नागपुर। बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि शख्स की दूसरी अपनी पहली तलाकशुदा पत्नी पर घरेलू हिंसा का केस नहीं माना जा सकता है। जलगांव निवासी शख्स की याचिका को मंजूर करते हुए जस्टिस मनीष पिटाले ने यह फैसला सुनाया। जज ने कहा कि याचिकाकर्ता की पहली पत्नी अगर अब भी उससे शादीशुदा होती तो केवल उस दशा में ही पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस कर सकती थीं।
फैसला सुनाते हुए जस्टिस मनीष पिटाले ने कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि पति दूसरी शादी कर रहा है, यह घरेलू हिंसा महिला सुरक्षा (डीवी) ऐक्ट 2005 के तहत नहीं आ सकता है। जज ने कहा, जो असल तथ्य है वह अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि इस केस में घरेलू हिंसा ऐक्ट के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती है। दोनों के बीच तलाक की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।’
अकोला निवासी पत्नी का अपने ससुराल वालों पर उत्पीड़न का केस दर्ज करने की निंदा करते हुए जस्टिस पिटाले ने कहा कि जिस तरह से घरेलू हिंसा ऐक्ट के तहत कार्यवाही शुरू की गई यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। जस्टिस पिटाले ने कहा,’चूंकि पत्नी की ओर से लगाए गए आरोप घरेलू हिंसा ऐक्ट के तहत उचित नहीं हैं इसलिए उसे अपने पति और सास-ससुर के खिलाफ मुकदम जारी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
दंपती की 13 मार्च 2011 को शादी हुई थी लेकिन कुछ समय बाद ही दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया। पति ने पत्नी के खिलाफ क्रूरता के आधार पर तलाक का मुकदमा दायर किया था। 16 सितंबर 2014 को अकोला फैमिली कोर्ट ने केस को मंजूर करते हुए सुनवाई की और वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए महिला की याचिका खारिज कर दी।
पत्नी ने फैमिली कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी लेकिन 10 अगस्त 2015 को वहां से भी खारिज कर दिया गया। इसके बाद 15 फरवरी 2016 को पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। इस दौरान पति ने दूसरी शादी कर ली। परिणामस्वरूप पत्नी ने घरेलू हिंसा ऐक्ट के तहत पति और सास-ससुर के खिलाफ केस दर्ज किया था।