देशमुख को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा

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मुंबई। महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में अदालत में 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। वे अब तक प्रवर्तन निदेशालय की हिरासत में थे। प्रवर्तन निदेशालय की हिरासत में आने के पहले अदालत ने उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा था।

हालांकि ईडी ने उच्च न्यायालय में अपील दाखिल कर अनिल देशमुख दोबारा कस्टडी ली थी। इस दौरान अनिल देशमुख को एक रात आर्थर रोड जेल में गुजारनी पड़ी थी। अनिल देशमुख के ऊपर मनी लांड्रिंग के अलावा सचिन वझे के जरिये 100 करोड रुपए की हफ्ता वसूली का भी आरोप है।

ईडी ने अपनी चार्जशीट में अनिल देशमुख की शेल कंपनियों के डमी डायरेक्टर्स के स्टेटमेंट भी दिए हैं, जिन्हें 65000 से 75000 रुपये देकर डायरेक्टर्स बनाया गया। उन सभी के सिग्नेचर अडवांस में ले लिए गए थे। चार्जशीट में सचिन वझे का भी स्टेटमेंट है, जिससे साफ हो जाता है कि सचिन वझे अनिल देशमुख के कितने खास थे। वझे ने ईडी को बताया कि कई केसों में उन्हें अनिल देशमुख से सीधे फोन आते थे।

वझे के अनुसार, रिपब्लिक टीवी के ग्रुप एडिटर अरनब गोसामी की वरली में गिरफ्तारी के दिन देशमुख ने ही वझे को सुबह-सुबह अरनब के वरली स्थित घर पहुंचने को कहा था, हालांकि खुदकुशी से जुड़ा वह केस, जिसमें इंटिरियर डिजाइनर, अन्वय नाईक और उनकी मां ने खुदकुशी की थी, मुंबई के बाहर का था। कार डिजाइनर दिलीप छाबरिया से जुड़े केस में भी अनिल देशमुख ने केस के शिकायतकर्ता से कई करोड़ रुपये की उगाही का दबाव बनाया था।

सचिन वझे करीब 16 साल तक सस्पेंड रहे थे। जब अनिल देशमुख को गृह मंत्रालय मिला और परमबीर सिंह मुंबई के पुलिस कमिश्नर बने, तब साल 2020 में सचिन वझे की पुलिस फोर्स में वापसी हुई। दूसरी पारी में महज साढ़े 9 महीने के कार्यकाल में सचिन वझे ने करोड़ों रुपये की उगाही की, ऐसा आरोप है। सचिन वझे के अनिल देशमुख और परमबीर सिंह से रिलेशन को समझने के लिए एंटीलिया कांड से बड़ा उदाहरण हो नहीं सकता। 25 फरवरी की देर रात में सचिन वझे ने मुकेश अंबानी की एंटीलिया बिल्डिंग के बाहर जिलेटिन से भरी स्कॉर्पियो गाड़ी खड़ी की और उसके चंद घंटे पहले वझे अनिल देशमुख के सरकारी आवास में उनसे मिलकर आए थे।

अनिल देशमुख का एंटीलिया केस में अब तक कोई रोल सामने नहीं आया है, लेकिन उनकी वझे से मुलाकात की अहमियत इसलिए बहुत है, क्योंकि एंटीलिया केस के तत्काल बाद अनिल देशमुख ने इसकी जांच मुंबई क्राइम ब्रांच से कराने का आदेश निकाला, हालांकि जिलेटिन की वजह से उसमें टेरर एंगल था और कायदे से इसकी जांच मुंबई क्राइम ब्रांच को नहीं, महाराष्ट्र एटीएस को दी जानी चाहिए थी।

अनिल देशमुख द्वारा जब एंटीलिया कांड का केस मुंबई क्राइम ब्रांच को केस ट्रांसफर हुआ, तो परमबीर सिंह ने सीआईयू को इस केस का इन्वेस्टिगेशन करने को कहा, जिसके प्रभारी सचिन वझे थे। मतलब जो एंटीलिया कांड का मुख्य आरोपी था, वह ही अपने खिलाफ केस की जांच कर रहा था। मतलब, सब कुछ मिलीभगत थी, क्योंकि सचिन वझे मुंबई पुलिस में किसी डीसीपी, अडिशनल सीपी या जॉइंट सीपी को रिपोर्ट ही नहीं करते थे, वह सीधे मुंबई सीपी परमबीर सिंह को रिपोर्ट करते थे। मुंबई पुलिस में तो लोग यहां तक तंज करते हैं कि देशमुख की जान परमबीर और वझे की मुट्ठी में बंद थी।

परमबीर सिंह इस बयान से काफी आग बबूला हो गए। उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखा और अनिल देशमुख पर सचिन वझे व कुछ अन्य पुलिस अधिकारियों के जरिए हर महीने 100 करोड़ रुपये की उगाही का दबाव डालने का आरोप लगाया। यही नहीं, इस मामले की सीबीआई जांच के लिए वह बॉम्बे हाई कोर्ट तक गए। 21 अप्रैल को सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की और चंद हफ्ते बाद ईडी ने भी जांच शुरू कर दी।

लेकिन जिन परमबीर सिंह के जरिए यह पूरा मामला सुर्खियों में आया, वह एकाएक खुद गायब हो गए। उन पर महाराष्ट्र पुलिस ने करीब आधा दर्जन एफआईआर दर्ज कीं, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि एंटीलिया कांड के बाद हुए मनसुख हिरेन मर्डर में जब एक और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा की गिरफ्तारी हुई, तब परमबीर सिंह डर गए और भारत से भाग गए।