‘शहर में रहने पर कर, तो कृषि आय पर क्यों नहीं’

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स्वास्थ्य क्षेत्र की दिग्गज कंपनी अपोलो की कार्यकारी वाइस चेयरमैन शोभना कामिनेनी ने हाल ही में उद्योग संगठन सीआईआई के अध्यक्ष का पदभार संभाला है। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश –

कृषि आय पर कर लगाए जाने को लेकर सीआईआई का क्या रुख है?

सीआईआई कर में समानता पर विश्वास करता है। 90 प्रतिशत आबादी इतना कम कमाती है कि वह किसी कर के दायरे में नहीं है। वे कर वाली आमदनी के दायरे में नहीं आते। 

जो कर दायरे में हैं, उनके बारे में क्या कहना है?

वे बिल्कुल हमारे जैसे हैं। अगर मैं 5 लाख रुपये कमाती हूं और मेरे ऊपर सिर्फ इसलिए कर लगता है कि मैं शहर में रहती हूं तो अगर मैं खेती करती हूं तो कर क्यों नहीं लगना चाहिए। आप जानते हैं कि अभी जिस चीज पर चर्चा हो रही है, बाद में यह आवाज मजबूती से उभरेगी। मैं सिर्फ इसे कर समानता के दृष्टिकोण से देख रही हूं न कि राजनीतिक नजरिए से। लोग इस लाभ का दुरुपयोग भी कर रहे हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम पारदर्शिता, सुशासन और समता में विश्वास करते हैं।

क्या आपको लगता है कि और कारोबारी संगठन इस मसले पर आपके विचार का समर्थन करेंगे?

हम कृषि पर ज्यादा कर की वकालत नहीं कर रहे हैं। हम सभी यह कह रहे हैं कि समानता लाई जानी चाहिए। हम कर लगाने की वकालत नहीं कर रहे हैं क्योंकि वह हमारा काम नहीं है। 90 प्रतिशत लोग कर के दायरे में नहीं आते। मैं ज्यादा चाहती हूं। मेरा मानना है कि सभी किसानों को सड़क, पानी, बिजली की सुविधा मिलनी चाहिए। सीआईआई इस तरह के विकास संबंधी मसलों पर काम करता है, जो उन कुछ लोगों पर कर लगाए जाने की तुलना में ज्यादा अहम है। 

वित्तीय वर्ष में प्रस्तावित बदलाव के बारे में सीआईआई ने कुछ आपत्तियां जताई हैं। ऐसा क्यों?

हमने इसका एक सिरे से विरोध नहीं किया है। हमने सरकार के सामने शंकर आचार्य समिति की रिपोर्ट को लेकर अपनी राय रखी है। हम इससे होने वाले लाभ को समझने की कोशिश कर रहे हैं। 

आपका कहना है कि  मेक इन इंडिया सिर्फ विदेशी नहीं बल्कि घरेलू निवेशकों के लिए भी है। आपको निवेश में कब तक तेजी आने की उम्मीद है?

यह तेजी तब आएगी जब बैंक कर्ज देने को तैयार होंगे और इससे दूर नहीं भागेंगे। अभी वे अपने बैलेंस शीट के मसले से जूझ रहे हैं। एनपीए अध्यादेश पर हस्ताक्षर के बाद स्थिति सुधरेगी। उद्योग जब कर्ज लेने लगेंगे तो मांग भी जोर पकड़ेगी। 

कब तक ऐसा होने की संभावना है?

मांग दो स्थितियों में जोर पकड़ेगी। अगर मौजूदा क्षमता में खपत बढ़ती है तो कंपनियों को अपनी क्षमता बढ़ानी पड़ेगी। दूसरी स्थिति है कि जब कर में समानता आए। आप 50 करोड़ रुपये के बाद कारोबार बढ़ाने पर हतोत्साहित किए जाते हैं। आपको 30 प्रतिशत कर का भुगतान करना होता है। अगर आज मैं 25 प्रतिशत के स्तर पर हूं तो मैं ऐसा क्यों नहीं करना चाहूंगी। यह दोनों स्थितियां अनुकूल ब्याज दर पर निर्भर हैं। यहीं पर हम संघर्ष कर रहे हैं। ब्याज दरें कम करने की जरूरत है। 

जीएसटी को लेकर उद्योग, खासकर छोटी फर्में कितनी तैयार हैं, मलेशिया के अनुभव कहते हैं कि इसे लागू करने के बाद काफी व्यवधान आए थे?

इस विषय पर मैं यह कहना चाहती हूं कि सरकार बेहतर करने में कभी नहीं हिचकती। इस समय थोड़ा भ्रम की स्थिति है और इसे सुचारु होने में थोड़ा वक्त लगेगा। लेकिन मेरा मानना है कि उद्योग की तैयारी अच्छी है। हम लंबे समय से जीएसटी की मांग कर रहे हैं और सीआईआई के सदस्य लंबे समय से इसके लिए काम कर रहे हैं। ऐसे में मलेशिया जैसी समस्या नहीं होगी।

सरकार की कार्पोरेट कर घटाने की कवायदों को को लेकर आपको कितनी उम्मीद है?

बहुत उम्मीद है। उन्होंने दरें 25 प्रतिशत की हैं, अब आगे देखते हैं। उनके लिए भी यह केवल व्यय नहीं है। अगले बजट में इस दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं। कर आधार बढ़ रहा है, यह अच्छा है।

-साभार बीएस