राहुल को राजस्थान में एकता का संदेश देने में मिली काफी हद तक कामयाबी

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अब जबकि राजस्थान में अंतिम दौर से गुजर रही है, वे अपनी इस यात्रा के तहत अब तक के सफर में राजस्थान में बीते दिनों के अंतर्कलह के बीच अब सभी पक्षों में के बीच में आपसी समझ और तालमेल की स्थापना का संदेश देने में काफी हद तक कामयाब हुए हैं।

हालांकि उनके यह सार्थक प्रयास आने वाले भविष्य में किस हद तक सहज बने रहने वाले हैं, यह तो अभी देखा जाना बाकी है। जिस समय राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मध्य प्रदेश में अपना प्रवास समाप्त करके दोनों राज्यों की सीमा पर 4 दिसंबर को चंवली के रास्ते राजस्थान में प्रवेश कर रही थी, तब प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच अंतर्कलह पहले अपनी चरम पर था और उनके समर्थकों-प्रशंसकों के बीच बयानबाजी का अंतहीन सा लगने वाला सिलसिला जारी था।

लेकिन अब जबकि राहुल गांधी अपनी यात्रा समाप्त कर हरियाणा की सीमा में प्रवेश करने वाले हैं तो यह अंतर्कलह एक तरह से समाप्त होता दिख रहा है। इस यात्रा से न केवल यात्रा के दौरान अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच कोई तल्खी देखने को नहीं मिली बल्कि इस दौरान हिमाचल में नवगठित सुखजिंदर सिंह सूक्खू की कांग्रेस सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में लंबे समय बाद पहली बार यह दोनों नेता विमान से राजस्थान से हिमाचल के राजधानी शिमला गये थे। वापस साथ लौटे भी और उसके बाद से दोनों के बीच वाद-विवाद का सिलसिला अब तक तो थमता नजर आ रहा है।

इस बीच पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री और उनके विश्वस्त सहयोगी शांति धारीवाल सहित विश्वस्त राजनीतिक सलाहकार माने जाने वाले धर्मेंद्र सिंह राठौड़ और एक अन्य सहयोगी मंत्री महेश जोशी को अभयदान देकर यह जताने की कोशिश की है कि पार्टी नेतृत्व है अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच अब तक चले विवाद और उसके कारण उपजा अंतर्कलह को और अधिक बढ़ाने के मूड में नही है।

पार्टी आलाकमान चाहता है कि दोनों के बीच वर्तमान में जो सौहार्द का माहौल बना है, वह कायम रहे, ताकि अगले साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में दोनों पक्ष अपनी राजनीतिक चातुर्य और सामर्थ्य का उपयोग कांग्रेस को फिर से सत्तासीन करवाने में उपयोग करें। यह दीगर बात होगी कि यदि अगले विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में कांग्रेस अगर एक बार फिर अपना दबदबा कायम रखने में कामयाब रही तो उन हालात में राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन होगा, यह तब तय किये जाने वाला मसला बनने वाला है।

हालांकि यह पूरा मामला अभी दूर की कौड़ी है क्योंकि विधानसभा चुनाव में पूरा एक साल बाकी है और कांग्रेस को अभी बहुत सारी तैयारी करनी है। क्योंकि राजस्थान में भी हिमाचल की ही तरह हर बार सत्ता की बाजी पलटने की पिछले तीन दशकों से परंपरा चली आ रही है। क्या इस बार यह परंपरा बदलेगी और राजस्थान हिमाचल न बनकर गुजरात बन पाएगा, यह भी भविष्य के गर्त में छुपा हुआ है।