नई दिल्ली। पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स से केंद्र सरकार ने बंपर कमाई की है। वित्त वर्ष 2020-21 में केंद्र की आय का सबसे बड़ा सोर्स इनडायरेक्ट टैक्स रहे। टैक्स रेवेन्यू में इनडायरेक्ट टैक्स की भागीदारी 50% से ज्यादा है।
अप्रत्यक्ष करों से सरकारी खजाना भरने के पीछे बड़ा योगदान पेट्रोलियम पदाथों पर टैक्स का है। इनडायरेक्ट टैक्स कलेक्शन बढ़ने के पीछे पेट्रोलियम की बढ़ी कीमतें हैं। इनकम टैक्स और कॉर्पोरेशन टैक्स जैसे डायरेक्ट टैक्स आय के हिसाब से वसूले जाते हैं।
इसके उलट- कस्टम, एक्साइज जैसे इनडायरेक्ट टैक्स का भार अमीर हो या गरीब, सबको सहना पड़ता है। 2014-15 से 2020-21 के बीच पेट्रोलियम टैक्स से रेवेन्यू में तिगुना उछाल आया है। एक नजर, वित्त वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार की टैक्स से कमाई के आंकड़ों पर।
2014-15-आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि इनडायरेक्ट टैक्स रेवेन्यू में पेट्रोलियम टैक्स का हिस्सा डेढ़ गुना बढ़ गया है। 2014-15 में जहां पेट्रोलियम पर टैक्स से 1.3 लाख करोड़ रुपये राजस्व हासिल हुआ था, 2021-22 में राजस्व 4.3 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। 2014-15 में इनडायरेक्ट टैक्स में पेट्रोलियम की हिस्सेदारी 22.8% थी जो 2021-22 में बढ़कर 34.3% हो गई।
टैक्स रेवेन्यू में कॉर्पोरेशन टैक्स का हिस्सा 2014-15 से लगातार कम हो रहा है। केंद्र के ओवरऑल टैक्स कलेक्शन में करीब 8 साल पहले 34.5% हिस्सा कॉर्पोरेशन टैक्स का होता था। 2021-22 में यह घटकर 25.2% रह गया। केंद्र के कुल राजस्व में से आधा अकेले इनडायरेक्ट टैक्स से आया।
2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालते वक्त दिल्ली में पेट्रोल का रेट 71.41 रुपये लीटर और डीजल का 57.28 रुपये लीटर था। आज की तारीख में पेट्रोल 96.72 रुपये लीटर और डीजल 89.62 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम कम होने के बावजूद पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं घटे क्योंकि मोदी सरकार ने टैक्स दरें बढ़ा दी थीं। सितंबर 2022 में पेट्रोल की कीमतों पर केंद्र का टैक्स 20% और राज्यों का टैक्स 16% के करीब था। 2013-14 में केंद्र ने पेट्रोलियम टैक्स, ड्यूटी और अन्य लेवी से 1259 बिलियन रुपये जुटाए थे।2020-21 आते-आते इनमें 290 प्रतिशत का इजाफा हुआ और कलेक्शन बढ़कर 4923 बिलियन रुपये हो गया।
पिछले दिनों तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक और सहयोगियों (ओपेक प्लस) ने कच्चे तेल के उत्पादन में बड़ी कटौती की घोषणा की। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेज की कीमतों में उदाल आया। देश में पिछले छह माह से वाहन ईंधन कीमतों में बदलाव नहीं हुआ है।
कच्चे तेल की कीमतें हाल में यूक्रेन और रूस के युद्ध से पहले के स्तर पर आ गई थीं। भारत के लिए यह बुरी खबर है। तेल की कीमतों में गिरावट ने भारत को अपने आयात बिल में कटौती करने के साथ-साथ पेट्रोल और डीजल की बिक्री पर सर्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों को होने वाले नुकसान को सीमित करने में मदद की थी। भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का 85 प्रतिशत आयात करता है और अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें सीधे घरेलू मूल्य निर्धारण को निर्धारित करती हैं।