आध्यात्मिक श्रावक साधना संस्कार शिविर में तत्त्वार्थसूत्र देवों के बारे में जाना

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कोटा। जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व पयुर्षण पर्व के तहत बुधवार को चंद्र प्रभु दिगंबर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आध्यात्मिक श्रावक साधना संस्कार शिविर में आदित्य सागर मुनिराज ने अपने प्रवचन में तत्त्वार्थसूत्र रहस्य देवों के बारे में विवेचना की। इस अवसर पर जैन आगम व ग्रंथो की चर्चा भी गुरूदेव ने की।

उन्होंने कहा कि तत्त्वार्थसूत्र में देवों को चार मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है। भवनवासी देव, व्यंतर देव, ज्योतिषी देव एवं वैमानिक देव। गुरूदेव ने कहा कि देव जन्म नहीं लेते, बल्कि उपपाद जन्म से उत्पन्न होते हैं। वे अपने पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप देव योनि में उत्पन्न होते हैं।

उन्होंने देवो के गुणो के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि देवों के शरीर तेजोमय होते हैं। उनमें अवधिज्ञान (सीमित दूरी तक देखने की क्षमता) होती है। वे इच्छानुसार रूप धारण कर सकते हैं। उनका शरीर अविनाशी होता है, लेकिन उनकी आयु समाप्त होने पर वे मृत्यु को प्राप्त होते हैं। वे अपने दिव्य वैभव का उपभोग करते हैं।

इस अवसर पर रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़,,कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, पारस कासलीवाल सहित कई लोग उपस्थित रहे।