भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 605 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर के पार

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नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) $605 अरब के रिकॉर्ड को पार कर गया है। इस तेजी का कारण विदेशी मुद्रा संपत्तियों (Foreign Currency Assets) में हुई अच्छी वृद्धि है। यह कुल मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होता है। इस नए रिकॉर्ड के साथ भारत फॉरेक्स रिजर्व (Forex Reserve) के मामले में रूस को पीछे छोड़ दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश बन गया है।

विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) में इस वृद्धि से मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता लाने में काफी मदद मिलती है। फॉरेक्स रिजर्व (Forex Reserve) से होने वाली सुविधाओं की बात करें तो हमारे पास अब 18 महीने के आयात के हिसाब से पर्याप्त डॉलर मौजूद है। अगर साल 1991 की बात करें तो उस समय हमारे पास 2 हफ्ते का फॉरेक्स रिजर्व (Forex Reserve) भी नहीं था।

फॉरेक्स रिजर्व (Forex Reserve) की जरूरत कच्चे तेल के आयात, ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक्स आदि के मामले में होती है। भारत कई चीजों के आयात के लिए दुनिया के दूसरे देशों पर निर्भर है। इसमें वैक्सीन, स्टील, ऑटो कंपोनेंट आदि शामिल है। इन सब बातों के बीच सवाल यह है कि क्या बहुत अधिक मात्रा में डॉलर जमा होने (Forex Reserve) के कुछ नुकसान भी हैं।

अगर बात दुनिया के अन्य केंद्रीय बैंक की करें तो डॉलर जमा करने वाले (Forex Reserve) सेंट्रल बैंक में चीन, रूस, सऊदी अरब और जापान आदि शामिल हैं। भारत के साथ एक खास बात यह है कि हम एक्सपोर्ट सरप्लस देश नहीं हैं। जिन देशों का निर्यात अधिक होता है वहां वे हद से ज्यादा डॉलर कमाते हैं। हमारे साथ स्थिति उल्टी है।

एशियाई देशों में भारत करंट अकाउंट डिफिसिट (Current account Deficit) के मामले में शीर्ष पर है। हम निर्यात से अधिक सामान का आयात करते हैं। वास्तव में हमारे फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व (Forex Reserve) में इतनी बड़ी वृद्धि फायदेमंद साबित नहीं हो सकती। अगर हर साल हमारा डॉलर अधिक खर्च होता है तो हमारा फॉरेक्स रिजर्व (Forex Reserve) कैसे बढ़ सकता है?

विदेशी निवेश लोन की तरह
इसकी वजह यह है कि करंट अकाउंट डेफिसिट (Current account Deficit) होने के बाद भी पूंजी निवेश में जोरदार वृद्धि की वजह से हमारा डॉलर का भंडार (Forex Reserve) भर रहा है। फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर (FPI) या फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI) के माध्यम से भारत में डॉलर की आवक बढ़ रही है। डॉलर के इस आवक की वजह से शेयरों की खरीदारी बढ़ रही है जिससे यह भरोसा होता है कि भारत के जीडीपी ग्रोथ (GDP Growth) की संभावनाओं पर विदेशी निवेशकों (FII) का भरोसा बना हुआ है।

500 अरब डॉलर का निवेश
पिछले तीन दशक में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के रूप में 500 अरब डॉलर का निवेश आया है। शेयर बाजार (Stock Market) में विदेशी निवेशक जो निवेश करते हैं वे वास्तव में एक लोन की तरह हैं। इन्हें एक्सटर्नल कमर्शियल बौरोइंग (ECB) कहते हैं। मौजूदा विदेशी लोन की बात करें तो यह करीब $560 अरब या हमारे फॉरेक्स रिजर्व के 93 फीसदी के बराबर है। हमारे फॉरेक्स रिजर्व में वृद्धि का यह एक बड़ा कारण है। शेयर बाजार (Stock Market) में किया गया निवेश किसी भी समय निकाला जा सकता है और इससे बड़ा संकट सामने आ सकता है।

गोल्ड भंडार में कमी
विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां डॉलर में व्यक्त की जाती हैं। इसमें डॉलर के अलावा यूरो, पाउंड और येन में अंकित संपत्ति भी शामिल हैं। देश का स्वर्ण भंडार 50.2 करोड़ डॉलर घटकर 37.604 अरब डॉलर रह गया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 10 लाख डॉलर घटकर 1.513 अरब डॉलर रह गया। आईएमएफ (IMF) के पास देश का आरक्षित भंडार भी 1.6 करोड़ डॉलर घटकर पांच अरब डॉलर रह गया।