से विकलांग होने के कारण हालांकि बाबा आमटे ने साइकिल रैली का यह सफर खुद एक वैन से पूरा किया था। आश्रम में दौरान उन्होंने यहां की सारी व्यवस्थाओं को बारीकी से अवलोकन भी किया था और उसे खूब सराहा था।

प्रसन्ना भंडारी के इस आश्रम में कम से कम 200 बालिकाओं ने भी बचपन से युवा अवस्था तक आश्रय पाया जिनमें से 48 का उन्होंने शिक्षित कर लालन-पालन करने के बाद बालिग होने पर अच्छे परिवारों में संस्कारशील युवकों से विवाह भी करवाया और वे आज सफल दांपत्य जीवन व्यतीत कर रही हैं। निराश्रित की सेवा करने की एवज में प्रसन्ना भंडारी को कई पुरस्कारों से नवाजा भी गया है। उन्हें भारत के राष्ट्रपति की ओर से पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

राजस्थान के नगरीय विकास एवं स्वायत्तशासन मंत्री शांति धारीवाल, राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के उपाध्यक्ष पंकज मेहता सहित अनेक गणमान्य लोगों ने प्रसन्ना भंडारी के निधन पर गहरा शोक प्रकट करते हुए कहा है कि निराश्रित लोगों के प्रति उनकी सेवाओं को सदैव याद रखा जाएगा।

भंडारी का निधन अपूरणीय क्षति : बिरला
समाजसेविका प्रसन्ना भंडारी के निधन पर स्पीकर ओम बिरला ने शोक संवेदना व्यक्त की है। स्पीकर बिरला ने कहा कि अनाथ बच्चों, बेसहारा बेटियों और निर्बल वृद्धजन को उन्होंने अपनत्व की वह छांव दी जिसने उनका जीवन बेहतर बना दिया। मुझे अनेक अवसरों पर उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों में सहभागिता का अवसर मिला। इस दौरान अभावग्रस्त वर्ग के प्रति उनकी करुणा और प्रेम ने मुझे भी प्रेरित किया। उनका निधन संपूर्ण समाज के लिए अपूरणीय क्षति है।