कोटा। Mushaira: राष्ट्रीय मेला दशहरा में मंगलवार को विजयश्री रंगमंच पर अखिल भारतीय मुशायरा आयोजित किया गया। इस दौरान शायरों ने देर रात तक दाद लूटी। मेला प्रभारी एक्यू कुरैशी ने शायरों का स्वागत किया।
शुरुआत में चांद शेरी ने कौमी एकता के मिसरे पढ़कर की। उन्होंने “हमारी एकता इस वतन की जान है, हम कितने ही रंगों में रंगे हैं, लेकिन तीन रंग का तिंरगा हमारी शान है..” पढ़ा तो हर कोई वाह वाह कह उठा। “टैगोर खुसरो गालिब निराला मेरे अंदर बोलते हैं, मेरा भारत मेरी पहचान हम घर घर बोलते हैं..” पढ़कर खूब दाद पाई। जिया टोंकी ने “जला तो दिया है चरागे मोहब्बत.. है कितना हवाओं में दम देखते हैं..” पढ़ा।
मुस्तफा आलम ने “सांसों के न आने से समझते है कि मर जाते हैं लोग.. मोहब्बत ऐसी शै है जो मरने नहीं देती..” पढ़कर जीवन की सच्चाई बयां की। नैना नसीब ने “हो कितना गीत भी मीठा तो लोरी हो नहीं सकता.. जो हासिल इल्म है मुझको वो चोरी हो नहीं सकता..” के द्वारा दाद पाई। अना देहलवी ने “मासूम मोहब्बत का बस इतना फसाना है, कागज की हवेली है बारिश का जमाना है..” पढ़ी तो लोग वाह वाह कह उठे। पपलू लखनवी ने कोई भी रोक न पाता गुजर गया होता..” पढ़कर पति पत्नी की नोंक झोंक को पेश किया।
मंजर भोपाली ने “मोहब्बतों के चरागों की जिंदगी कम है..” पेश की। जौहर कानपुरी ने “धूप को आजमा रहा हूं मैं, मोम का घर बना रहा हूं मैं.. उसको लेकर गया था कान्धो पर, खुद को दफना के आ रहा हूं मैं..” गाया। राष्ट्रीय एकता की मिसाल रखते हुए शबीना अदीब ने “अपनी डाली से बिछड़े अलग हो गए.. पेड़ के सारे पत्ते अलग हो गए.. जाने क्यूं उसके बंदे अलग हो गए..” पढ़ी।
अफजल मंगलौरी ने “तू भी आदमी मैं भी आदमी तो मिटा दे ये सारी नफरतें.. न तेरा खुदा कोई है न मेरा खुदा कोई और है.. पढ़कर सामाजिक वैमनस्यता पर प्रहार किया। इकबाल अशहर ने “हौसला रक्खो रात बीतेगी.. देखना रोशनी ही जीतेगी..” के द्वारा आशावाद जगाने की बात की।
देर रात तक चले मुशायरे में ‘इरशाद’ कहकर शायरी का स्वागत किया गया। इस दौरान अल्ताफ जिया, माजिद देवबंदी, हाशिम फिरोजाबादी, नदीम शाह, अली शबनम, नैना नसीब, इकबाल अशहर, हामिद मुंसावली, अब्दुल मुस्तफा, कुंवर जावेद ने भी शेरो शायरी पेश की तो वाह वाह गूंज उठा।